Dogra Regiment History: भारतीय सेना की हर रेजिमेंट की अपनी खासियत और ताकत होती है. प्रत्येक रेजिमेंट का एक गौरवशाली इतिहास है. शूरवीरों से भरी हुई ऐसी ही एक डोगरा रेजिमेंट है, जो अपने शौर्य और बलिदान के लिए जानी जाती है. यह रेजिमेंट हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले डोगरा समुदाय के जवानों से बनी है. इनका युद्धघोष 'ज्वाला माता की जय' दुश्मनों में खौफ पैदा करता है.
हर युद्ध में दिखाई वीरता
डोगरा रेजिमेंट की नींव साल 1858 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने रखी. आधिकारिक तौर पर इसका गठन साल 1922 में हुआ. तब इसका नाम 17 डोगरा रेजीमेंट नाम था. आजादी के बाद यह भारतीय सेना का हिस्सा बन गई थी. इस बहादुर रेजिमेंट ने स्वतंत्र भारत के हर युद्ध में हिस्सा लिया. इस रेजिमेंट ने 1947-48 के कश्मीर युद्ध, 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1971 के भारत-पाक युद्ध और 1999 के कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी.
बांग्लादेश इन्हीं की वजह से बना
ऐसा कहा जाता है कि डोगरा रेजिमेंट ना होती, तो पाकिस्तान के दो टुकड़े नहीं हो पाते, यानी बांग्लादेश भी नहीं बन पाता. ऐसा कहते हैं कि 1971 के युद्ध के दौरान सुआडीह नाम के गांव में पाक सबसे ज्यादा ताकतवर था. यहां पर भारत ने डोगरा रेजिमेंट के मात्र 9 जवानों को जिम्मा सौंपा था. इन्होंने ऐसी बहादुरी दिखाई कि पाक फौज वहां से खदेड़ दी गई. इसके बाद ही भारत के लिए आगे के रास्ते खुले और इस रेजिमेंट को युद्ध समाप्त होने के बाद पदक भी मिला
टाइगर हिल पर भी दिखाई बहादुरी
इसके बाद साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन विजय हुआ. तब भारत ने टाइगर हिल मिशन पर डोगरा रेजिमेंट की 5वीं बटालियन के जवानों को भेजा, ये मिशन पूरी तरह सफल रहा था. गौरतलब है कि डोगरा रेजीमेंट के निर्मल चंदर विज 1 जनवरी, 2003 को सेना प्रमुख बने थे. वह साल 2005 तक इस पद पर रहे. डोगरा रेजिमेंट का आदर्श वाक्य ‘कर्तव्यम अनवत्मा’ है.