आजादी की लड़ाई में कई आंदोलन हुए, लेकिन साल 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन सबसे खास था. यह वो समय था जब पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा उबल रहा था और इस गुस्से की सबसे बड़ी ताकत बने थे, देश के छात्र. कॉलेज और स्कूलों के युवा पढ़ाई छोड़कर सड़कों पर उतर आए, नारे लगाए, तिरंगा फहराया और अंग्रेज हुकूमत को खुली चुनौती दे दी.
कहानी की शुरुआत
साल 1942 में दूसरी विश्व युद्ध चल रहा था. ब्रिटिश सरकार भारत से संसाधन और सैनिक ले रही थी, लेकिन आजादी का कोई वादा नहीं कर रही थी. उसी समय क्रिप्स मिशन की नाकामी ने माहौल को और गरमा दिया. 8 अगस्त 1942 को मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान (आज का अगस्त क्रांति मैदान) से महात्मा गांधी ने 'करो या मरो' का नारा देते हुए भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान किया.
छात्रों की ऐतिहासिक भागीदारी
गांधीजी की गिरफ्तारी के अगले ही दिन देशभर में कॉलेज और स्कूल बंद हो गए. छात्र जुलूसों में उतर आए, अंग्रेज अफसरों के खिलाफ नारे लगे और कई सरकारी इमारतों पर तिरंगा फहराया गया. असम, बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हर जगह छात्र संगठनों ने आंदोलन को दिशा दी.
अरुणा आसफ अली की बहादुरी
9 अगस्त 1942 को गांधीजी और कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन बंबई में अरुणा आसफ अली गिरफ्तारी से बच निकलीं और गोवालिया टैंक मैदान में कांग्रेस का झंडा फहराया. यह घटना छात्रों के लिए प्रेरणा बन गई और आंदोलन में नई ऊर्जा आ गई.
अंग्रेजों का दमन और छात्रों का संघर्ष
आंदोलन को रोकने के लिए अंग्रेज सरकार ने लाठीचार्ज, गोलीबारी और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां कीं. हजारों छात्र जेल भेजे गए, कई शहीद हुए. लेकिन इससे आंदोलन रुका नहीं. छात्र अंडर ग्राउंड होकर पर्चे बांटते, गुप्त संदेश पहुंचाते और रेल व संचार लाइनों को बाधित करते रहे.