US-Ukraine minerals deal: अमेरिका के हाथ एक ऐसा दुर्लभ खजाना लगा है. जिसका उसे सालों से इंतजार था. अभी तक इसके लिए अमेरिका चीन के भरोसे रहता था. लेकिन ट्रे़ड वॉर के चलते दोनों के बीच दूरियां बढ़ गई हैं. दरअसल, अमेरिका-यूक्रेन के बीच ऐतिहासिक मिनिरल डील हुई है. यह डील ऐसे समय हुई है, जब अमेरिका यूक्रेन की मदद से हाथ लगभग खींच चुका था. इस डील से न केवल यूक्रेन को जंग में बढ़त मिलेगी, बल्कि अमेरिका की चीन पर निर्भरता भी कम होगी. दूसरी ओर, इस डील में एक ऐसा पेंच है, जहां ट्रंप-पुतिन के बीच टकराव हो सकता है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर इस मिनरल डील में ऐसा क्या है. जिससे दोनों देशों को फायदा होगा.यह डील दोनों देशों के ल इस मिनरल डील के क्या मायने हैं? इस डील के चलते अमेरिका-रूस कैसे आमने-सामने होंगे, और चीन पर अमेरिका की निर्भरता कैसे कम होगी? आइए आसान शब्दों में समझते हैं.
मिनरल डील में क्या बातें कही गईं?
इस डील के तहत अमेरिका और यूक्रेन ने एक संयुक्त Reconstruction Investment Fund बनाने पर सहमति जताई है. जिसका मतलब है, दोनों देशों को बराबरी का निर्णय लेने का अधिकार मिलेगा. इस फंड से पहले 10 वर्षों तक यूक्रेन के खनिज, गैस, तेल और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में निवेश किया जाएगा. इसके बाद मुनाफा दोनों देशों के बीच बांटा जा सकता है.
दी वीक की रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन के प्रधानमंत्री डेनिस श्मिगल ने साफ किया है कि यूक्रेन की ज़मीन, प्राकृतिक संसाधनों और इंफ्रास्ट्रक्चर पर उसका पूरा कंट्रोल बना रहेगा. साथ ही, यूक्रेन को किसी तरह का कर्ज नहीं चुकाना होगा. यह डील यूरोपीय यूनियन (EU) में यूक्रेन की संभावित एंट्री को भी प्रभावित नहीं करेगी.
मिनरल डील से US-यूक्रेन को क्या फायदा?
अभी तक, ट्रंप बतौर पीसमेकर की भूमिका में थे. वे दोनों देशों के बीच शांति समझौता कराने की कोशिश में थे. हालांकि, ट्रंप अब जाकर अपने सही लक्ष्य पर निशाना साधा है. जिससे न केवल अमेरिका को फायदा होगा. बल्कि, यूक्रेन के लिए फायदेमंद सौदा होगा. बत दें, यूक्रेन के पास दुनिया का लगभग 5% दुर्लभ खनिज संसाधन है, जिसमें लिथियम, टाइटेनियम, मैंगनीज और ग्रेफाइट शामिल हैं. ये खनिज इलेक्ट्रिक व्हीकल, डिफेंस टेक्नोलॉजी और एनर्जी सेक्टर के लिए अहम हैं. डील से यूक्रेन को लंबे समय का निवेश और आर्थिक स्थिरता मिलेगी.
दूसरी ओर, अमेरिका के लिए यह रणनीतिक लाभ का सौदा है. जो न केवल यूक्रेन में उसकी मजबूत मौजूदगी दर्ज होगी, बल्कि अमेरिका की डिफेंस और टेक्नोलॉजी सेक्टर्स के लिए चीन पर खनिज निर्भरता भी घटेगी. बता दें, अमेरिका दुर्लभ खनिजों के लिए चीन पर निर्भर रहता है. हालांकि, ट्रेड वॉर के चलते दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ गई हैं. ऐसे में यह डील यूक्रेन और अमेरिका दोनों के लिए फायदेमंद है.
रूस-यूक्रेन जंग पर क्या होगा इसका असर?
दोनों देशों के बीच जंग जारी है. तमाम कोशिशें के बावजूद युद्ध नहीं रुका. वहीं पिछले कुछ समय में यूक्रेन कई मोर्चे पर पिछड़ा है. वर्तमान में उसे सैन्य क्षमता के साथ-साथ आर्थिक मदद की भी जरूरत है. बता दें, रूस की ओर से 2022 में किए गए हमले के बाद यूक्रेन ने अमेरिकी समर्थन की मांग की. शुरुआती दौर में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने हर ओर से मदद मुहैया कराया. लेकिन ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद सुरक्षा सहायता को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बन गई. ऐसे में यह डील अमेरिका की ओर से एक फाइनेंसियल सपोर्ट माना जा रहा है. जिसका सीधा असर रूस-यूक्रेन जंग पर पड़ेगा.
हालांकि, इस समझौते में कोई सीधा सुरक्षा गारंटी क्लॉज नहीं है. यह डील सिर्फ अमेरिका के सपोर्ट की बात करता है. जानकारों के मुताबिक, यह डील पुतिन के लिए एक संदेश भी है. जिससे स्पष्ट है, अमेरिका यूक्रेन को पूरी तरह नहीं छोड़ेगा. साथ ही आर्थिक रूप से उसके साथ हमेशा खड़ा रहेगा.
मिनरल के इलाकों पर रूस का है कब्जा
इस डील की सबसे दिलचस्प कड़ी जमीन की है. जिस जमीन पर खनिज संसाधन हैं, उसका लगभग 53% हिस्सा उन क्षेत्रों में स्थित हैं जो इस समय रूस के कब्जे में हैं. इनमें डोनेट्स्क, लुहान्स्क और क्राइमिया जैसे इलाके शामिल हैं. जिसे पुतिन किसी भी कीमत पर यूक्रेन को नहीं देना चाहेंगे. हाल ही में पुतिन ने इन इलाकों पर रूस की पूर्ण मान्यता देने की शर्त रखी थी.
ट्रंप-पुतिन हो सकते हैं आमने-सामने
विशेषज्ञों के मुताबिक, इस डील के बाद रूस-अमेरिका के बीच टकराव बढ़ सकता है. ट्रंप का कहना है कि यूक्रेन ने जो भी सैन्य सहायता अब तक पाई है, उसका कंपनसेशन मिलना चाहिए. जिसके तहत यह डील हुई है. वहीं पुतिन पहले ही कह चुके हैं कि वो अपने कब्जे वाले क्षेत्रों को छोड़ने को तैयार नहीं हैं. अगर ट्रंप इस डील को सुरक्षा की गारंटी की जगह आर्थिक सहयोग मानते हैं, तो यह रूस के लिए चेतावनी होगी.
चीन का दुर्लभ खनिजों पर है एकाधिकार
चीन दुनिया की एक बड़ी शक्ति बनकर उभरा है. इस शक्ति के पीछे सबसे बड़ी वजह दुर्लभ खनिज है. रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन का दबदबा कायम है. वह दुनिया के 60-70% REE का खनन और 90% प्रोसेसिंग करता है. जिसमें लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, और डिस्प्रोसियम, मॉडर्न टेक्नोलॉजी, डिफेंस, और क्लीन एनर्जी शामिल हैं. वहीं, डिस्प्रोसियम और टर्बियम जैसे भारी दुर्लभ खनिजों में उसका कंट्रोल 100% तक है.
जिससे स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरी, पवन टरबाइन, मिसाइल सिस्टम, और लेजर टेक्नोलॉजी डेवलप करने में मदद मिलती है.
वहीं दूसरी ओर, यूएस अपनी जरूरतों का 70% चीन से आयात करता है. इतना ही नहीं, म्यांमार जैसे देशों से कच्चे खनिजों की रिफाइनिंग चीन में होती है. साथ ही, चीन का विदेशी खदानों पर भी कंट्रोल है. म्यांमार के अलावा डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, ऑस्ट्रेलिया और साउथ अमेरिका में भी निवेश के जरिए खनन को प्रभावित करता है.
दूसरी ओर, ट्रेड वॉर के शुरू होते ही, अप्रैल 2025 में चीन ने 7 प्रमुख REE पर एक्सपोर्ट बैन लगाया, जिससे अमेरिका के रक्षा उद्योग में हलचल मच गई. इससे F-47 जैसे जेट और मिसाइल सिस्टम के प्रोडक्शन पर सीधा असर पड़ा. ऐसे में, चीन का यह फैसला अमेरिका के लिए रणनीतिक खतरा बन गया है.
अमेरिका की चीन पर कम होगी निर्भरता
अमेरिका इस डील के जरिए एक वैकल्पिक खनिज आपूर्ति केंद्र तैयार कर रहा है. यूक्रेन में निवेश से अमेरिका अपनी जरूरतें पूरी कर सकता है और चीन पर निर्भरता घटा सकता है. हालांकि, अमेरिका की घरेलू रिफाइनिंग क्षमता अभी सीमित है. 2026-27 तक नई रिफाइनिंग फैसिलिटीज की योजना बनाई गई है. तब तक अमेरिका को खनन के साथ-साथ प्रोसेसिंग में भी इनोवेशन और सहयोग की ज़रूरत होगी.
ये भी पढ़ें- पाकिस्तान में एक दूसरे की जान की दुश्मन बनी सेना और पुलिस, सड़क पर हो गया बड़ा बवाल...कश्मीर का हुआ जिक्र
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.