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दुश्मन पर रॉकेट से खटाखट अटैक करेंगे ड्रोन, भारत के 'गरुड़' की उड़ान से कांपेगा पाकिस्तान!

गारुड़ एयरोस्पेस एक भारतीय कंपनी है जो उन्नत स्वदेशी ड्रोन बना रही है. ये ड्रोन सेना, बचाव कार्य और निगरानी जैसे कई क्षेत्रों में इस्तेमाल हो रहे हैं. कंपनी ने ऑपरेशन सिंधूर से सबक लेकर युद्ध-योग्य ड्रोन विकसित किए हैं और भारत को भविष्य के ड्रोन युद्धों के लिए तैयार कर रही है.

दुश्मन पर रॉकेट से खटाखट अटैक करेंगे ड्रोन, भारत के 'गरुड़' की उड़ान से कांपेगा पाकिस्तान!
  • भारत में विकसित हो रहे मल्टी-रोल ड्रोन
  • भविष्य के युद्धों के लिए तकनीकी तैयारी

21वीं सदी की जंग अब सिर्फ गोलियों से नहीं लड़ी जाएगी, बल्कि ड्रोन, डेटा और डिजिटली हथियारों से लड़ी जाएगी. हाल ही में 'ऑपरेशन सिंधूर' के दौरान भारत ने पहली बार ड्रोन युद्ध की असल तस्वीर देखी. इसी बीच गारुड़ एयरोस्पेस नाम की एक भारतीय कंपनी चर्चा में आई, जो भारत को आने वाले ड्रोन युद्धों के लिए तैयार कर रही है.

कहानी की शुरुआत: खेती से युद्ध क्षेत्र तक का सफर
गारुड़ एयरोस्पेस की शुरुआत 2015 में चेन्नई से हुई थी. उस समय कंपनी का फोकस पूरी तरह कृषि ड्रोन पर था, यानी खेतों में कीटनाशक छिड़काव, सर्वे और निगरानी जैसे काम. भारत के लगभग 40% एग्री-ड्रोन मार्केट पर गारुड़ ने कब्जा कर लिया था. लेकिन कुछ सालों में कंपनी ने महसूस किया कि भारत को सिर्फ खेती में नहीं, बल्कि सेना और सुरक्षा के क्षेत्र में भी ड्रोन की सख्त जरूरत है. यहीं से गारुड़ ने अपने सफर को नया मोड़ दिया.

ड्रोन की नई सोच: छोटे, सस्ते और बहुउपयोगी
गारुड़ के को-फाउंडर अग्निश्वर जयप्रकाश का मानना है कि युद्ध में अब 'छोटा सोचो, लेकिन असरदार बनो' की नीति जरूरी है. उन्होंने ऐसे ड्रोन बनाए जो ना सिर्फ हल्के और किफायती हैं, बल्कि एक साथ कई काम कर सकते हैं जैसे निगरानी, हमला, बचाव और सामान ढोना.

कंपनी द्वारा बनाए गए प्रमुख ड्रोन
माइंस डिटेक्शन ड्रोन: ये ड्रोन्स जमीन के नीचे छिपे बम को खोजन निकलने में सक्षम हैं.

रॉकेट लॉन्चर ड्रोन

कामिकेजी ड्रोन: दुश्मन के लक्ष्य पर टकरा कर खुद को विस्फोट करने वाले

फायरफाइटिंग और रेस्क्यू ड्रोन: इन ड्रोन्स का इस्तमाल बचाव कार्यों में ही किया जाता है.

वर्चुअल रियलिटी पायलट सिम्युलेटर: ड्रोन ऑपरेटर की ट्रेनिंग के लिए

'ऑपरेशन सिंधूर' से मिली सीख
जब भारत ने म्यांमार बॉर्डर पर 'ऑपरेशन सिंधूर' चलाया, तब पहली बार देखा गया कि भारतीय सेना को ड्रोन युद्ध में कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. उस समय भारत के कुछ ड्रोन तकनीकी रूप से कमजोर निकले और कई दुश्मन ड्रोन अधिक पेलोड और एडवांस सेंसर्स के साथ आए. यह अनुभव एक बड़ा अलार्म था और यही वह मोड़ था जब गारुड़ ने युद्ध-योग्य ड्रोन तैयार करने की रफ्तार तेज की.

मेड इन इंडिया ड्रोन टेक्नोलॉजी
गारुड़ का बड़ा फोकस है आत्मनिर्भर भारत पर. कंपनी की चेन्नई यूनिट में 35,000 स्क्वायर फीट का प्लांट है, जहां 80% ड्रोन पार्ट्स भारत में ही बनाए जा रहे हैं. जल्द ही एक और यूनिट तैयार होगी, जिसकी सालाना उत्पादन क्षमता 15,000 ड्रोन तक होगी. यह सब भारत सरकार की PLI (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) योजना और आत्मनिर्भर भारत मिशन का हिस्सा है.

स्किल और ट्रेनिंग भी साथ-साथ
गारुड़ ने अब तक देशभर में 300 से ज्यादा ड्रोन पायलट ट्रेनिंग सेंटर खोले हैं. DGCA (डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन) ने कंपनी को Train the Trainer प्रोग्राम के तहत ऑफिसियल भी किया है. इसका मकसद है ज्यादा से ज्यादा युवाओं को ड्रोन तकनीक में कुशल बनाना, जिससे भारत को तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा सके.

आर्थिक रूप से भी मजबूत होती कंपनी
गारुड़ एयरोस्पेस का रेवेन्यू FY22 में ₹15 करोड़ था, जो अब FY25 में ₹120 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है. कंपनी ने अभी हाल ही में ₹100 करोड़ की सीरीज B फंडिंग हासिल की है और अब इसका वैल्यूएशन ₹2,000 करोड़ के करीब पहुंच चुका है. कंपनी भविष्य में IPO लाने की भी तैयारी में है.

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शांतनु सिंह

प्रयागराज से ताल्लुक रखता हूं, जिसे एक जमाने में इलाहाबाद भी कहा जाता था. तिग्मांशु धुलिया के शब्दों में कहें तो वही बाबुओं और वकीलों वाला शहर. यहां से निकलकर देहरादून के दून बिजनेस स्कूल से मास कम... और पढ़ें

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