भारत की आजादी की लड़ाई लंबी और कठिन थी. इसमें लाखों लोगों ने अलग-अलग तरीकों से योगदान दिया. कुछ ने आंदोलन में हिस्सा लिया, कुछ ने हथियार उठाए और कई ने जेल की कोठरियों में सालों तक कठिन सजा काटी. विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें लोग वीर सावरकर के नाम से जानते हैं, ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी थे. वे क्रांतिकारी, लेखक और विचारक थे. उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटिश हुकूमत की जेलों में बीता, जिसमें अंडमान की कुख्यात सेलुलर जेल यानी 'काला पानी' भी शामिल है.
गिरफ्तारी और सजा
1909 में नासिक के कलेक्टर ए.एम. जैक्सन की हत्या के मामले में सावरकर पर साजिश का आरोप लगा. उस समय वे लंदन में पढ़ाई कर रहे थे. 1910 में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर भारत लाया और अदालत ने उन्हें दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई, कुल 50 साल. सजा काटने के लिए उन्हें अंडमान की सेलुलर जेल भेजा गया.
काला पानी की सच्चाई
4 जुलाई 1911 को सावरकर पोर्ट ब्लेयर पहुंचे. यहां की जेल में जीवन बेहद कठिन था. कैदियों को अंधेरी और तंग कोठरियों में रखा जाता था. दिनभर कोल्हू में तेल पेरने, नारियल की रस्सी बनाने या पत्थर तोड़ने जैसे कठिन काम करवाए जाते थे. खाने की क्वालिटी खराब और मात्रा बेहद कम होती थी. मामूली गलती पर भी कठोर सजा दी जाती थी, जैसे कोड़े मारना या लंबे समय तक हथकड़ी-बेड़ियां पहनाना. इन परिस्थितियों में भी सावरकर ने खुद को टूटने नहीं दिया. उन्होंने पढ़ना-लिखना जारी रखा और साथी कैदियों को हिम्मत दी.
अंडमान से रतनागिरी
करीब 10 साल काला पानी में रहने के बाद 1921 में उन्हें अंडमान से रिहा किया गया. लेकिन उन्हें पूरी आजादी नहीं मिली. उन्हें महाराष्ट्र के रत्नागिरी जेल में रखा गया और उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लगाई गई.
रिहाई और आगे का जीवन
6 जनवरी 1924 को सावरकर को जेल से पूरी तरह रिहा किया गया. इसके बाद वे हिंदू महासभा के प्रमुख बने और राजनीति व समाज में सक्रिय रहे. उनके विचारों और फैसलों पर समय-समय पर बहस होती रही, लेकिन उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता.