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जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की बदली रणनीति, अब बिना ह्यूमन नेटवर्क के इस टेक्नोलॉजी से रच रहे साजिश

Terrorists strategy in J&K: ISI आतंकी संगठनों के लिए एक बड़ी योजना पर काम कर रही है. इसमें पीओके के अंदर आतंकी प्रशिक्षण शिविरों और लॉन्चिंग पैडों को ट्रांसफर करना शामिल है और साथ ही भारत के साथ संभावित सशस्त्र संघर्ष को देखते हुए भूमिगत बंकरों का भी निर्माण किया जा रहा है.

जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की बदली रणनीति, अब बिना ह्यूमन नेटवर्क के इस टेक्नोलॉजी से रच रहे साजिश

Jammu-Kashmi Terrorist New Strategy: जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी समूहों के लिए ड्रोन नए 'ओवरग्राउंड वर्कर्स' के रूप में उभरे हैं, जिससे सुरक्षा एजेंसियों के बीच चिंता पैदा हो गई है क्योंकि निगरानी और रसद के लिए मानव नेटवर्क से मानव रहित हवाई वाहनों की ओर यह बदलाव क्षेत्र के सुरक्षा परिदृश्य में एक नया समय स्थापित कर रहा है. अधिकारियों ने बुधवार को श्रीनगर में यह जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि ओवरग्राउंड वर्कर्स (OGW) के मानव नेटवर्क पर निर्भरता काफी कम हो गई है क्योंकि सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव के कारण उनमें से कई गिरफ्तार हो गए हैं या छिप गए हैं.

ISI की तैयारी
अधिकारियों ने बताया कि मानव नेटवर्क से ड्रोन तकनीक की ओर बदलाव असममित युद्ध में एक नया आयाम है, क्योंकि पाकिस्तान की ISI भी ड्रोन की मदद से आतंकवादियों को नियंत्रण रेखा के पार भेजने की अपनी कोशिशें तेज कर रही है.

उन्होंने बताया कि कश्मीर क्षेत्र के साथ-साथ किश्तवाड़ और राजौरी में भी ऊंचाई पर छिपे कुछ आतंकवादी इन ड्रोनों का इस्तेमाल सैनिकों की निगरानी के लिए कर रहे हैं. उन्होंने इसे पिछले आतंकवाद-रोधी अभियानों में मिली कम सफलता का एक कारण बताया. अधिकारियों ने बताया कि कुछ मामलों में, माना जा रहा है कि ड्रोन जम्मू क्षेत्र के ऊंचाई वाले इलाकों में छिपे आतंकवादियों के लिए सूखा राशन ले जा रहे हैं.

कब से होने लगा जम्मू-कश्मीर में ड्रोन का यूज?
जम्मू-कश्मीर में महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने के लिए आतंकवादी समूहों द्वारा ड्रोन का इस्तेमाल 27 जून, 2021 को शुरू हुआ, जब दो मानवरहित हवाई वाहनों ने जम्मू हवाई अड्डे की इमारतों पर हमला किया, जिससे संघर्ष काफी बढ़ गया.

2017 के बाद ड्रोन का इस्तेमाल शुरू में नशीली दवाओं की तस्करी के लिए और बाद में पंजाब में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर हथियार गिराने के लिए किया गया. अधिकारियों ने बताया कि ये जम्मू-कश्मीर में सीधे हमलों के लिए उनके इस्तेमाल से पहले की टेस्टिंग रही होगी.

अधिकारियों ने कहा कि ISI घुसपैठ के प्रयासों से पहले सटीक वास्तविक समय स्थिति आकलन के लिए ड्रोन तकनीक का लाभ उठा रही है.

अधिकारियों ने यह भी बताया कि नई रणनीति के तहत, ISI नियंत्रण रेखा या अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर सेना की मौजूदगी की निगरानी, कमजोरियों की पहचान और इलाके का विश्लेषण करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर रही है ताकि आतंकवादियों को नियंत्रण रेखा पार करने में मदद मिल सके और साथ ही पकड़े जाने का जोखिम भी कम से कम हो. 

आतंकवादी संगठनों संग बैठक
IDRW की रिपोर्ट में अधिकारी के हवाले से कहा गया  'विश्वसनीय जानकारी मिली है कि इस साल मई के तीसरे हफ्ते में, ISI अधिकारियों और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद संगठनों के शीर्ष आतंकवादियों के बीच एक बैठक हुई थी, जिसमें भर्ती बढ़ाने और घुसपैठ की कोशिशों से पहले की स्थितियों पर नजर रखने के लिए नियंत्रण रेखा पर ड्रोन निगरानी के महत्व पर जोर दिया गया था.'

अधिकारियों ने बताया कि ISI आतंकी संगठनों के लिए एक विस्तृत योजना पर काम कर रही है, जिसमें पीओके के भीतर आतंकी प्रशिक्षण शिविरों और लॉन्चिंग पैडों को ट्रांसफर करना और भारत के साथ संभावित सशस्त्र संघर्ष की तैयारी में भूमिगत बंकरों का निर्माण शामिल था.

ड्रोन का खतरनाक अध्याय
ड्रोन तकनीक ने वैश्विक आतंकवाद में एक नया और खतरनाक अध्याय खोल दिया है, जहां अब आतंकी समूह खुफिया जानकारी जुटाने और विस्फोटकों की डिलीवरी समेत कई नापाक कार्रवाइयों के लिए UAVs का इस्तेमाल कर रहे हैं.

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