आज अगर भारत की खुफिया एजेंसियों की बात की जाए तो सबसे पहले नाम आता है RAW का, यानी Research and Analysis Wing. लेकिन क्या आपको पता है कि RAW के बनने से पहले भी भारत के पास एक खुफिया एजेंसी थी? जो आज भी काम कर रही है. बहुत कम लोग इस एजंसी के बारे में जानते होंगे क्योंकि इसका नाम ज्यादा चर्चा में नहीं रहता. इस एजेंसी का नाम है IB, यानी Intelligence Bureau.
कब बनी IB और क्यों?
IB की शुरुआत 1887 में हुई थी, जब भारत ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था. इसका मुख्य मकसद था, ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हो रहे विद्रोहों और क्रांतिकारी गतिविधियों पर नजर रखना. उस वक्त इसका नाम था 'Indian Political Intelligence' (IPI). ब्रिटिश सरकार को डर था कि भारत में क्रांतिकारी संगठन जैसे गदर पार्टी, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) जैसे ग्रुप उनकी सत्ता को खतरे में डाल सकते हैं. ऐसे में IB ब्रिटिश सरकार की आंख और कान बन गई थी.
आजाद भारत में IB की भूमिका
1947 में भारत को आजादी मिली और उसी के साथ IB को भारतीय सरकार ने अपने अधीन कर लिया. जिसके बाद इसका काम बदला और अब ये संस्था देश की आंतरिक सुरक्षा (Internal Security) पर ध्यान देने लगी है. आज IB देश के हर राज्य में फैली हुई है और देश के अंदरूनी मामलों जैसे आतंकवाद, नक्सलवाद, सांप्रदायिक हिंसा, विदेशी जासूसी गतिविधियों पर नजर रखती है.
RAW और IB में क्या फर्क है?
IB भारत के भीतर हो रही गतिविधियों पर नजर रखती है, जबकि RAW को विदेशों में होने वाली गतिविधियों की जानकारी जुटाने के लिए बनाया गया था. RAW की स्थापना 1968 में हुई थी, जब भारत को लगा कि चीन और पाकिस्तान जैसे देशों से आने वाले खतरों को समझने के लिए एक अलग एजेंसी होनी चाहिए. लेकिन IB तब तक अकेली एजेंसी थी जो देश की सुरक्षा से जुड़ा खुफिया काम देखती थी, चाहे वो अंदर हो या बाहर.
IB क्यों रहता है चर्चा से दूर?
IB का काम करने का तरीका पूरी तरह से कॉन्फिडेंशियल होता है. इसके अफसरों के नाम सार्वजनिक नहीं होते और इसका बजट भी पार्लियामेंट में विस्तार से नहीं बताया जाता।. यही वजह है कि आम लोग इसके बारे में बहुत कम जानते हैं.