Rasiya Balam love story: प्यार एक ऐसा जहीन रिश्ता है, जो मुक्कमल हो जाए तो आबाद, और अधूरा रहा तो बर्बाद कर देता है. तभी तो जब इश्क के परवान का जिक्र होता है, तो तमाम प्रेमी जोड़ों की मिसाल दी जाती है. इसी बहाने हम आपको एक ऐसे ही इश्क से रूबरू कराते हैं. जिनके किस्से सुनने के बाद, आप लैला-मजनू क्या? शीरीं फरहाद और रोमियो-जूलियट तक को भूल जाएंगे. हम बात कर रहे हैं राजस्थान की धरती पर बसे बेहद खूबसूरत माउंट आबू की. यहां एक ऐसा शख्स हुआ, जिसे राजा की बेटी से बेइंतहा मोहब्बत हो गया. जब यह बात राजा को मालूम चली, तो उस शख्स का जो हश्र हुआ. उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है.
रसिया बालम कौन था?
राजस्थान में अरावली पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर बसा है, माउंट आबू. यहीं पर आज से 5,000 साल पहले एक छरहरा बदन वाला नौजवान लड़का पहुंचा. मानो कोई आजाद परिंदा एक लंबी उड़ान भरकर अपने ठीहे पर पहुंचा हो. लोगों ने जब उस शख्स से बातचीत की, तो मालूम चला वह एक कुशल मूर्तिकार है. नाम है रसिया बालम. वह काम की तलाश में यहां पर आया हुआ है.
फिर क्या? लोगों ने भी लगे हाथ उसे आजमाने की कोशिश की. फिर उसने जो कारीगरी दिखाई, उसकी गूंज पूरे राजस्थान में फैल गई. सिरोही देवस्थान के अध्यक्ष व इतिहासकार रघुवरी सिंह देवड़ा इस किस्से को हकीकत में बदलते हैं. वह बताते हैं, ‘रसिया बालम ने देलवाड़ा जैन मंदिर की मूर्तियों में अपनी कारीगरी दिखाई, जिसकी तारीफ पूरे मारवाड़-गोडवाड़ में होती थी’. इतना ही नहीं, रघुवरी सिंह अपनी किताब Mount Abu: A Historical Perspective में लिखते हैं, ‘रसिया बालम की कला ने उसे राजा के दरबार तक पहुंचाया, मगर उसका दिल राजकुमारी ने चुरा लिया.’
कुंवारी राजकुमारी का दिल चुराया
माउंट आबू की एक राजकुमारी, जिसे कुंवारी कन्या के नाम से जाना जाता है. वह रसिया बालम की कला और सादगी पर फिदा हो गई. कुछ किंवदंतियों में उसे देवी का रूप माना जाता है. दोनों की मुलाकात देलवाड़ा के आसपास हुई, जहां रसिया मंदिरों की मूर्तियां गढ़ रहा था. उसकी नक्काशी और लगन देखकर राजकुमारी दिल लगा बैठी.
रसिया बालम की प्रेम कहानी आज भी मारवाड़-गोडवाड़ जिले के लोकगीतों में जिंदा है. रसिया बालम पर लिखा गया लोक गीत ‘चरसियो आयो गढ़ आबू रे माय, देलवाड़ा आईने झाड़ो गाढ़ियो रे, वठे करियो कारीगरी रो काम, वठे बनाई मूरती शोभनी रे’ बेहद फेमस लोकगीत है. इस लोकगीत में रसिया बालम के माउंट आबू पहुंचने और नक्की झील खोदने तक की पूरी गाथा है.
मगर वो कहते हैं न. जो प्यार मुकम्मल हो जाए, वो प्यार ही क्या. यही हाल रसिया बालम का भी हुआ. जब ये बात राजा को मालूम चली, तो उसे यह मंजूर नहीं हुआ. रसिया बालम एक मजदूर था और कुंवारी कन्या एक राजघराने की बेटी. फिर भी तमाम जद्दोजहद के बाद राजा ने बात तो मानी, लेकिन एक ऐसी शर्त रखी, जिसे एक शख्स के लिए पूरा कर पाना नामुमकिन था.
एक रात में नाखूनों से झील खोदने की शर्त
जब राजा को बेटी के प्यार का पता चला, तो उसने रसिया बालम के सामने एक मुश्किल शर्त रखी. राजा ने कहा, ‘अगर तुम एक रात में बिना किसी औजार के अपने नाखूनों से एक झील खोद दो, तो मैं अपनी बेटी की शादी तुमसे कर दूंगा.’ यह शर्त नामुमकिन थी, क्योंकि माउंट आबू की चट्टानी जमीन को खोदना कोई आसान काम नहीं था. लेकिन रसिया बालम, जिसे कुछ लोग शिव का अवतार मानते हैं, उसने इस चुनौती को मुस्कुराते हुए स्वीकार किया.
फिर वही हुआ, जो ऊपर वाले को मंजूर था. कहानियों में जिक्र मिलता है कि ‘रसिया बालम ने राजकुमारी से शादी के लिए रातभर मेहनत की और नक्की झील खोद डाली’.
एक छल और रसिया बालम का दर्दनाक अंत
नामुमकिन से काम मुमकिन बनाने वाले रसिया बालम ने शर्त पूरी कर ली. वह उसी रात राजा के पास खबर देने के लिए निकला. हालांकि, राजा के अलावा एक कोई और भी था, जो एक मजूदर और राजकुमारी के प्यार को मुकम्मल नहीं होने देना चाहता था. वह कोई और नहीं, राजकुमारी की मां थी.
जब रसिया बालम राजा के पास पहुंचने ही वाला था कि रास्ते में उसे मुर्गे की आवाज सुनाई दी. रसिया बालम ने जैसे ही यह आवाज सुनी. वह उदास और हैरान रह गया. उसने मान लिया कि सुबह हो चुकी है और वह राजा की शर्त को हार गया है. पर उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसके साथ छल हुआ है.
दरअसल, मुर्गे की आवाज सच नहीं थी. यह आवाज राजकुमारी की मां ने निकाला था. जिससे रसिया को लगा कि सूरज निकल आया और वह शर्त हार गया. निराश रसिया बालम को जब मां के छल का पता चला, तो उसने श्राप दिया कि राजकुमारी की मां पत्थर बन जाए. इसके बाद रसिया और राजकुमारी भी पत्थर की मूर्तियों में बदल गए. कुछ किंवदंतियों में कहा जाता है कि रसिया ने अपने प्राण त्याग दिए, और राजकुमारी भी उसके बिना जी न सकी.
कहां है नक्की झील?
नक्की झील समुद्र तल से 1,200 मीटर की ऊंचाई पर है, आज माउंट आबू का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र है. 2.5 किलोमीटर के दायरे में फैली ये झील राजस्थान की सबसे ऊंची झील है. लोककथाओं के मुताबिक, रसिया बालम ने अपने नाखूनों से इसे एक रात में खोदा, जिसकी वजह से इसका नाम ‘नख की झील’ पड़ा, जो बाद में नक्की झील हो गया.
स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक, ‘नक्की झील रसिया बालम और राजकुमारी के अधूरे प्यार की एकमात्र निशानी है.’ झील के पास एक पार्क और बोटिंग की सुविधा है, जहां पर्यटक इस प्रेम कहानी को याद करते हैं. वहीं, वैलेंटाइन डे जैसे मौकों पर प्रेमी युगल का हुजूम उमड़ पड़ता है.
रसिया बालम-कुंवारी कन्या मंदिर
माउंट आबू के देलवाड़ा में रसिया बालम-कुंवारी कन्या मंदिर आज भी इस प्रेम कहानी की गवाही देता है. 1101 में बना यह मंदिर गया माना जाता है, और महाराणा कुंभा ने 1453-1468 के बीच इसका जीर्णोद्धार करवाया था. मंदिर में रसिया और राजकुमारी की मूर्तियां हैं, जिन्हें शिव और देवी का रूप माना जाता है.
वहीं, प्रेमी जोड़े और नवविवाहित लोग यहां आशीर्वाद लेने आते हैं. एक मान्यता ये भी है कि राजकुमारी की मां की मूर्ति पर पत्थरों का ढेर लगा है, क्योंकि लोग उसकी साजिश के लिए उसे पत्थर मारते हैं. मदन जी ठाकुर मंदिर के पुजारी आज भी इसकी देखभाल करते हैं.
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