Shubhanshu Shukla ISS mission return: भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की यह अंतरिक्ष उड़ान भारत के लिए ऐतिहासिक रही है. वह ISS जाने वाले पहले भारतीय और 1984 में राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले सिर्फ दूसरे भारतीय बने हैं. उनका यह अनुभव ISRO के आने वाले मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम गगनयान की योजना और उसे लागू करने में बहुत मदद करेगा. तो चलिए, जानते हैं इस खास मिशन से क्या सीख मिली और क्यों यह उड़ान भारत के लिए इतनी अहम है.
अंतरिक्ष में 18 दिन का अनोखा अनुभव
शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में 18 दिन बिताए हैं. इस दौरान, उन्होंने हर दिन 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखा, क्योंकि ISS पृथ्वी से लगभग 400 किलोमीटर ऊपर 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चक्कर लगा रहा है.
ISRO के मुताबिक, धरती पर लौटने के बाद शुक्ला (Shubhanshu Shukla return) लगभग 7 दिनों के पुनर्वास कार्यक्रम से गुजरेंगे. जिसकी देखरेख एक फ्लाइट सर्जन करेगा, ताकि वे धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के अनुकूल हो सकें.
ISRO का 550 करोड़ का निवेश
ISRO ने शुक्ला के ISS की यात्रा के लिए लगभग ₹550 करोड़ का भुगतान किया है. यह एक ऐसा अनुभव है जो अंतरिक्ष एजेंसी को अपने मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम गगनयान की योजना और उसे लागू करने में बहुत मदद करेगा, जो 2027 में ऑर्बिट में जाने वाला है. इस मिशन से मिली जानकारी गगनयान की तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.
वापसी की तैयारी और ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट का रोल
सोमवार को भारतीय समयानुसार दोपहर 2:25 बजे, शुक्ला और तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेसक्राफ्ट में सवार होने की उम्मीद है. वे अपने स्पेससूट पहनेंगे और धरती पर लौटने से पहले जरूरी टेस्ट करेंगे.
ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट धीरे-धीरे अपनी गति कम करेगा और कैलिफोर्निया के तट पर 'स्प्लैशडाउन' के लिए ग्रह के वातावरण में फिर से प्रवेश करेगा.
वहीं, NASA ने बताया कि ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट 580 पाउंड यानी करीब 263 किलोग्राम से अधिक कार्गो के साथ वापस लौटेगा, जिसमें NASA हार्डवेयर और पूरे मिशन के दौरान किए गए 60 से अधिक प्रयोगों का डेटा शामिल है.
ISS पर विज्ञान के खास प्रयोग
ISS में अपने प्रवास के दौरान, शुक्ला ने माइक्रोएल्गी एक्सपेरिमेंट पर काम किया. इसमें उन्होंने नमूने लगाए और स्टोर किए जो भविष्य में गहरे अंतरिक्ष मिशनों के लिए भोजन, ऑक्सीजन और बायोफ्यूल प्रदान कर सकते हैं.
NASA के बयान में कहा गया है कि माइक्रोएल्गी की लचीलापन उन्हें पृथ्वी से परे जीवन को बनाए रखने के लिए एक आशाजनक संपत्ति बनाती है.
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