जब भारत ने 1947 में आजादी हासिल की, तब देश में एक बहुत बड़ा रेलवे नेटवर्क मौजूद था. उस वक्त भारत की रेलवे लाइन लगभग 55,000 किलोमीटर लंबी थी. यह रेलवे सिर्फ सफर का जरिया ही नहीं, बल्कि देश को जोड़ने वाली सबसे बड़ी कड़ी भी थी. आइए जानते हैं उस समय भारतीय रेलवे कैसी थी और उसकी खासियतें क्या थीं.
1947 में भारतीय रेलवे का आकार और कामकाज
आजादी के समय भारतीय रेलवे का नेटवर्क करीब 55,000 किलोमीटर का था, जो देश के लगभग हर हिस्से को कवर करता था. उस वक्त रेलवे ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में थी, लेकिन यह भारत की आर्थिक और सामाजिक जिंदगी का अहम हिस्सा थी. रेलवे के जरिए लोगों का सफर आसान होता था और सामान भी दूर-दूर तक पहुंचता था. यह नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े और जटिल नेटवर्क्स में गिना जाता था.
रेल लाइनों और इंजन की जानकारी
रेलवे की कुल लाइनें लगभग 55,000 किलोमीटर लंबी थीं. देश में करीब 7,500 से ज्यादा रेलवे स्टेशन थे. मुख्य रूप से तीन तरह की पटरी इस्तेमाल होती थी, ब्रॉड गेज, मेट्रिक गेज, और नरो गेज. रेलवे में भाप और डीजल इंजन दोनों चलते थे. ब्रॉड गेज वाली पटरी ज्यादा लंबी और भारी ट्रेनों को आसानी से चलाने में मदद करती थी.
भारतीय रेलवे का प्रभाव देश पर
रेलवे ने देश की अर्थव्यवस्था को बहुत फायदा पहुंचाया. इससे व्यापार बढ़ा, रोजगार मिला और गांव-शहर आपस में जुड़े. कपड़ा, अनाज, खनिज जैसे सामान रेलवे से तेजी से कहीं भी पहुंच सकते थे. सामाजिक रूप से भी रेलवे ने लोगों को जोड़ने में मदद की. आजादी की लड़ाई में भी रेलवे ने लोगों को एकजुट किया.
आजादी के बाद रेलवे की चुनौतियां
1947 में देश बंटने के बाद रेलवे को भी दो हिस्सों में बांटना पड़ा. इससे कई मुश्किलें आईं, क्योंकि कुछ लाइनें और स्टेशन पाकिस्तान में चले गए. लेकिन भारतीय रेलवे ने जल्दी ही खुद को संभाला और देश के लिए काम करना जारी रखा.