trendingNow1zeeHindustan2876193
Hindi news >> Zee Hindustan>> राष्ट्र
Advertisement

भारत में पहली बार 'पूर्ण स्वतंत्रता' की आवाज कब और किसने उठाई थी? जानिए उस ऐतिहासिक घटना की पूरी कहानी

1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में मौलाना हसरत मोहानी ने पहली बार अंग्रेजों से 'पूर्ण स्वतंत्रता' की मांग रखी. उस समय कांग्रेस ने इसे स्वीकार नहीं किया, लेकिन 1929 में 'पूर्ण स्वराज' आधिकारिक लक्ष्य बना. मोहानी का यह साहस आजादी के इतिहास में खास स्थान रखता है.

भारत में पहली बार 'पूर्ण स्वतंत्रता' की आवाज कब और किसने उठाई थी? जानिए उस ऐतिहासिक घटना की पूरी कहानी
  • 1921 में पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता की मांग
  • हसरत मोहानी पहले कांग्रेस नेता थे 
  •  

भारत की आजादी की लड़ाई में कई बड़े नेता और कई तरह के विचार सामने आए. लेकिन 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में एक नेता ने पहली बार ब्रिटिश हुकूमत से 'पूर्ण स्वतंत्रता' की मांग रखी. ये नेता थे 'मौलाना हसरत मोहानी' कांग्रेस के वो पहले कार्यकर्ता, जिन्होंने साफ कहा कि देश को अधूरी नहीं, पूरी आजादी चाहिए.

1921 का अहमदाबाद अधिवेशन
साल 1921, अहमदाबाद में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन चल रहा था. उस समय पार्टी में स्वराज की बात होती थी, जिसका मतलब था, अंग्रेजों के शासन में रहते हुए भी स्वयं के मामलों को नियंत्रित करने का अधिकार होना. मौलाना हसरत मोहानी इस सोच से सहमत नहीं थे. उन्होंने मंच से प्रस्ताव रखा, भारत को पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, जिसमें ब्रिटिश सरकार का कोई हस्तक्षेप ना हो.

हसरत मोहानी कौन थे?
मौलाना हसरत मोहानी सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि उर्दू के मशहूर शायर और पत्रकार भी थे. वे आजादी के लिए कई बार जेल गए और 'इंकलाब जिंदाबाद' जैसे नारे दिए. उनकी विचारधारा साफ थी कि जब तक विदेशी शासन का एक भी असर रहेगा, तब तक आजादी अधूरी है.

कांग्रेस का रुख
हसरत मोहानी के इस प्रस्ताव को उस समय कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं का समर्थन नहीं मिला. महात्मा गांधी समेत कई बड़े नेता इसे समय से पहले और जोखिम भरा मानते थे. प्रस्ताव पास नहीं हुआ, लेकिन कांग्रेस के इतिहास में ये पहला मौका था जब 'पूर्ण स्वतंत्रता' की मांग आधिकारिक मंच से उठी.

आठ साल बाद बना आधिकारिक लक्ष्य
1929, लाहौर अधिवेशन, कांग्रेस ने 'पूर्ण स्वराज' को अपना लक्ष्य घोषित किया. 26 जनवरी 1930 को पहली बार पूर्ण स्वराज दिवस मनाया गया. यानी, हसरत मोहानी की मांग को आधिकारिक रूप लेने में करीब आठ साल लगे.

इतिहास में खास जगह
मौलाना हसरत मोहानी का नाम इसलिए खास है क्योंकि उन्होंने उस दौर में वो बात कहने की हिम्मत की, जिसे बाकी नेता बोलने से हिचकते थे. उनकी सोच और साहस ने आगे चलकर भारत की आजादी की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाई.

Read More