trendingNow1zeeHindustan2874860
Hindi news >> Zee Hindustan>> राष्ट्र
Advertisement

लाल किला नहीं, समुद्र की लहरों से लिखी गई थी आजादी की गाथा; 1946 का नौसेना विद्रोह, जिसने अंग्रेजों की नींव हिला दी

Royal Indian Navy Mutiny 1946: देश की आजादी में हर किसी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. लेकिन एक किस्सा रॉयल भारतीय नौसेना का भी है. जिनके विद्रोह ने अंग्रेजों की सत्ता पर आखिरी कील ठोंकी थी.

लाल किला नहीं, समुद्र की लहरों से लिखी गई थी आजादी की गाथा; 1946 का नौसेना विद्रोह, जिसने अंग्रेजों की नींव हिला दी
  • 1946 में नौसेना विद्रोह से हिली अंग्रेजी सत्ता
  • HMIS तलवार से शुरू हुई आजादी की लहर

Royal Indian Navy Mutiny 1946: देश की आजादी के लिए पूरा भारत एकजुट रहा. हालांकि, जब भी हम भारत की आजादी का किस्सा सुनते हैं, तो हमारे जेहन में अक्सर महात्मा गांधी के सत्याग्रह, भगत सिंह की शहादत और सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की तस्वीरें उभरती हैं. लेकिन हमारी आजादी की लड़ाई का एक ऐसा निर्णायक अध्याय भी है, जो समुद्र की लहरों से लिखा गया था. दरअसल, यह किस्सा है 1946 के शाही भारतीय नौसेना विद्रोह की. यह वह चिंगारी थी, जिसने ब्रिटिश राज की जड़ों को इस तरह से हिला दिया कि उन्हें यह यकीन हो गया कि अब भारत पर उनका राज ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएगा.

एक चिंगारी जो बन गई थी आग
बी.सी. दत्त की किताब ‘Mutiny of the Innocents’ के मुताबिक, यह सब 18 फरवरी, 1946 को मुंबई में शुरू हुआ. कारण कोई बड़ा राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि भारतीय नौसैनिकों के साथ होने वाला अपमानजनक व्यवहार था. उन्हें ब्रिटिश नौसैनिकों की तुलना में घटिया खाना दिया जाता था और उनके साथ भेदभाव होता था.

ऐसे में, एचएमआईएस तलवार (HMIS Talwar) नामक जहाज पर तैनात नौसैनिकों ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया. इस विद्रोह की खबर जंगल में आग की तरह फैली और जल्द ही मुंबई के लगभग सभी नौसैनिक अड्डों और जहाजों पर फैल गई. नौसैनिकों ने जहाजों और इमारतों से अंग्रेजों का झंडा उतारकर भारतीय तिरंगा, मुस्लिम लीग का हरा झंडा और लाल झंडा एक साथ फहरा दिया था.

इतना ही नहीं, उन्होंने सभी के लिए समान वेतन, बेहतर खाना, और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के पकड़े गए सैनिकों की रिहाई की मांग की. बता दें, बी.सी. दत्त खुद नेवी में जुनियर ऑफिसर के पद पर तैनात थे.

पूरे देश में फैली इंकलाब की गूंज
यह विद्रोह केवल मुंबई तक ही सीमित नहीं रहा. देखते ही देखते यह कराची, कलकत्ता, मद्रास और विशाखापत्तनम तक फैल गया, जिसमें करीब 20,000 नौसैनिकों ने हिस्सा लिया था. ब्रिटिश सरकार इस घटना से पूरी तरह हिल गई थी. उन्हें यह अहसास हो गया था कि अब वे अपनी ही भारतीय सेना पर भरोसा नहीं कर सकते हैं.

गौरतलब है कि नौसेना का यह विद्रोह, 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' के बाद ब्रिटिश राज पर सबसे बड़ा और सीधा हमला था. इतिहासकार यह मानते हैं कि इस विद्रोह ने अंग्रेजों की भारत छोड़ने की प्रक्रिया को और तेज कर दिया था, क्योंकि वे समझ गए थे कि अब भारत में शासन करना असंभव हो चुका है.

जब हिंदू और मुस्लिम एक साथ लड़े
इस विद्रोह की एक और खास बात थी, हिंदू और मुस्लिम सैनिकों की एकता. जिस समय देश में सांप्रदायिक तनाव चरम पर था, उस समय ये नौसैनिक बिना किसी भेदभाव के एक साथ ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ रहे थे. उन्होंने यह साबित कर दिया था कि आजादी की लड़ाई में धर्म कोई बाधा नहीं है.

हालांकि, बाद में सरदार वल्लभभाई पटेल और मुहम्मद अली जिन्ना जैसे बड़े नेताओं के हस्तक्षेप के बाद 23 फरवरी को नौसैनिकों ने विद्रोह कम कर दिया, लेकिन तब तक यह संदेश पूरी दुनिया में जा चुका था कि भारत अब अपनी आजादी के लिए पूरी तरह से तैयार है.

ये भी पढ़ेंं- NASA का घातक योद्धा Voyager 1: 40 साल बाद भी 'अंतरिक्ष' में जिंदा, जानें कैसे अरबों KM दूर से धरती पर भेज रहा संदेश

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.

Read More