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भारत के गद्दार को आखिरी वक्त में मिली गुरबत! वो डबल एजेंट जिसने RAW को दिया था धोखा

जासूसी की दुनिया में डबल एजेंट वो स्पाई होता है, जो एक देश या संगठन के लिए काम करते हुए गुप्त रूप से उसके दुश्मन या प्रतिद्वंद्वी के लिए भी जासूसी करता है. डबल एजेंट एक पक्ष को भरोसा दिलाते हैं कि वह उनके लिए काम कर रहे हैं, लेकिन असल में वह दूसरे पक्ष को उनकी जानकारी और रणनीतियां पहुंचाते हैं. ऐसा ही एक डबल एजेंट भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ में भी था.

भारत के गद्दार को आखिरी वक्त में मिली गुरबत! वो डबल एजेंट जिसने RAW को दिया था धोखा
  • जब रॉ के रडार पर आया रबिंदर सिंह
  • अमेरिका के लिए काम कर रहा था

नई दिल्लीः जासूसी की दुनिया में डबल एजेंट वो स्पाई होता है, जो एक देश या संगठन के लिए काम करते हुए गुप्त रूप से उसके दुश्मन या प्रतिद्वंद्वी के लिए भी जासूसी करता है. डबल एजेंट एक पक्ष को भरोसा दिलाते हैं कि वह उनके लिए काम कर रहे हैं, लेकिन असल में वह दूसरे पक्ष को उनकी जानकारी और रणनीतियां पहुंचाते हैं. ऐसा ही एक डबल एजेंट भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ में भी था.  

जब रॉ के रडार पर आया रबिंदर सिंह

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2003 के आसपास रॉ ने एक काउंटर इंटेलिजेंस ऑपरेशन शुरू किया था. ये काउंटर इंटेलिजेंस रॉ में संयुक्त सचिव पद पर तैनात रबिंदर सिंह के खिलाफ शुरू किया गया था. उस पर नजर इसलिए रखी जाने लगी, क्योंकि एजेंसी को पता चला था कि वह ऐसी जानकारियां पूछ रहा है जो उसे नहीं पूछी जानी चाहिए. इसके अलावा वह काफी फोटो कॉपी भी कर रहा था. 

अमेरिका के लिए काम कर रहा था

उस पर जब निगरानी रखी गई तो हर 2 घंटे में शख्स बदल जाता था ताकि शक न हो. वहीं उसके केबिन, पंखे आदि में बग लगाए गए. एजेंसी को सबूत मिलने लगे. अब रॉ को यह पता करना था कि वह किसे ये जानकारी पहुंचा रहा है. इसके बाद और तफ्तीश की गई तो पता चला कि विदेश में पोस्टिंग के दौरान उसके परिवार में किसी की तबीयत खराब हुई थी. तब काफी खर्च हुआ था. उसी वक्त अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसी की तरफ से उससे संपर्क किया गया था. 

अमेरिका को क्या दिलचस्पी थी

सवाल उठता है कि अमेरिका क्यों भारत में दिलचस्पी ले रहा था. दरअसल हुआ यूं था कि 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया था और अमेरिका इस बारे में हवा भी नहीं लग पाई थी. तब उसकी काफी किरकिरी हुई थी और वो हर हाल में भारत की जानकारियां चाहता था. इसलिए उसने डबल एजेंट की तलाश की जो खुफिया जानकारी भी दे सके. रॉ ने रबिंदर सिंह के घर के बाहर एक फल और सब्जी बेचने वाला रॉ का एजेंट था. 

बताया जाता है कि एक दिन एजेंसी को जानकारी मिली कि रबिंदर सिंह कई डॉक्युमेंट्स लेकर बाहर जा रहा है. इसके बाद तुरंत गेट पर तलाशी का आदेश दिया गया, लेकिन रबिंदर सिंह को कुछ गड़बड़ का शक हो गया. कहा यह भी जाता है कि उसने ऐसे ही बातों-बातों में किसी से सुना कि एजेंसी में डबल एजेंट है और उसे जल्द पकड़ा जा सकता है. इसके बाद वो चौकन्ना हो गया. 

इस तरह चकमा देकर नेपाल भागा

बताते हैं कि एक दिन बिना सर्च वॉरंट के रबिंदर सिंह के घर की तलाशी ली गई. वहां एक लैपटॉप मिला जिससे वह जानकारियां भेज रहा था. इसके बाद रबिंदर सिंह ने तबीयत खराब होने का माहौल बनाया. फिर अफवाह फैलाई कि वह चेन्नई की ओर जा रहा है, जिससे सबका ध्यान उस तरफ जाए और उसे भागने का मौका मिल सके. इसके बाद वह यूपी बॉर्डर से नेपाल निकल गया. इसके बाद नकली पहचान पत्र के जरिए अमेरिकी नागरिकता का इंतजाम किया और नेपाल से अमेरिका चला गया. जून 2004 में राष्ट्रपति ने रबिंदर सिंह को बर्खास्त कर दिया. उसका आखिरी समय गुरबत में गुजरा. सीआईए ने भी उससे दूरी बना ली. एक सड़क हादसे में उसकी मौत हो गई. 

कौन था रबिंदर सिंह?

रबिंदर सिंह पंजाब के अमृतसर के जमींदार परिवार के रहने वाला था. वह भारतीय सेना में अधिकारी था और ऑपरेशन ब्लूस्टार में भी हिस्सा लिया था. इसके बाद वह रॉ में शामिल हुआ. समझा जाता है कि 90 के दशक में हॉलैंड में भारतीय दूतावास में काउंसलर पद पर काम करते हुए रबिंदर सिंह सीआईए के संपर्क में आया और ऑफिस से खुफिया दस्तावेजों को घर ले जाकर अमेरिका को भेजने लगा. कहा जाता है कि उसने अहम जानकारियों से जुड़े करीब 20 हजार कागज अमेरिका को भेजे थे.

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