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भारत में पहली बार कब हुई UPSC की परीक्षा? जानें IAS बनने का सफर कहां से शुरू हुआ

भारत में पहली बार UPSC की परीक्षा साल 1951 में शुरू हुई थी. हालांकि, इसकी जड़ें 1855 में शुरू हुईं जब पहली ICS परीक्षा लंदन में हुई. 1926 में Federal Public Service Commission बना, जिसे 1950 में UPSC नाम मिला. यही संस्था आज भारत की सबसे कठिन परीक्षा आयोजित करती है.

भारत में पहली बार कब हुई UPSC की परीक्षा? जानें IAS बनने का सफर कहां से शुरू हुआ
  • UPSC की शुरुआत 1951 से मानी जाती है
  • 1855 में पहली ICS परीक्षा लंदन में हुई

भारत में UPSC यानी यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा देश की सबसे सम्मानित और मुश्किल परीक्षाओं में मानी जाती है. हर साल लाखों उम्मीदवार IAS, IPS और अन्य सिविल सेवाओं में जाने के लिए इस परीक्षा में हिस्सा लेते हैं. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि UPSC की परीक्षा भारत में पहली बार कब और कैसे हुई थी. आइए जानते हैं इसके पीछे का पूरा इतिहास.

सिविल सेवा की शुरुआत कैसे हुई?
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में सिविल सेवा का ढांचा शुरू हुआ. 1855 में ब्रिटिश सरकार ने पहली बार Indian Civil Services (ICS) परीक्षा करवाई थी. ये परीक्षा लंदन में होती थी और इसमें भारतीयों की भागीदारी बहुत कम थी. 1863 में, सत्येंद्रनाथ टैगोर पहले भारतीय बने जिन्होंने यह परीक्षा पास की.

भारत में पहली बार परीक्षा कब हुई?
1922 में, पहली बार ICS की परीक्षा भारत में आयोजित की गई. ये परीक्षा उस समय इलाहाबाद और बाद में दिल्ली में हुई थी. इस समय तक भारत में Federal Public Service Commission (FPSC) की स्थापना नहीं हुई थी.

UPSC की स्थापना और पहली परीक्षा
1 अक्टूबर 1926 को ब्रिटिश सरकार ने Federal Public Service Commission (FPSC) की स्थापना की. जब 1950 में भारत का संविधान लागू हुआ, तब इस आयोग का नाम बदलकर Union Public Service Commission (UPSC) रख दिया गया. इसके बाद 1951 में, UPSC ने पहली बार भारत में स्वतंत्र रूप से सिविल सेवा परीक्षा (Civil Services Exam) आयोजित की.

पहले कैसी होती थी परीक्षा?
आज UPSC की परीक्षा तीन फेज में होती है प्रीलिम्स, मेंस और इंटरव्यू. लेकिन शुरुआत में इसका स्ट्रक्चर थोड़ा अलग था. जब 1922 में भारत में पहली बार परीक्षा हुई, तब इसमें मुख्य रूप से लिखित परीक्षा और वाइवा ही शामिल थे. उस समय सब्जेक्ट्स भी काफी सीमित थे और अंग्रेजी भाषा में ही परीक्षा देनी होती थी. स्वतंत्रता से पहले यह परीक्षा खासकर ऊंचे वर्ग और अंग्रेजों के लिए अधिक अनुकूल मानी जाती थी.  

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