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भारत में कैसे हुआ नंद वंश का अंत? चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी इस राजा की हत्या; जानें असली वजह

भारत के इतिहास के पन्नों में एक ऐसा अध्याय दर्ज है, जहां एक महान साम्राज्य का अंत एक अपमान और एक शक्तिशाली प्रतिशोध की कहानी से जुड़ा है. यह सिर्फ एक वंश के पतन की गाथा नहीं, बल्कि उस युग की है जब एक क्रूर शासक की सत्ता उसके ही अहंकार की भेंट चढ़ गई, और यहीं से एक नए और विशाल साम्राज्य की नींव रखी गई.

भारत में कैसे हुआ नंद वंश का अंत? चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी इस राजा की हत्या; जानें असली वजह
  • चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को किया प्रशिक्षित
  • नंद वंश के आखिरी शासक थे धनानंद

भारत का इतिहास कई शक्तिशाली साम्राज्यों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है. इनमें से एक था मगध, जो आज के बिहार की धरती पर फला-फूला. नंद वंश ने इस राज्य पर राज किया, और यह अपनी अपार सैन्य शक्ति और धन-संपत्ति के लिए जाना जाता था. पर इस वंश का अंतिम शासक अपनी क्रूरता, अहंकार और प्रजा पर अत्याचारों के लिए बदनाम था. उसका शासनकाल सिर्फ आतंक का पर्याय नहीं था, बल्कि उसने एक ऐसे बुद्धिजीवी को अपना दुश्मन बना लिया, जिसने उसके पूरे साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकने की कसम खाई. आइए जानते हैं उस घटना को आसान शब्दों में, जिसने नंद वंश जड़ से खत्म कर दिया.

नंद वंश का क्रूर इतिहास
मगध पर नंद वंश का शासन था, जिसे भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक माना जाता है. प्रोफेसर नीलकंठ शास्त्री इतिहासकारों के मुताबिक, नंद शासक अपने अपार धन और विशाल सेना के लिए जाने जाते थे. उनकी सेना में लाखों पैदल सैनिक, घुड़सवार और हजारों हाथी शामिल थे, जिसने उन्हें अजेय बना दिया था. लेकिन वो कहते हैं, न हर अति का अंत जरूर होता है.

ऐसे में, नंद वंश का अंतिम शासक धनानंद अपनी क्रूरता, लालच और अहंकारी स्वभाव के लिए कुख्यात था. वह प्रजा पर भारी और अनुचित कर लगाता था. ब्राह्मणों और विद्वानों का खुलेआम अपमान करना उसकी आदत में शुमार था. उसकी नीतियों से जनता त्रस्त थी. .यही वजह रही कि नंद वंश के आखिरी साम्राज्य के भीतर ही असंतोष पनपने लगा.

चाणक्य का अपमान बनी वजह
कहानी तब मोड़ लेती है जब एक अत्यंत ज्ञानी और कुशल रणनीतिकार को धनानंद ने भरी सभा में अपमानित किया. लोककथाओं और ऐतिहासिक ग्रंथों के मुताबिक, इस अपमान से आहत होकर उस ब्राह्मण ने अपनी शिखा खोल दी और सार्वजनिक रूप से प्रतिज्ञा ली कि जब तक वह इस अत्याचारी शासक को सत्ता से हटा नहीं देगा, तब तक वह अपनी शिखा नहीं बांधेगा.

वह अपमानित विद्वान कोई और नहीं, बल्कि महान राजनीतिक विचारक और कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य थे, जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त भी कहा जाता है. उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वे नंद वंश को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे. इस जटिल और जोखिम भरे मिशन को पूरा करने के लिए उन्हें एक ऐसे साहसी और सक्षम शिष्य की तलाश थी, जो उनके रणनीतिक निर्देशों का पालन कर सके.

चाणक्य और चंद्रगुप्त की मुलाकात
चाणक्य को अपनी तलाश में एक युवा, साधारण पृष्ठभूमि वाला लेकिन असाधारण प्रतिभा और नेतृत्व क्षमता वाला लड़का मिला. वह कोई और नहीं भारत के यशस्वी सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य थे. चाणक्य ने चंद्रगुप्त की क्षमता को पहचाना और उन्हें अपना शिष्य बनाया. चाणक्य ने चंद्रगुप्त को न केवल युद्ध कौशल सिखाया, बल्कि उसे राजनीति, प्रशासन और कूटनीति का भी गहरा ज्ञान दिया, ताकि वह एक महान शासक भी बन सकें.

नंद वंश के खात्मे की बनाई रणनीति
चाणक्य और चंद्रगुप्त ने मिलकर नंद साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की विस्तृत रूप से कई योजनाएं बनाईं. उन्होंने पहले छोटे-छोटे गणराज्यों और सीमांत क्षेत्रों को अपने अधीन किया. साथ ही, अपनी एक शक्तिशाली सेना भी तैयार की, और स्थानीय जनता का समर्थन भी हासिल किया. फिर उन्होंने नंद वंश के अधीन आने वाले राज्यों और सेना की टुकड़ियों के खिलाफ छापामार युद्ध शुरू किया. साथ ही कई खुली लड़ाईयां भी लड़ी.

आखिरकार, चाणक्य की कुशल रणनीति और चंद्रगुप्त मौर्य के सैन्य नेतृत्व के तहत, उन्होंने अंतिम नंद शासक धनानंद पर आक्रमण किया और उनकी हत्या कर दी. विशाखदत्त द्वारा लिखित मुद्राराक्षस और कुछ यूनानी लेखकों के वृत्तांतों में इस घटना का उल्लेख मिलता है. इस निर्णायक जीत के साथ ही मगध पर नंद वंश का शासन समाप्त हो गया.

नंद वंश का अंत सिर्फ एक राजवंश का पतन नहीं था, बल्कि यह भारतीय इतिहास में एक नए, अधिक केंद्रीकृत और शक्तिशाली साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य की शुरुआत थी. चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य ने मिलकर एक ऐसे भारत की नींव रखी, जिसने भारत के एक बड़े हिस्से को एकजुट किया. और अपने साम्राज्य की सीमा अफगानिस्तान से लेकर म्यामांर की सीमा तक बढ़ाया.

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