Astra Mk1 missile India: भारत की मिसाइल ताकत की तूती दुनिया भर में बोल रही है. चाहे वह बालाकोट एयरस्ट्राइक हो या ऑपरेशन सिंदूर के दौरान आतंकी ठिकानों पर सटीक हमला करना. इन मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम देने में मिसाइलों ने बड़ी भूमिका निभाई. वर्तमान में भारत के पास ब्रह्मोस और निर्भय जैसी घातक क्रूज मिसाइलें हैं. इन्हीं मिसाइलों में एक नाम है 'अस्त्र' मिसाइल. जिसने इंडियन एयरफोर्स की हवाई ताकत में जबरदस्त इजाफा किया. आइए अस्त्र के बनने व भारतीय सेना में इसकी इंपॉर्टेंस को आसान भाषा में समझते हैं.
वर्ल्ड क्लास मिसाइल की रेस में शामिल
अस्त्र Mk1 प्रोजेक्ट. भारत की पहली स्वदेशी रूप से विकसित बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (BVRAAM) है. इसे अमेरिकी AIM-120 AMRAAM, रूसी R-77, और यूरोपीय मेटियोर जैसी आधुनिक BVRAAMs का स्वदेशी जवाब माना जाता है.
एक समय था जब भारत मिसाइल सिस्टम के लिए दूसरे देशों पर बहुत ज्यादा निर्भर था, तब DRDO ने एक स्वदेशी एयर-टू-एयर मिसाइल विकसित करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा था. ऐसे में, अस्त्र Mk1 प्रोजेक्ट ने न केवल बड़ी लागत की बचत किया, बल्कि मिसाइल की क्षमताओं और तैनाती में अधिक ऑटोनोमी भी दी.
अस्त्र का मुश्किल सफर और शुरुआती चुनौतियां
'अस्त्र' मिसाइल का विकास आसान नहीं था. शुरुआती विकास चरण में डिजाइन में काफी खामियां थीं. मिसाइल का एयरफ्रेम सुपरसोनिक हवाई युद्ध के लिए जरूरी एयरोडायनामिक और जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा था, जिससे शुरुआती उड़ान परीक्षणों के दौरान स्थिरता संबंधी समस्याएं आईं और प्रदर्शन खराब रहा. नतीजतन, पूरे एयरफ्रेम को फिर से डिजाइन करना पड़ा, जिसके कारण सालों की देरी हुई और शुरू से दोबारा टेस्टिंग करनी पड़ी.
वहीं 2005 में, जब भारत के पास कोई विश्वसनीय स्वदेशी BVRAAM नहीं थी, तब पाकिस्तान ने अपने F-16 बेड़े के लिए AIM-120C-5 AMRAAMs हासिल कर लिया था, जिससे उसे BVR युद्ध क्षमता में एक महत्वपूर्ण बढ़त मिल गई थी.
बालकोट ने समझाई 'अस्त्र' की जरूरत
यह तकनीकी गैप 2019 के बालकोट के बाद सैन्य भिड़ंत के दौरान स्पष्ट रूप से दिखा था, जहां पाकिस्तान वायुसेना के AMRAAMs के इस्तेमाल ने भारतीय वायुसेना के Su-30MKI विमानों की BVR क्षमताओं की सीमाओं को उजागर किया था.
हालांकि, भारतीय वायुसेना के Su-30 लड़ाकू विमान जवाबी उपायों और बेहतर युद्धाभ्यास का उपयोग करके आने वाली मिसाइलों से बचने में कामयाब रहे, लेकिन इस घटना के बाद एक विश्वसनीय स्वदेशी BVRAAM की तत्काल जरूरत महसूस हुई.
DRDO ने किया 'अस्त्र' का सफल रीडिजाइन
शुरुआती असफलताओं के बावजूद, DRDO की जिद रंग लाई. 2010 के मध्य तक, 'अस्त्र Mk1' का सफलतापूर्वक रीडिजाइन किया गया, जिसमें एक नया गाइडेंस सिस्टम, बेहतर प्रोपल्शन, और बेहतर एयरोडायनामिक्स शामिल थे. 2016 से 2019 तक कई अपग्रेड के साथ डेवलप किए गए. जिसके बाद 2020 में इसे भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया. वहीं, वर्तमान में 'अस्त्र Mk1' अब 80-110 किलोमीटर की रेंज के साथ बेहद सटीक हमला करने में सक्षम है.
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