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DRDO बना रहा समंदर पर 'लोहे की दीवार', दुश्मन की बैलिस्टिक मिसाइलों का बनेगा कब्रगाह; जानें पूरी तैयारी

DRDO sea based missile defence system: भारत न केवल अपनी जमीनी सीमा को अभेद्य बना रहा है, बल्कि अगले कुछ साल में समुद्री सीमाओं को भी पूरी तरह डिफेंस सिस्टम से लैस कर देगा. जिसके लिए DRDO ने अपनी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं.

DRDO बना रहा समंदर पर 'लोहे की दीवार', दुश्मन की बैलिस्टिक मिसाइलों का बनेगा कब्रगाह; जानें पूरी तैयारी
  • DRDO बनाएगा सी-बेस्ड मिसाइल डिफेंस सिस्टम
  • 2027 तक शुरू होंगे सी-बेस्ड सिस्टम के ट्रायल
  • Mach 7 गति से 300 किमी दूर लक्ष्य करेगा नष्ट

DRDO sea based missile defence system: भारत की समुद्री सीमाओं को अब एक ऐसी अभेद्य ढाल मिलने जा रही है, जो दुश्मन की किसी भी मिसाइल को हवा में ही खत्म कर देगी. देश की रक्षा क्षमताओं को नई ऊंचाइयों पर ले जाते हुए, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन एक समुद्र-आधारित एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल (ABM) डिफेंस सिस्टम विकसित कर रहा है. इस सिस्टम के पहले ट्रायल 2027 तक शुरू होने की उम्मीद है. यह नया डिफेंस सिस्टम न केवल भारतीय नौसेना की ताकत में कई गुना इजाफा करेगा, बल्कि भारत की रणनीतिक सुरक्षा को भी पूरी तरह से बदल देगा.

DRDO बना रहा सी-बेस्ड डिफेंस सिस्टम
अभी तक भारत के पास जमीन-आधारित बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस प्रोजेक्ट था, जो देश के महत्वपूर्ण शहरों और ठिकानों की सुरक्षा करता है. ऐसे में, सी बेस्ड डिफेंस सिस्टम भारत को एक मोबाइल डिफेंस शील्ड देगी. बता दें, इसे लॉन्ग-रेंज सरफेस-टू-एयर मिसाइल (LR-SAM) कहा जा रहा है.

यह सिस्टम खास तौर पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी द्वारा विकसित एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलों (ASBMs) के खतरे से निपटने के लिए बनाई गई है. यह मिसाइल डिफेंस शील्ड युद्धपोतों और नौसेना के बेड़े की सुरक्षा कर सकेगी, जिससे भारत की समुद्री ताकत और मजबूत होगी. यह सिस्टम अमेरिका की नौसेना के SM-6 मिसाइल के मॉडल पर आधारित है, जो इसकी क्षमता को दिखाता है.

कैसे काम करेगा यह नया सिस्टम?
यह सिस्टम एक एडवांस इंटरसेप्टर मिसाइल का इस्तेमाल करेगी, जिसे खास तौर पर नौसेना के जहाजों से वर्टिकल लॉन्च के लिए डिजाइन किया गया है. ऐसे में, यह मिसाइल न केवल बैलिस्टिक मिसाइलों को रोक सकती है, बल्कि दुश्मन के विमानों, ड्रोन और क्रूज मिसाइलों को भी निशाना बना सकती है.

साथ ही, यह M2-आधारित इंटरसेप्टर मिसाइल Mach 7 तक की गति से आने वाले लक्ष्यों को 250-300 किलोमीटर की रेंज में ही नष्ट कर सकती है. ऐसे में, यह सिस्टम नौसेना के जहाजों पर लगे AESA रडार (Active Electronically Scanned Array) के साथ मिलकर काम करेगा, जो लक्ष्य को ट्रैक करने और इंटरसेप्टर को गाइड करने में मदद करेगा.

2027 के ट्रायल से क्या उम्मीदें हैं?
यह प्रोजेक्ट DRDO के फेज-II बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस प्रोग्राम की इंजीनियरिंग का लाभ उठाएगा. वहीं, यह आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करता है. ऐसे में 2027 के ट्रायल के बाद, यह सिस्टम भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हो जाएगी.

इसके साथ ही, इस प्रणाली का जमीन-आधारित वर्जन भी विकसित किया जा रहा है, जो इंडियन एयरफोर्स से भारत के तटीय और भीतरी इलाकों की सुरक्षा करेगा. यह सिस्टम भारत को एक ऐसी सुरक्षा प्रदान करेगी, जो दुश्मन के किसी भी मिसाइल हमले को नाकाम करने में सक्षम होगी.

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