भारत की आजादी की लड़ाई में कई ऐसे वीर नेता हुए, जिन्होंने सिर्फ देश के अंदर ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी आवाज बुलंद की. उनमें से एक थे 'राजा महेन्द्र प्रताप सिंह'. वे एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन को चुनौती देने के लिए अफगानिस्तान, रूस और जर्मनी जैसे देशों में जाकर आजादी का समर्थन जुटाने की कोशिश की. उनकी यह अंतरराष्ट्रीय पहल भारत के आजादी के संघर्ष को एक नई दिशा देने वाली थी.
राजा महेन्द्र प्रताप सिंह की कहानी
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह का नाम एक अलग मुकाम रखता है. वे सिर्फ भारत के अंदर ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी आजादी के लिए बहुत जोरदार संघर्ष करते रहे. उनका लक्ष्य था ब्रिटिश हुकूमत को हराना और भारत को आजाद कराना. इसके लिए उन्होंने अफगानिस्तान, रूस और जर्मनी जैसे देशों से समर्थन लेने की कोशिश की.
अफगानिस्तान में अस्थायी भारत सरकार की स्थापना
1915 में राजा महेन्द्र प्रताप ने काबुल, अफगानिस्तान में भारत की पहली अस्थायी सरकार बनाई. वे इस सरकार के राष्ट्रपति थे. इस सरकार का उद्देश्य था ब्रिटिश भारत के खिलाफ एक राजनीतिक और सैन्य संघर्ष को बढ़ावा देना. इस अस्थायी सरकार में मौलाना बरकतुल्ला खान प्रधानमंत्री और मौलाना उबैदुल्ला सिंधी गृह मंत्री थे. शुरुआत में अफगान सरकार ने उनका समर्थन किया, लेकिन ब्रिटिश दबाव के कारण बाद में अफगानिस्तान ने सहयोग कम कर दिया. फिर भी इस सरकार ने आजादी की लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की आवाज को बुलंद किया.
रूस से मदद की कोशिश
1917 में रूस में हुई क्रांति के बाद राजा महेन्द्र प्रताप ने सोवियत सरकार के नेताओं से मुलाकात की. वे लेनिन और ट्रॉटस्की से मिले और उनसे भारत की आजादी के लिए मदद मांगी. उनका मानना था कि रूस की क्रांतिकारी सरकार ब्रिटिश शासन के खिलाफ हमारे लिए सहयोगी हो सकती है. हालांकि, यह प्रयास ज्यादा सफल नहीं हुआ, लेकिन यह दिखाता है कि राजा महेन्द्र प्रताप ने अपनी आजादी की लड़ाई में किसी भी सीमा को नहीं माना और विदेशों के बड़े नेताओं से भी संपर्क किया.
जर्मनी और अन्य देशों से संपर्क
पहले विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी ब्रिटेन का विरोधी था. राजा महेन्द्र प्रताप ने जर्मनी से हथियार और आर्थिक मदद की मांग की ताकि वे भारत में ब्रिटिश सत्ता को कमजोर कर सकें. इसके अलावा उन्होंने जापान, तुर्की और चीन के साथ भी संपर्क बनाए. उनका यह प्रयास यह दिखाता है कि वे भारत की आजादी के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के लिए लगातार लगे रहे.