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इंडियन नेवी कैसे करती है समुद्री सीमा की रक्षा? किसके आदेश पर रखी गई थी इसकी नींव; जानिए पूरा इतिहास

वैसे तो भारतीय नौसेना की बहादुरी के तमाम किस्से सभी ने सुने और पढ़े होंगे, लेकिन क्या आप इंडियन नेवी के इतिहास से वाकिफ हैं? इसकी नींव किसने, कब और क्यों रखी थी, इस तरह के कई वाजिब सवाल हम सभी के जेहन में उठते हैं. भारतीय नौसेना (Indian Navy) से जुड़ी कुछ ऐसी दिलचस्प कहानियों से आपको इस रिपोर्ट रूबरू करवा रहे हैं.

इंडियन नेवी कैसे करती है समुद्री सीमा की रक्षा? किसके आदेश पर रखी गई थी इसकी नींव; जानिए पूरा इतिहास
  • कितना पुराना है इंडियन नेवी का इतिहास
  • समुद्री सीमा की रक्षक है भारतीय नौसेना

History of Indian Navy: आपने समुद्री लुटेरों और डकैतों से जुड़ी काफी कहानियां सुनी होगी. इतिहास के पन्नों को पलटने पर ये मालूम चलता है कि आखिर भारतीय नौसेना की नींव कब और किस वजह से रखी गई थी. ये बात साल 1600 के आखिरी दिन यानि 31 दिसंबर की है, जब एक आदेश पर ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव रखी गई थी. इसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने समुद्री रक्षक के बेड़े का गठन किया था. इसकी पूरी कहानी समझने के लिए इंडियन नेवी के इतिहास को जानना होगा.

समुद्री लुटेरों से मुकाबले के लिए किया गया था गठन
ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने एक आदेश दिया, जिसके बाद 31 दिसंबर, 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव रखी गई थी. इसके करीब बाहर साल बाद समुद्री रक्षकों की तैनाती की गई. वो तारीख 5 सितंबर, 1612 थी. जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने समुद्री डकैतों और अपने दुश्मनों से मुकाबले के लिए एक छोटे से समुद्री रक्षक बेड़े का गठन किया. तब इसे 'ऑनरेबल ईस्ट इंडिया कंपनीज मरीन' नाम से जाना गया. गुजरात के सूरत के करीब स्वाली में इस बेडे के जहाज स्थित थे. कैम्बे की खाड़ी, तापती और नर्मदा नदी में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार की रक्षा करना इसकी जिम्मेदारी थी.

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जब नाम बदलकर कर दिया गया 'बॉम्बे मरीन'
वर्ष 1686 से कंपनी के व्यापार का केंद्र मुख्य रूप से बॉम्बे बन गया था. इसके बाद इस फोर्स का नाम भी बदलकर बॉम्बे मरीन कर दिया गया. इस फोर्स ने न सिर्फ पुर्तगालियों, डचों और फ्रेंच से लड़ने में अहम भूमिका निभाई बल्कि समुद्री डकैतों से निपटने में भी मदद की. बॉम्बे मरीन ने 1824 में बर्मा युद्ध में भी हिस्सा लेकर अपनी वीरता दिखायी।.

इंडियन नेवी को किन-किन नाम से जाना गया?
बॉम्बे मरीन का नाम साल 1830 में बदलकर 'मजेस्टीज इंडियन नेवी' किया गया. वर्ष 1877 के बाद नौसेना का नाम मजेस्टीज इंडियन मरीन किया गया. उस समय मरीन के दो डिविजन थे. पूर्वी डिविजन कलकत्ता में था जिसका काम बंगाल की खाड़ी पर नजर रखना. दूसरे डिविजन का नाम पश्चिमी डिविजन था जिसका मुख्यालय बॉम्बे था. पश्चिमी डिविजन का जिम्मेदारी थी अरब सागर की देखरेख करना. इसकी सेवाओं को देखते हुए 1892 में इसे रॉयल इंडियन मरीन का खिताब मिला. 1934 में इसका नाम बदलकर रॉयल इंडियन नेवी कर दिया गया. रॉयल इंडियन नेवी ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी अहम भूमिका निभायी.

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आजादी के बाद पड़ा 'इंडियन नेवी' नाम
वर्ष 1928 की बात है जब सब लेफ्टिनेंट डी.एन.मुखर्जी को रॉयल इंडियन मरीन में कमीशन किया गया था. डी.एन. मुखर्जी पहले भारतीय थे, जिन्हें रॉयल इंडियन मरीन में कमीशन मिला था. वो इंजिनियर ऑफिसर के पद पर नियुक्त हुए थे. आजादी के बाद नौसेना का आखिरी बार नाम बदला गया. तारीख थी 26 जनवरी, 1950 जब इसका नाम आखिरी बार बदला गया और इंडियन नेवी - भारतीय नौसेना (Indian Navy)  रखा गया. जिस वक्त भारत को आजादी मिली उस समय रॉयल इंडियन नेवी के बेड़े में 32 पोत थे, जो पुराने हो चुके थे. वहीं अगर अधिकारी और जवानों की बात करें तो उनकी संख्या 11 हजार थी.

कितनी ताकतवर है भारतीय नौसेना?
दुनिया की 10 सबसे शक्तिशाली नौसेनाओं में इंडियन नेवी का नाम भी शामिल है. भारती. नौसेना के पास काफी आधुनिक और आकर्षक जहाज, समबरीन और एयरक्राफ्ट की प्लीट है. नौसेना की क्षमता की बात करें तो मीडिया रिपोर्ट्स में ये बताया गया है कि इंडियन नेवी के पास 1 लाख 40 हजार से अधिक नौसैनिक हैं. इनमें सक्रिय और रिजर्व कार्मिक दोनों शामिल हैं. वहीं युद्धपोट की बात की जाए तो भारतीय नौसेना के पास विमानवाहक समेत करीब 300 पोत, और पनडुब्बियां हैं.

समुद्र में सबसे तेज चलने वाली मिसाइल भी इंडियन नेवी के बेडे में शामिल है. इस मिसाइल से दुश्मनों के पसीने छूटते हैं, जिसका नाम ब्रह्मोस है. ये एक ऐसी सुपरसॉनिक मिसाइल है जो पूरी दुनिया में पानी के नीचे चलने वाली सबसे तेज मिसाइल है.

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