अंडमान-निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में एक जगह है, जिसका नाम सुनते ही आजादी के दौर की दर्दनाक यादें ताजा हो जाती हैं, 'सेलुलर जेल' जिसे लोग काला पानी के नाम से भी जानते हैं. यह सिर्फ एक जेल नहीं थी, बल्कि अंग्रेजों के जुल्म की सबसे बड़ी निशानी थी. यहां भारत के कई बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों को कैद कर बेरहमी से टार्चर किया गया था.
कब और क्यों बनी
इस जेल का निर्माण 1896 में शुरू हुआ और 1906 तक पूरा हुआ. इसका डिजाइन सात पंखों वाला था, जो एक सेंट्रल टॉवर से जुड़े थे. हर पंख में छोटे-छोटे सेल (कोठरी) थे, जहां कैदी बिल्कुल अकेले रहते थे. इस डिजाइन का मकसद यही था कि कैदियों को एक-दूसरे से मिलने या बात करने का मौका ही ना मिले.
काला पानी की सजा
अंग्रेज इस जेल में खासतौर पर उन लोगों को भेजते थे, जिन्होंने उनके खिलाफ आवाज उठाई हो, यानी हमारे स्वतंत्रता सेनानी. यहां की सजा सिर्फ जेल में बंद रहना नहीं थी, बल्कि दिन-रात कठोर मजदूरी, बेहद कम खाना, और हर पल मानसिक और शारीरिक यातनाएं. कई कैदी तो इन हालात में बीमार होकर मर गए, और कई को फांसी पर लटका दिया गया.
यहां रहे जाने-माने क्रांतिकारी
सेलुलर जेल में कई बड़े नाम कैद रहे, जैसे विनायक दामोदर सावरकर, बटुकेश्वर दत्त और कई अन्य. इन वीरों ने यहां रहकर भी अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद की. कई बार कैदियों ने भूख हड़ताल की, जिससे देशभर में हलचल मच गई.
कितने लोगों को फांसी हुई
इस बात के आंकड़े अलग-अलग सोर्सेज में देखने को मिलते हैं. सरकारी और भरोसेमंद दस्तावेज बताते हैं कि हजारों क्रांतिकारी यहां भेजे गए, जिनमें से कई ने यहीं दम तोड़ा. कुछ को फांसी दी गई, जबकि कई लोग यातनाओं और बीमारियों से मारे गए.
आज की सेलुलर जेल
आज सेलुलर जेल को नेशनल मॉन्यूमेंट का दर्जा दिया गया है. यहां म्यूजियम, फोटो गैलरी और 'लाइट एंड साउंड शो' है, जो आजादी की लड़ाई की कहानी सुनाते हैं. यह जगह हमें याद दिलाती है कि हमारी आजादी कितने बड़े बलिदानों के बाद मिली है.