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क्रूज मिसाइलें मारने वाली सबमरीन! DRDO बनाने जा रहा खतरनाक स्वदेशी पनडुब्बियां, जानें नेवी को कब तक मिलेंगी

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण के क्षेत्र में बड़ा कदम उठाने जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो जल्द ही कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) से प्रोजेक्ट-76 को मंजूरी मिलने की उम्मीद है. इसके तहत भारतीय नौसेना के लिए छह नई डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां बनाई जाएंगी. 

क्रूज मिसाइलें मारने वाली सबमरीन! DRDO बनाने जा रहा खतरनाक स्वदेशी पनडुब्बियां, जानें नेवी को कब तक मिलेंगी
  • नौसेना को कब मिल सकती है पहली पनडुब्बी
  • क्रूज मिसाइल लॉन्च करने की क्षमता भी होगी?

नई दिल्लीः रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण के क्षेत्र में बड़ा कदम उठाने जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो जल्द ही कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) से प्रोजेक्ट-76 को मंजूरी मिलने की उम्मीद है. इसके तहत भारतीय नौसेना के लिए छह नई डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां बनाई जाएंगी. इनका 90- से 95 फीसदी हिस्सा स्वदेशी होगा. यह मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने और भारतीय नौसेना को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक अहम कदम होगा.

2033 तक नौसेना को मिल सकती है पहली पनडुब्बी

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट का डिजाइन फेज तीन साल में पूरा होगा, जबकि पांच साल में निर्माण पूरा करने की योजना है. अगर सब कुछ डेडलाइन के हिसाब से हुआ तो पहली पनडुब्बी 2033 तक नौसेना में शामिल हो सकती है. हालांकि नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश त्रिपाठी ने पहले 2036-37 तक पहली पनडुब्बी की तैनाती का अनुमान लगाया था.

क्या है प्रोजेक्ट 76?

बता दें कि भारतीय नौसेना भारतीय नौसेना एक साथ दो बड़ी पनडुब्बी परियोजनाओं प्रोजेक्ट-76 और प्रोजेक्ट-75I पर काम कर रही है. प्रोजेक्ट-75I के तहत AIP तकनीक से लैस छह पारंपरिक पनडुब्बियां बनाई जाएंगी. इसके लिए मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) और जर्मनी की थाइसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS) प्रमुख दावेदार हैं. इसमें जर्मनी की मदद ली जा रही है, लेकिन प्रोजेक्ट-76 पूरी तरह से स्वदेशी है. इसका डिजाइन DRDO और MDL मिलकर तैयार कर रहे हैं.  इसका उद्देश्य भारतीय नौसेना को एक स्वदेशी विकल्प देना है.

स्वदेशीकरण को दी गई है तरजीह

प्रोजेक्ट-76 नौसेना के लिए स्वदेशी पारंपरिक एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) तकनीक से सुसज्जित डीजल-इलेक्ट्रिक अटैक पनडुब्बियों की एक नई पीढ़ी को डिजाइन और विकसित करने का एक कार्यक्रम है. अगर प्रोजेक्ट-76 की खासियत की बात करें तो इसमें स्वदेशीकरण को तरजीह दी गई है. 90 से 95% स्वदेशी तकनीक पर जोर दिया गया है. हथियार, मिसाइलें, लड़ाकू प्रबंधन प्रणाली, सोनार, संचार उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम और अन्य उपकरण भारत में ही बनाए जाएंगे. डीआरडीओ की नई फॉस्फोरिक एसिड-बेस्ड AIP तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इससे पनडुब्बी लंबे समय तक पानी के अंदर रह सकेगी.

क्रूज मिसाइल लॉन्च करने की क्षमता भी होगी?

प्रोजेक्ट-76 के तहत बनने वाली पनडुब्बियों का वजन 3 से 4 हजार टन होगा. इनमें अत्याधुनिक लिथियम-आयन बैटरी, पंप-जेट प्रोपल्शन जैसी स्टील्थ तकनीक और संभवतः क्रूज मिसाइल लॉन्च करने की क्षमता भी होगी. इनका डिजाइन भारत में पहले से बन रही कलवरी-क्लास (प्रोजेक्ट-75) और परमाणु SSN प्रोग्राम से प्रेरित होगा.

इस प्रोजेक्ट के सफल होने से भारत की निर्भरता विदेशी रक्षा कंपनियों पर कम होगी और देश में नौसेना निर्माण क्षेत्र को नई ताकत मिलेगी.

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