भारत बहुत लंबे समय तक ब्रिटिश शासन में रहा. 1947 के करीब आते-आते आजादी की उम्मीदें और तेज हो गई थीं. उस समय ब्रिटिश सरकार ने तय किया कि भारत को जल्द से जल्द आजाद कराया जाए. इसी काम के लिए फरवरी 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का आखिरी वाइसराय नियुक्त किया गया. उस वक्त देश की राजनीति काफी नाजुक थी, क्योंकि अलग-अलग समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा था.
आजादी और देश का बंटवारा
माउंटबेटन ने आजादी की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया. 3 जून 1947 को उन्होंने भारत-पाकिस्तान विभाजन की योजना पेश की. इस योजना के तहत भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बनेंगे, और 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन खत्म होगा. विभाजन की वजह से लाखों लोग अपने घर छोड़कर नए देश की तरफ जाने लगे, जिससे हिंसा और दंगे हुए.
आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल
15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ. उसी दिन लॉर्ड माउंटबेटन ने आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल के रूप में शपथ ली. वे करीब एक साल तक इस पद पर रहे. 21 जून 1948 को भारत के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने उनका स्थान लिया. माउंटबेटन के कार्यकाल में भारत ने अपनी नई पहचान बनानी शुरू की.
विवाद और आलोचना
माउंटबेटन के फैसलों को लेकर अलग-अलग राय हैं. कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने आजादी दिलाने में तेजी दिखाई, लेकिन कई आलोचक मानते हैं कि विभाजन का समय बहुत कम था, जिसके कारण हिंसा और पलायन बढ़ा. विभाजन के दौरान हुई दुखद घटनाओं के लिए कई बार उनकी नीतियों की आलोचना हुई.
आखिरी दिन और विरासत
27 अगस्त 1979 को आयरलैंड में माउंटबेटन पर आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (IRA) ने बम हमला किया. इस हमले में वे और उनके परिवार के कई सदस्य मारे गए. इतिहास में उन्हें ब्रिटिश राज के आखिरी गवर्नर जनरल और आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.