S-400 maintenance deal: पाकिस्तान की हर नापाक हमले को हवा में ही नेस्तनाबूद करने वाले S-400 सिस्टम की ताकत से दुनिया वाकिफ है. दुनिया के सबसे एडवांस एयर डिफेंस माने जाने वाले S-400 की अब मेंटेनेंस की बारी है. दरअसल, रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने S-400 'ट्रायम्फ' एयर डिफेंस सिस्टम के लिए एक व्यापक वार्षिक रखरखाव अनुबंध को मंजूरी दे दी है. ऐसे में, भारत के उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर तैनात ये घातक मिसाइल सिस्टम हमेशा पूरी तरह से तैयार रहें और देश की हवाई सुरक्षा को 24x7 अभेद्य बनाए रखें.
क्यों जरूरी था यह मेंटेनेंस कॉन्ट्रैक्ट?
S-400 भारत की हवाई सुरक्षा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह चीन और पाकिस्तान जैसे देशों से पैदा होने वाले संभावित हवाई खतरों का मुकाबला करने के लिए एक निर्णायक हथियार है. भारत को रूस से मिलने वाले पांच स्क्वाड्रनों में से तीन पहले ही मिल चुके हैं, और बाकी दो के 2026 के मध्य तक आने की उम्मीद है.
ऐसे में, इन जटिल सिस्टम्स को हमेशा ऑपरेशनल रखना एक बड़ी चुनौती थी. यह मेंटेनेंस कॉन्ट्रैक्ट इसी चुनौती का समाधान है. इस समझौते का मुख्य लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि S-400 सिस्टम की उपलब्धता कम से कम 90% बनी रहे, ताकि किसी भी आपातकालीन स्थिति में इसकी क्षमता पर कोई असर न पड़े.
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मेंटेनेंस कॉन्ट्रैक्ट में क्या-क्या शामिल है?
रक्षा मंत्रालय ने यह व्यापक डील S-400 के मूल निर्माता, रूस की अल्माज-एंटेय कॉर्पोरेशन के साथ किया है. यह डील सिर्फ रखरखाव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई महत्वपूर्ण प्रावधान भी शामिल हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, रूसी टेक्नीशियन इंडियन एयरफोर्स के कर्मियों के साथ मिलकर इन प्रणालियों का रखरखाव करेंगे, जिससे किसी भी समस्या का तुरंत समाधान हो सके.
इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि महत्वपूर्ण कल-पुर्जे और डिवाइस लगातार मिलते रहें, जिससे सिस्टम के डाउनटाइम की संभावना कम हो. साथ ही, इस डील में इंडियन एयरफोर्स के जवानों को S-400 की जटिलताओं को समझने और उसे संचालित करने के लिए एडवांस ट्रेनिंग देना भी शामिल है.
क्या है S-400 की खूबियां?
S-400 को दुनिया की सबसे बेहतरीन एयर डिफेंस प्रणालियों में से एक माना जाता है. यह 400 किलोमीटर की दूरी तक दुश्मन के विमानों, मिसाइलों और ड्रोन को निशाना बना सकता है. साथ ही, यह एक साथ 300 लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है और एक साथ 36 लक्ष्यों पर मिसाइल दाग सकता है. वहीं, S-400 में अलग-अलग रेंज की मिसाइलें होती हैं, जो इसे छोटी, मध्यम और लंबी दूरी के खतरों से एक साथ निपटने की क्षमता देती हैं.
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