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ऑपरेशन पोलो: वो 5 दिन जिसने इतिहास लिख दिया, जानें कैसे सरदार पटेल ने 565वीं रियासत को भारत में मिलाया

Operation Polo Hyderabad accession history: आजादी के वक्त भारत की तीन रियासतें खुद को स्वतंत्र रखना चाहती थीं. इनमें हैदराबाद एक ऐसी रियासत थी, जो पाकिस्तान में शामिल होने में दिलचस्पी दिखा रहा था. इतना ही नहीं, यहां की मिलिशिया ने हिंदू व उन मुस्लिमों पर भी बर्बरता करना शुरू कर दिया. जो भारत में रहने के पक्ष में थे.

ऑपरेशन पोलो: वो 5 दिन जिसने इतिहास लिख दिया, जानें कैसे सरदार पटेल ने 565वीं रियासत को भारत में मिलाया
  • 13 सितंबर 1948 को शुरू हुआ ऑपरेशन पोलो
  • हैदराबाद में रजाकारों की हिंसा ने बढ़ाया तनाव

Operation Polo Hyderabad accession history: जब 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ, तो कई रियासतों को भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल होने का विकल्प दिया गया. ज्यादातर रियासतें भारत के साथ आ गईं, लेकिन तीन बड़ी रियासतें अपनी अलग राह पर चलना चाहती थीं. जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद. इनमें से सबसे बड़ी चुनौती थी हैदराबाद, जो भारत के बीचों-बीच स्थित था. 

दरअसल हैदराबाद के शासक, निजाम मीर उस्मान अली खान ने एक साल के लिए भारत के साथ 'स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट' पर हस्ताक्षर किए, लेकिन उनका असली मकसद स्वतंत्र रहना या पाकिस्तान में शामिल होना था. अपनी इस जिद के चलते उन्होंने भारत के प्रस्तावों को लगातार ठुकराया, और इसी के साथ एक ऐसे संघर्ष की नींव रखी गई, जिसने भारतीय इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया.

निजाम की निजी सेना ने हैदराबाद में फैलाई दहशत
निजाम के इस फैसले के पीछे एक निजी सशस्त्र मिलिशिया का हाथ था, जिसे 'रजाकार' कहा जाता था. कासिम रिजवी की अगुवाई में यह मिलिशिया हैदराबाद में दहशत का दूसरा नाम बन गई थी. रजाकार अपनी ताकत के दम पर वहां के हिंदू और उन मुसलमानों को भी डराते-धमकाते थे, जो भारत में शामिल होने के पक्ष में थे.

उनकी हिंसा और अराजकता इस हद तक बढ़ गई थी कि भारत सरकार के पास सैन्य हस्तक्षेप के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था. सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत की सभी रियासतों को एक करने का बीड़ा उठाया था, वह इस स्थिति को चुपचाप नहीं देख सकते थे. उन्होंने निजाम और रजाकारों को सबक सिखाने का फैसला किया.

ऑपरेशन पोलो ने बदल दिया इतिहास
13 सितंबर, 1948 को भारत सरकार ने हैदराबाद के खिलाफ एक सैन्य कार्रवाई शुरू की, जिसे 'ऑपरेशन पोलो' नाम दिया गया. इस ऑपरेशन का नेतृत्व मेजर जनरल जे.एन. चौधरी कर रहे थे. भारतीय सेना की कार्रवाई इतनी तेज थी कि निजाम और रजाकारों को संभलने का मौका ही नहीं मिला.

भारतीय सेना ने पांच दिशाओं से हैदराबाद में प्रवेश किया और सिर्फ पांच दिनों के अंदर, 17 सितंबर, 1948 को निजाम को मजबूर होकर आत्मसमर्पण करना पड़ा. इस तरह, सरदार पटेल की दूरदर्शिता और दृढ़ता के कारण हैदराबाद का भारत में विलय संभव हो पाया.

इस पूरे घटनाक्रम का जिक्र वी.पी. मेनन की प्रसिद्ध किताब 'द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ द इंडियन स्टेट्स' में विस्तार से मिलता है, जो इस ऐतिहासिक प्रक्रिया के एक प्रमुख गवाह थे.

ऑपरेशन पोलो ने न सिर्फ एक रियासत को भारत में मिलाया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि भारत अपनी संप्रभुता और एकता को बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है.

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