Indian Air Force fighter jets: इंडियन एयरफोर्स अपनी ताकत में लगातार इजाफा कर रहा है. अपने खेमे में न केवल आधुनिक मिसाइलों को शामिल कर रहा है. बल्कि, दुश्मन मुल्क की हवाई ताकत को देखते हुए, अपनी स्क्वाड्रन क्षमता को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. ऐसे में, भारतीय वायुसेना जल्द ही अपने खेमे में 114 नए फाइटर जेट को शामिल करने की तैयारी में है. जिसके डील की कुल लागत करीब 20 बिलियन डॉलर होने वाली है. ऐसे में, आइए जानते हैं क्या है इंडियन एयरफोर्स की तैयारी और डील को लेकर क्या अपडेट है.
इंडियन एयरफोर्स को 42 स्क्वाड्रनों की जरूरत
भारतीय वायुसेना पिछले कुछ समय से अपने लड़ाकू स्क्वाड्रनों की घटती संख्या को लेकर चिंता में थी. स्वीकृत 42 स्क्वाड्रनों के मुकाबले, IAF के पास फिलहाल लगभग 29-30 ही स्क्वाड्रन हैं.
ऐसे में, वायुसेना ने अपनी ताकत को फिर से मजबूत करने के लिए 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट की खरीद को अब तेज दिया है. वहीं, इस डील की कीमत 20 बिलियन डॉलर से अधिक होने का अनुमान है. जो न केवल भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता को बढ़ाएगा. बल्कि, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के तहत भारत को रक्षा उत्पादन का एक बड़ा हब बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा
क्यों चाहिए 114 नए फाइटर जेट?
भारतीय वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की कमी एक बड़ी चिंता का विषय रही है. पुराने MiG-21 जैसे फाइटर जेट्स अब रिटायर हो रहे हैं, और नए विमानों की कमी इस गैप को बढ़ा रही है.
वहीं, दो मोर्चों चीन और पाकिस्तान से संभावित खतरों को देखते हुए, IAF को अपनी पूरी क्षमता पर बने रहना बेहद जरूरी है. 114 MRFA विमानों की यह खरीद वायुसेना को न केवल नए अत्याधुनिक फाइटर जेट्स देगी, बल्कि स्क्वाड्रनों की संख्या में भी कमी को पूरा करने में मदद करेगी.
डील को लेकर क्या है SP मॉडल?
इस 114 विमानों की खरीद का सबसे अहम पहलू इसका 'एग्जीक्यूशन मॉडल' है, जिसे 'Strategic Partnership (SP) Model' कहा जा रहा है. इस मॉडल के तहत, एक विदेशी ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर के साथ पार्टनरशिप करेगा. जिनमें दसॉल्ट एविएशन, बोइंग, साब या यूरोफाइटर जैसी कंपनियां, भारत की किसी निजी क्षेत्र की कंपनी के साथ पार्टनरशिप करेंगी.
विदेशी कंपनियां किस तरह करेंगी मदद?
भारत लगातार मेक इन इंडिया के तहत रक्षा हथियारों को डेवलप करने पर जोर दे रहा है. ऐसे में, एसपी मॉडल के तहत विदेशी कंपनियां भी इस सपने को साकार करने में मददगार साबित होंगी.
बता दें, इस डील में टेक्नोलॉजी का बड़ा ट्रांसफर शामिल होगा. विदेशी कंपनी अपनी तकनीक भारतीय पार्टनर को देगी, जिससे विमानों का बड़ा हिस्सा भारत में ही बनाया जा सके. साथ ही, इन विमानों में एक बड़ा हिस्सा स्वदेशी कंटेंट यानी भारतीय पुर्जे और सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा.
इतना ही नहीं, विमानों के रख-रखाव, मरम्मत और ओवरहॉल की सुविधाएं भी भारत में ही स्थापित की जाएंगी, जिससे लंबे समय तक बिना विदेशी मदद के चलाने में मदद मिलेगी. बता दें, इस डील की कुल लागत करीब 20 बिलियन डॉलर से अधिक होने वाली है. जिसे हासिल करने के लिए दुनिया की कई दिग्गज कंपनियां लाइन में लगी हुई हैं.
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