trendingNow1zeeHindustan2852429
Hindi news >> Zee Hindustan>> राष्ट्र
Advertisement

Kargil War 1999: ना रुकूंगा, ना झुकूंगा… कारगिल के उस फौजी की दास्तान, जिसने अकेले ही छुड़ा दिए दुश्मनों के छक्के

Kargil War 1999: लेफ्टिनेंट मनोज पांडे ने करगिल युद्ध में अद्भुत साहस दिखाया. बटालिक सेक्टर में दुश्मन के 4 कैंप तबाह किए और अंतिम सांस तक लड़े. उनकी वीरता के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनके आखिरी शब्द थे, 'मैं जीतने तक नहीं रुकूंगा'.

Kargil War 1999: ना रुकूंगा, ना झुकूंगा… कारगिल के उस फौजी की दास्तान, जिसने अकेले ही छुड़ा दिए दुश्मनों के छक्के
  • करगिल युद्ध में दिखाया अद्भुत साहस
  • शहीद होने के बाद मिला परमवीर चक्र

Kargil War 1999: कई लोग फौज में जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जो इतिहास में नाम छोड़ जाते हैं. ये कहानी है एक ऐसे ही बहादुर फौजी की, जिसने अपने साहस, जज्बे और आखिरी सांस तक लड़ने वाले इरादे से देश का सिर ऊंचा कर दिया. लेफ्टिनेंट मनोज पांडे, जिन्होंने करगिल की ऊंचाइयों पर दुश्मन से लड़ते हुए वो कर दिखाया जो हर कोई नहीं कर सकता. 

सीतापुर से शुरू हुआ सफर
लेफ्टिनेंट मनोज पांडे का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रुधा गांव में हुआ था. उनके पिता गोपी चंद्र पांडे एक आम किसान थे और मां एक घरेलू महिला. मनोज बचपन से ही पढ़ाई में अच्छे थे और उनमें देशभक्ति का जज्बा शुरू से था. उन्होंने सैनिक स्कूल लखनऊ में पढ़ाई की, जो खासतौर पर फौज में जाने की तैयारी के लिए होता है. फिर वो NDA (नेशनल डिफेंस एकेडमी) गए और उसके बाद IMA (इंडियन मिलिट्री एकेडमी), देहरादून से ट्रेनिंग ली.

'मैं परमवीर चक्र जीतना चाहता हूं'
जब मनोज IMA में इंटरव्यू देने गए, तब उनसे पूछा गया 'तुम आर्मी में क्यों आना चाहते हो?' मनोज का जवाब था 'मैं परमवीर चक्र जीतना चाहता हूं'. मनोज सपना पूरा तो हुआ, लेकिन एक बड़ी कुर्बानी के साथ.

करगिल युद्ध में दिखाया असली दम
साल 1999, जब करगिल में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, तब लेफ्टिनेंट मनोज पांडे की पोस्टिंग 1/11 गोरखा राइफल्स में थी. उन्हें बटालिक सेक्टर में भेजा गया, जहां दुश्मन ऊंचाई वाले इलाकों पर कब्जा कर चुका था. मनोज और उनकी टीम को एक बहुत ही मुश्किल पोस्ट 'खलूबार पोस्ट' को वापस लेना था. ये काम आसान नहीं था क्योंकि रात में चढ़ाई करनी थी और सामने से लगातार फायरिंग हो रही थी. लेकिन मनोज रुके नहीं, उन्होंने एक-एक कर चार कैंप तबाह किए और कई दुश्मनों को ढेर किया. इस दौरान उन्हें गोलियां लगीं, कंधे और सिर पर गंभीर चोट भी आई. इसके बाद भी वो रुके नहीं. आखिरी कैंप पर पहुंचकर उन्होंने उसे भी उड़ाया और तब जमीन पर गिर पड़े. उनके आखिरी शब्द थे, 'ना रुकूंगा, ना हारूंगा, जीत के रहूंगा.'

शहीद होने के बाद मिला परमवीर चक्र
देश ने अपने इस वीर बेटे को खो तो दिया, लेकिन उनकी बहादुरी को हमेशा के लिए याद रखने के लिए उन्हें भारत के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया. आज देशभर में उनके नाम से स्कूल, पार्क, और सड़कें बनी हैं. उनके जैसे लोग सिर्फ नाम नहीं छोड़ते, वो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बन जाते हैं.

Read More