trendingNow1zeeHindustan2858698
Hindi news >> Zee Hindustan>> राष्ट्र
Advertisement

S-500 आसमान का नया 'काल', भारत की रक्षा के लिए कितना अहम यह मिसाइल सिस्टम? जानें खूबियां और डील की चुनौतियां

S-500 missile system: S-500 को दुनिया का सबसे एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम माना जाता है. जिसकी रेंज करीब 600 किमी तक है. यहां तक कि अंतरिक्ष के निचली कक्षा में भी टारगेट को निशाना बना सकता है.

S-500 आसमान का नया 'काल', भारत की रक्षा के लिए कितना अहम यह मिसाइल सिस्टम? जानें खूबियां और डील की चुनौतियां
  • S-500 डिफेंस की रेंज करीब 600 किमी
  • स्टील्थ फाइटर जेट को भी मारने में सक्षम

S-500 missile system: भारत अपने हवाई क्षेत्र को अभेद्य बनाने की लिए जुट चुका है. ऐसे में, देश की निगाह रूस के सबसे उन्नत S-500 'प्रोमेतेय' मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर है. यह S-400 का नेक्स्ट वर्जन है, जो हाइपरसोनिक हथियारों सहित किसी भी हवाई खतरे का सामना करने में सक्षम है. हालांकि, यह डील सिर्फ खरीद तक सीमित नहीं होगी. पश्चिमी प्रतिबंधों के दबाव के बीच रूस इस सिस्टम के सह-उत्पादन और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर जोर दे रहा है, जो भारत के लिए फायदे और चुनौतियां दोनों ला सकता है. आइए समझते हैं पूरा माजरा.

S-500 पर है भारत की नजर
S-500 'प्रोमेतेय' को रूस का सबसे एडवांस और भविष्य का वायु रक्षा प्रणाली माना जाता है, जिसे S-400 का नेक्स्ट वर्जन कहा जाता है. भारत S-400 का सफल ग्राहक रहा है, और S-500 में उसकी रुचि स्वाभाविक है.

बता दें, S-500 एक नेक्स्ट-जेनरेशन, लंबी दूरी की और उच्च-ऊंचाई वाली एंटी-एयरक्राफ्ट और एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम है. यह न केवल फाइटर जेट्स, हेलीकॉप्टरों और क्रूज मिसाइलों को निशाना बना सकता है, बल्कि यह अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBMs), हाइपरसोनिक मिसाइलों और यहां तक कि कम-कक्षा में उड़ने वाले उपग्रहों को भी मार गिराने में सक्षम है.

यह 600 किलोमीटर तक की दूरी तक के लक्ष्यों को भेद सकता है, जो इसे दुनिया के सबसे लंबी दूरी के एयर डिफेंस सिस्टम में से एक बनाता है. साथ ही, यह एडवांस स्टील्थ विमानों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने के लिए भी डिजाइन किया गया है.

पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच नई रणनीति
रूस फिलहाल पश्चिमी देशों के कड़े प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, S-500 जैसी उच्च तकनीक प्रणालियों के लिए केवल तैयार उत्पाद बेचने के बजाय 'सह-उत्पादन' और 'प्रौद्योगिकी हस्तांतरण' पर जोर दे रहा है. ऐसे में, यह कदम रूस को प्रतिबंधों के बावजूद राजस्व प्राप्त करने और अपने रक्षा उद्योग को बनाए रखने में मदद करेगा.

इतना ही नहीं, रूस दिखाना चाहता है कि वह वह सिर्फ विक्रेता नहीं, बल्कि एक भागीदार भी है, जो भविष्य में अन्य देशों के साथ भी ऐसे समझौतों का रास्ता खोलेगा.

भारत के लिए क्या हैं फायदे और चुनौतियां?
इससे भारत को हाइपरसोनिक और अन्य भविष्य के खतरों से निपटने के लिए एक अभूतपूर्व क्षमता मिलेगी. वहीं, सह-उत्पादन और ToT से भारत का 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर रक्षा' अभियान बेहद मजबूत होगा.

जहां तक चुनौतियों की बात है, अमेरिका के CAATSA के तहत प्रतिबंधों का खतरा बना रहेगा, जैसा कि S-400 डील के दौरान हुआ था. वहीं, S-500 एक अत्यंत महंगा सिस्टम होगा, जिससे भारत के रक्षा बजट पर दबाव पड़ सकता है. इतना ही नहीं, इस रूसी सिस्टम को मौजूदा भारतीय और पश्चिमी मूल के रक्षा नेटवर्कों में एकीकृत करना एक तकनीकी चुनौती होगी.

हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि S-500 के शामिल होते ही भारत की हवाई सुरक्षा कई गुना बढ़ जाएगी. जिससे भविष्य में किसी भी हमले को आसानी से हवा में ही नेस्तनाबूद किया जा सकेगा.

ये भी पढ़ें- पहाड़ों से लेकर मैदानों तक 'अपाचे' का दबदबा, भारतीय सेना के लिए आ रहे ये खूंखार हेलीकॉप्टर; दुश्मन के लिए हर मोर्चे पर मौत का साया

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.

Read More