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भारत का ऐसा गांव जहां नहीं है कोई मंदिर-मस्जिद, अजब है यहां की प्रथाएं; जानें कहां

भारत की आत्मा गांवों में बसती है, जहां अलग-अलग धर्म व रिवाज का पालन होता है. लेकिन इन्हीं के बीच एक ऐसा गांव भी है, जहां एक भी मंदिर या मस्जिद नहीं है, और कर्म को ही सबकुछ माना जाता है.  

भारत का ऐसा गांव जहां नहीं है कोई मंदिर-मस्जिद, अजब है यहां की प्रथाएं; जानें कहां
  • इस गांव में कर्म को दी जाती है प्राथमिकता
  • गांव की कुल जनसंख्या 750 के करीब

भारत अपनी अनूठी विविधताओं और परंपराओं के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. यहां हर गांव, हर गली की अपनी एक अलग कहानी है. इसी विविधता के बीच, राजस्थान के चूरू जिले में एक ऐसा अनोखा गांव भी है, जहां धर्म को मानने का तरीका बिलकुल अलग है. यह गांव अपनी एक खास पहचान रखता है क्योंकि यहां न तो कोई मंदिर है और न ही कोई मस्जिद. हम बात कर रहे हैं चूरू जिले की लांबा की ढाणी की, जो अपनी असाधारण प्रथाओं और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए एक मिसाल है. आइए जानते हैं इस अनोखे गांव के बारे में.

प्रकृति के बेहद करीब है ये गांव
राजस्थान के चूरू में स्थित लांबा की ढाणी, एक ऐसा गांव है जहां आधुनिक दुनिया के शोरगुल से दूर, ग्रामीण जीवन की एक अनोखी झलक मिलती है. इस गांव की सबसे खास बात यह है कि यहां आपको कोई पारंपरिक मंदिर या मस्जिद नहीं दिखेगी. यह बात सुनने में भले ही थोड़ी अजीब लगे, लेकिन यह इस गांव की पहचान है. इसका मतलब यह नहीं कि यहां के लोग धार्मिक नहीं हैं, बल्कि उनकी आस्था और पूजा का तरीका इमारतों से कहीं अलग है. यहां ईश्वर को प्रकृति में, रिश्तों में और आपसी सहयोग में देखा जाता है.

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अनूठी परंपराएं और सामाजिक ताना-बाना
लांबा की ढाणी में जीवन धर्म के बाहरी प्रतीकों से परे, सादगी और समुदाय के मजबूत बंधनों पर केंद्रित है. गांव की प्रथाएं परंपराओं और आपसी समझ पर आधारित हैं. यहां के लोग आपसी भाईचारे और एक-दूसरे की मदद को सबसे ऊपर रखते हैं. साथ ही, गांव के सभी फैसले मिलकर लिए जाते हैं, जहां हर किसी की राय को महत्व दिया जाता है.

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गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि लांबा की ढाणी में पिछले 70 सालों से कोई मृत्युभोज नहीं हुआ है. साथ ही, गांव की जनसंख्या करीब 700 से 750 तक है. वहीं, गांव में करीब 60 से ज्यादा लोग पेंशनधारी हैं. इसके इतर कई युवा विदेशों में बतौर चिकित्सक कार्यरत हैं.

सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल
लांबा की ढाणी एक ऐसी जगह है जहां धार्मिक इमारतों की कमी ने शायद सांप्रदायिक सौहार्द को और भी गहरा कर दिया है. जब आस्था के अलग-अलग केंद्र नहीं होते, तो लोगों के बीच किसी भी तरह के धार्मिक भेदभाव की गुंजाइश भी कम हो जाती है.

यहां के लोग खुद को सबसे पहले गांव का निवासी मानते हैं, और उनका साझा जीवन उन्हें एक सूत्र में बांधता है. यह गांव आज के समय में एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि वास्तविक एकता मंदिरों या मस्जिदों में नहीं, बल्कि लोगों के दिलों और उनके आपसी सम्मान में बसती है. इस गांव के लोग कर्म को ही पूजा मानते हैं, यही वजह है कि यहां कोई भी मंदिर या मस्जिद नहीं है.

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