हमारे देश में हजारों गांव हैं, लेकिन कुछ गांव ऐसे भी हैं, जो अपनी खास परंपराओं और संस्कृति की वजह से चर्चा में रहते हैं. ऐसा ही एक अनोखा गांव है 'मत्तूर', जो कर्नाटक राज्य में स्थित है. आज के समय में जब लोग अंग्रेजी और हिंदी के पीछे भाग रहे हैं, तब यह गांव संस्कृत जैसी प्राचीन भाषा को अपने रोजमर्रा के जीवन में जीवित रखे हुए है. मत्तूर गांव में छोटे-बड़े, बच्चे-बूढ़े, सभी लोग आपस में संस्कृत में ही बातचीत करते हैं.
मत्तूर: जहां संस्कृत है जीवन की भाषा
मत्तूर गांव कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले में तुंगभद्रा नदी के किनारे बसा हुआ है. यह गांव भारत के उन चुनिंदा गांवों में से एक है, जहां संस्कृत न सिर्फ पूजा-पाठ की भाषा है, बल्कि लोगों की बोलचाल की भाषा भी है.
यहां के लोग संस्कृत को सिर्फ स्कूल तक ही सीमित नहीं रखते, बल्कि घरों में, दुकानों पर, खेतों में और यहां तक कि सड़क पर चलते हुए भी इसी भाषा में बात करते हैं. जब आप मत्तूर गांव में प्रवेश करते हैं, तो बोर्ड पर लिखा होता है 'स्वागतम्', जिसका मतलब होता है 'आपका स्वागत है'.
संस्कृत का पुनर्जन्म कैसे हुआ?
ये बात 1980 के दशक की है, जब एक बार संस्कृत भारती संस्था के कुछ विद्वान इस गांव में आए और संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए एक छोटा सा कैंप लगाया. गांववालों ने इस पहल को खूब पसंद किया और खुद आगे आकर संस्कृत सीखने लगे. देखते ही देखते ये अभियान पूरे गांव में फैल गया.
गांव के बच्चों को संस्कृत की शिक्षा बचपन से ही दी जाती है. सरकारी स्कूल में भी संस्कृत एक प्रमुख भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है. यही कारण है कि आज मत्तूर गांव के ज्यादातर लोग संस्कृत में ही बात करते हैं.
क्या आज भी बोलते हैं सभी संस्कृत?
हालांकि, आज की पीढ़ी टेक्नोलॉजी और नई भाषाओं की तरफ बढ़ रही है, लेकिन फिर भी मत्तूर गांव में संस्कृत की आत्मा आज भी जीवित है. युवा भी इस परंपरा को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं. संस्कृत बोलने की ये आदत अब उनकी पहचान बन चुकी है.