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जहांगीर की एक चूक… ब्रिटिश हुकूमत ने जमा लिए पांव, जानें भारत में कब हुआ अंग्रेजों का आगमन

British rule in india: 16वीं सदी में अंग्रेज एक कंपनी के तहत आए. शुरुआती दौर में उन्होंने सूरत में अपनी फैक्ट्री खोली. फिर धीरे-धीरे भारत में अपनी सेना बना ली. इन्हीं सैनिकों के बलबूते अंग्रेजों ने कई युद्ध जीते. आइए भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआती दौर को आसान भाषा में जानते हैं.

जहांगीर की एक चूक… ब्रिटिश हुकूमत ने जमा लिए पांव, जानें भारत में कब हुआ अंग्रेजों का आगमन
  • स्वाली में अंग्रेजों और पुर्तगालियों के बीच हुई जंग
  • जहांगीर ने अंग्रेजों को फैक्ट्री लगाने की दी अनुमति

How british came to india: भारत की मिट्टी में इतिहास की कई कहानियां बसी हैं, लेकिन अंग्रेजों का आगमन एक ऐसी गाथा है, जो व्यापार के बहाने शुरू हुई और 200 साल के उपनिवेश में बदल गई. यह कहानी मसालों की खोज से लेकर नाविकों की जंग और चालाक व्यापारियों से शुरू हुई और ईस्ट इंडिया कंपनी से होते हुए ब्रिटिश शासन में तब्दील हो गई. ये व्यापारी भारत में व्यापार के बहाने आए और धोखे से देश पर कब्जा जमा लिया. हालांकि, एक वक्त के बाद भारत के वीर क्रांतिकारियों और सिपाहियों के सामने अंग्रेज घूटने टेकने को मजबूर हुए, और देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ. ऐसे में आइए अंग्रेजों के भारत में कदम रखने की कहानी को समझते हैं, और जानते हैं किन युद्धों के बाद भारत की सत्ता अंग्रेजों के हाथ में आई और जहांगीर से क्या चूक हुई.

मसालों की खोज से एक कंपनी का जन्म
16वीं सदी की शुरुआत थी. यूरोप में मसालों की मांग आसमान छू रही थी. काली मिर्च, दालचीनी, और लौंग जैसे भारतीय मसाले सोने से भी कीमती थे. पुर्तगाल और स्पेन पहले ही भारत के समुद्री रास्तों पर कब्जा जमाए बैठे थे. इंग्लैंड के व्यापारी पिछड़ रहे थे. तभी 31 दिसंबर 1600 को, क्वीन एलिजाबेथ प्रथम ने लंदन के कुछ व्यापारियों को ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) का शाही चार्टर दिया. मकसद था भारत और पूर्वी देशों से व्यापार. यह कंपनी न सिर्फ व्यापार करेगी, बल्कि अपनी सेना और जहाज भी रख सकती थी. इस तरह, एक छोटा सा व्यापारिक समूह भारत की ओर रवाना हुआ, जिसके पास नक्शा था, मगर उनके असली मकसद का किसी को अंदाजा नहीं था.

साल 1608, सूरत में पहला कदम
सपनों और जोखिम से भरे समुद्री सफर के बाद, 1608 में अंग्रेजी कप्तान विलियम हॉकिन्स अपने जहाज हेक्टर के साथ गुजरात के सूरत तट पर उतरे. उस समय सूरत मुगल साम्राज्य का सबसे व्यस्त बंदरगाह में से एक था, और भारत में मुगल बादशाह जहांगीर का शासन था. हॉकिन्स ने जहांगीर से मुलाकात की और व्यापार की अनुमति मांगी. लेकिन पुर्तगालियों का प्रभाव इतना था कि हॉकिन्स को खाली हाथ लौटना पड़ा.

फिर भी, अंग्रेज हार नहीं माने. साल 1612 में फिर लौटकर आए. तब उनका सामना पुर्तगालियों के नौसैनिकों से हुआ. अंग्रेज की ओर से कमान कप्तान थॉमस बेस्ट ने संभाली, और सूरत के पास स्वाली की लड़ाई में पुर्तगालियों को हराकर मुगल दरबार में अपनी ताकत दिखाई. यह एक नौसैनिक लड़ाई थी. फिर वही हुआ, जो अंग्रेज चाहते थे. साल 1613 में, जहांगीर ने अंग्रेजों को सूरत में पहली फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति दी. यह भारत में अंग्रेजों का पहला स्थायी ठिकाना था. जो एक तरह से अंग्रेजों के लिए व्यापारिक केंद्र बना.

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1615 से लेकर 1700 तक जमकर व्यापार
बदलते वक्त के साथ, अंग्रेजों ने भारत में अपनी पैंठ मजबूत की. साथ ही, व्यापार की दुनिया में धीरे-धीरे अपने पैर जमाने शुरू किए. साल 1615 में सर थॉमस ने जहांगीर से मुलाकात की और व्यापारिक रियायतें हासिल कीं. जिसका मकसद कम टैक्स देना और व्यापार को और व्यापक स्तर पर ले जाना था.

अगले कुछ वर्षों में ही, अंग्रेजों ने मद्रास (1639), बंबई (1668), और कलकत्ता (1690) में फैक्ट्रियां स्थापित कीं. इन जगहों पर वे मसाले, रेशम, कपास, और नील का व्यापार करते थे. 1668 में, चार्ल्स द्वितीय ने बंबई को EIC (ईस्ट इंडिया कंपनी) को सौंप दिया, जो पुर्तगालियों से विरासत में मिली थी. जैसे ही व्यापार में हाथ मजबूत हुए, अंग्रेजों ने स्थानीय शासकों मुगलों और मराठों के साथ चतुराई से गठजोड़ किए. लेकिन यह सिर्फ व्यापार की कहानी नहीं थी. ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी निजी सेना बनाई, जिसमें स्थानीय सिपाहियों को भर्ती किया गया. यह सेना व्यापार की रक्षा के लिए थी, जो आगे चलकर अंग्रेजी सत्ता का हथियार बनी.

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1757 में प्लासी का युद्ध और अंग्रेजी सत्ता की शुरुआत
अंग्रेजों की कहानी में असली मोड़ तब आया, जब 23 जून 1757 को प्लासी का युद्ध हुआ. यह जंग बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के बीच हुआ. जहां ईस्ट इंडिया कंपनी का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव कर रहा था. दोनों आमने आमने-सामने आए. सिराजुद्दौला की सेना संख्या में भारी थी, लेकिन इतिहासकारों के मुताबिक, क्लाइव ने उनके सेनापति मीर जाफर को रिश्वत देकर धोखा दिलवाया. इस युद्ध में सिराजुद्दौला हार गए, और मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया. बदले में, ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल की दीवानी यानी कर वसूलने का अधिकार मिल गया. यह सिर्फ एक युद्ध की जीत नहीं थी, बल्कि भारत में अंग्रेजी सत्ता की नींव थी. बंगाल की संपत्ति ने ईस्ट इंडिया को इतना धन दिया कि उसने अपनी सैन्य शक्ति बढ़ानी शुरू की.

1764 से लेकर 1800 अंग्रेजी सत्ता का विस्तार और युद्ध
प्लासी युद्ध के बाद, अंग्रेजों की भूख बढ़ती गई. साल 1764 में बक्सर के युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय और अवध के नवाब को हराया. इसके बाद, अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिली.

अब ईस्ट इंडिया कंपनी सिर्फ व्यापारी नहीं, बल्कि शासक बन रही थी. साल 1773 में ब्रिटिश संसद ने रेगुलेटिंग एक्ट पास किया, जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को कंट्रोल करने की कोशिश की. वॉरेन हेस्टिंग्स भारत के पहले गवर्नर-जनरल बने. इस दौरान, अंग्रेजों ने मराठों, मैसूर के टीपू सुल्तान, और अन्य स्थानीय शासकों के साथ युद्ध लड़े. टीपू सुल्तान ने मैसूर की चार लड़ाइयों में कड़ा मुकाबला किया, लेकिन 1799 में श्रीरंगपट्टनम में उनकी हार और मृत्यु ने दक्षिण भारत में अंग्रेजी सत्ता को मजबूत बना दिया.

1800 से लेकर 1857 तक उपनिवेश शासन का विस्तार 
19वीं सदी में, अंग्रेजों ने सहायक संधि और डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स जैसे हथकंडों से भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा किया. लॉर्ड वेलेजली और लॉर्ड डलहौजी जैसे गवर्नर-जनरल ने इस विस्तार को तेज किया. सहायक संधि के तहत, भारतीय रियासतों को अंग्रेजी सेना की मदद लेनी पड़ती थी, जिसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ती थी.

डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स के तहत, अगर कोई राजा बिना वारिस मरे, तो उसकी रियासत अंग्रेजों के पास चली जाती थी, जैसे झांसी और अवध. इस नीति ने भारतीयों में असंतोष पैदा किया. अंग्रेजों ने रेलवे, डाक, और तार प्रणाली शुरू की, लेकिन यह सब उनकी सुविधा और शासन के लिए था. भारतीयों को लगने लगा कि उनकी संस्कृति और अर्थव्यवस्था को नष्ट किया जा रहा है.

1857 में पहला स्वतंत्रता संग्राम
इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज 1857 की क्रांति शुरू हुई. जिसके पीछे की वजह न केवल अंग्रेजी शासकों का अत्याचार था, बल्कि एनफील्ड राइफल के कारतूस, जिनमें गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल भी था. जिसके चलते भारतीय सैनिक भड़क उठे. फिर क्या, जिसका अरसे से इंतजार था, वही हुआ. भारत में पहली बार आजादी का बिगुल फूंका गया.

10 मई 1857 को मेरठ में सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू किया, जो पूरे उत्तर भारत में आग की तरह फैल गया. मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, और नाना साहब जैसे वीर नायकों ने इस विद्रोह को नेतृत्व दिया. इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा गया. हालांकि, अंग्रेजों ने इसे बलपूर्वक दबा दिया, लेकिन इस आंदोलन ने क्रूर अंग्रेजी शासक की नींव हिला दी.

वहीं, 1858 में ब्रिटिश संसद ने ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन खत्म कर दिया, और भारत का प्रशासन ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया. लॉर्ड कैनिंग भारत के पहले वायसराय बने. यह विद्रोह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत था.

क्राउन का शासन और स्वतंत्रता की राह
1858 के बाद भारत औपचारिक रूप से ब्रिटिश उपनिवेश बन गया. अंग्रेजों ने भारत हर मोर्चे पर लूटा. चाहे वह खेती, उद्योग या संसाधनों का शोषण हो, लेकिन इस दौरान देश भर में स्वतंत्रता की चिंगारी भी भड़क रही थी. 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई. लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, और बिपिन चंद्र पाल जैसे नेताओं ने ‘लाल-बाल-पाल’ तिकड़ी बनाकर स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया. 20वीं सदी में, महात्मा गांधी ने अहिंसक आंदोलन शुरू किए. जैसे- असहयोग आंदोलन (1920), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930), और भारत छोड़ो आंदोलन (1942). सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज बनाकर सशस्त्र विद्रोह किया.

वहीं, द्वितीय विश्व युद्ध ने ब्रिटेन को कमजोर किया, और भारतीयों का दबाव बढ़ता गया. अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली. अंग्रेजी हकूमत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सत्ता भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपी. यह अंग्रेजी सत्ता के भारत में पांव पसारने की कहानी को संक्षेप में बताने की कोशिश है. जिनमें अभी कई किस्सों और किरदारों का जिक्र बाकी है. आने वाले लेखों में हम ऐसे ही आजादी से जुड़े कई किस्सों और गुमनाम नायकों से आपको रूबरू कराएंगे.

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