भारत का इतिहास ऐसे महान सम्राटों से भरा है, जिन्होंने अपने लंबे शासनकाल में देश को स्थिरता और समृद्धि प्रदान की. इन शासकों ने न केवल अपने साम्राज्यों का विस्तार किया, बल्कि कला, साहित्य और संस्कृति को भी अभूतपूर्व बढ़ावा दिया. ऐसे ही एक प्रभावशाली राजा थे, जिनका शासनकाल भारतीय इतिहास के सबसे लंबे अवधियों में से एक माना जाता है. आइए जानते हैं, कौन था वो राजा जिसने न केवल सबसे लंबे समय तक भारत पर राज किया, बल्कि अपने साम्राज्य को विकास की नई ऊंचाईयों पर भी ले गए.
कौन था वो राजा?
हम जिस राजा की बात कर रहे हैं. वो कोई और नहीं, बल्कि सम्राट अमोघवर्षा प्रथम ने करीब 814 ईस्वी से 878 ईस्वी तक शासन किया, जो करीब 64 वर्षों का एक असाधारण रूप से लंबा कार्यकाल है. इतने लंबे समय तक शासन करना उस युग में विरले ही होता था. वे राष्ट्रकूट वंश के सबसे प्रमुख शासकों में से एक थे. उन्होंने अपनी राजधानी मान्यखेत जो कि वर्तमान कर्नाटक में मलखेड़ से शासन किया, जो उनके साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र था. उनका शासनकाल राष्ट्रकूट शक्ति और प्रभाव के एक नए युग की शुरुआत था.
शांति और विद्वत्ता का संरक्षण
अमोघवर्षा प्रथम को उनके सैन्य पराक्रम से अधिक उनकी शांतिप्रियता और विद्वत्ता के संरक्षण के लिए जाना जाता है. उन्होने अपने शासनकाल में शांति और स्थिरता को प्राथमिकता दी. हालांकि, उन्हें कई आंतरिक विद्रोहों का सामना भी करना पड़ा और उन्होंने उसे सफलतापूर्वक दबाया भी, उनका ध्यान साम्राज्य के सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास पर अधिक केंद्रित था. वे स्वयं एक महान विद्वान थे और उनके दरबार में कई प्रसिद्ध विद्वान और कवियों का जमावड़ा लगा रहता था.
अमोघवर्षा प्रथम का साहित्य में योगदान
इतिहासकारों के मुताबिक, अमोघवर्षा प्रथम खुद एक प्रतिभाशाली लेखक थे. कन्नड़ भाषा में उनकी रचना 'कविराजमार्ग' को कन्नड़ साहित्य की सबसे प्रारंभिक और महत्वपूर्ण कृतियों में से एक माना जाता है. इसमें काव्यशास्त्र और साहित्य सिद्धांतों पर चर्चा की गई है.
वहीं संस्कृत में, उन्होंने 'प्रश्नोत्तरा रत्नमालिका' नामक एक ग्रंथ भी लिखा, जो नैतिक दर्शन और जैन धर्म से संबंधित प्रश्नों और उत्तरों की एक श्रृंखला है. धार्मिक रूप से, वे अत्यधिक सहिष्णु थे. बता दें, अमोघवर्षा प्रथम जैन धर्म के अनुयायी थे और अपने जीवन के अंतिम चरण में जैन भिक्षु भी बनें. हालांकि, उन्होने हिंदू धर्म और अन्य पंथों को भी समान रूप से संरक्षण और बढ़ावा दिया.
कैसा था अमोघवर्षा प्रथम का शासन?
अमोघवर्षा प्रथम का शासनकाल इतना प्रभावशाली था कि इसकी चर्चा विदेशी यात्रियों द्वारा भी की गई. प्रसिद्ध अरब व्यापारी सुलेमान ने अपने यात्रा वृत्तांतों में अमोघवर्षा के साम्राज्य के बारे में लिखा है. उसने राष्ट्रकूट साम्राज्य को उस समय के चार महान साम्राज्यों में से एक बताया और अमोघवर्षा की न्यायप्रियता और उनकी उदारता की प्रशंसा की. उनका लंबा और स्थिर शासनकाल राष्ट्रकूट साम्राज्य की प्रतिष्ठा को नई ऊंचाईयों तक ले गया, जिससे यह भारतीय इतिहास के एक गौरवशाली अध्याय के रूप में स्थापित हो गया.
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