हम रोजमर्रा की जिंदगी में रुपया शब्द का इस्तेमाल करते हैं, कभी खरीदारी में, तो कभी पैसों की गिनती में. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस मुद्रा को 'रुपया' नाम आखिर किसने दिया? इसका जवाब छुपा है भारत के एक ऐसे शासक की कहानी में, जिसने सिर्फ कुछ साल राज किया, लेकिन उसकी नीतियों का असर सदियों तक देखने को मिला. उस शासक का नाम 'शेरशाह सूरी' था.
कौन था शेरशाह सूरी?
शेरशाह सूरी एक अफगान शासक था जिसने 1540 से 1545 तक भारत पर शासन किया. उसका असली नाम फरीद खान था, लेकिन एक बार अकेले ही शेर का सामना करने और उसे मारने के बाद उसे शेरशाह की उपाधि दी गई. उसने मुगलों को हराकर भारत पर अपना राज स्थापित किया और बहुत कम समय में बड़े-बड़े प्रशासनिक सुधार किए.
रुपया नाम की शुरुआत
शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल में जो सबसे बड़ा आर्थिक बदलाव किया, वह था, एक सटीक, स्थिर और स्टैंडर्ड मुद्रा प्रणाली की शुरुआत. उसने एक चांदी का सिक्का जारी किया जिसका वजन लगभग 178 grains यानी 11.53 ग्राम था. इसी सिक्के को नाम दिया गया रुपया. रुपया शब्द संस्कृत के 'रूप्यकम्' से लिया गया है, जिसका मतलब होता है चांदी से बना हुआ. यानी शुरुआत में रुपया सिर्फ चांदी का सिक्का था. इसके साथ ही शेरशाह ने सोने का सिक्का (मोहर) और तांबे का सिक्का (दाम) भी चलन में लाया.
RBI ने भी मानी बात
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भी अपनी वेबसाइट पर शेरशाह सूरी को 'रुपया' नाम देने का श्रेय दिया है।. RBI के मुताबिक, शेरशाह सूरी की शुरू की गई मुद्रा प्रणाली इतनी मजबूत थी कि आगे आने वाले मुगल शासकों ने भी इसे ही अपनाया और इसे लंबे समय तक जारी रखा.
क्यों था ये बदलाव जरूरी?
उस दौर में अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह के सिक्के चलते थे, जिनका वजन और धातु की मात्रा अलग-अलग होती थी. इससे व्यापार और टैक्स वसूली में दिक्कत होती थी. शेरशाह ने एक जैसी मुद्रा शुरू करके पूरे साम्राज्य में व्यापार और प्रशासन को आसान बना दिया. यही नहीं, उसने सड़कों का निर्माण, डाक व्यवस्था और सरायों की स्थापना जैसे कई काम भी किए, जिससे देश में एकजुटता और स्थिरता आई.