रक्षाबंधन भारत का एक बेहद खास त्योहार है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके लंबे जीवन की कामना करती हैं. बदले में भाई अपनी बहनों की रक्षा का वादा करते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस त्योहार की शुरुआत कहां से हुई? क्या यह सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते तक ही सीमित है? दरअसल, रक्षाबंधन की जड़ें सिर्फ पारिवारिक नहीं बल्कि धार्मिक और ऐतिहासिक भी हैं.
सबसे पहले किसने मनाया रक्षाबंधन?
बहुत से लोग सोचते हैं कि रक्षाबंधन की शुरुआत सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते से जुड़ी है, लेकिन वामन पुराण में एक बहुत ही दिलचस्प कहानी मिलती है. इस ग्रंथ के अनुसार, रक्षाबंधन का पहला उदाहरण देवी लक्ष्मी और राजा बलि से जुड़ा है. कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी. बलि ने वामन को वचन दे दिया, लेकिन वामन ने अपने विशाल रूप में तीनों लोकों को नाप लिया और बलि को पाताल लोक भेज दिया. राजा बलि विष्णु भक्त थे, तो भगवान विष्णु ने उनके साथ रहने का वादा किया. इससे देवी लक्ष्मी चिंतित हो गईं, क्योंकि भगवान विष्णु बैकुंठ छोड़कर पाताल में रहने चले गए थे. उन्हें वापस लाने के लिए देवी लक्ष्मी ने एक योजना बनाई.
देवी लक्ष्मी और राखी की शुरुआत
लक्ष्मी जी एक सामान्य स्त्री का रूप लेकर राजा बलि के पास पहुंचीं और उन्हें राखी बांधी. बलि ने लक्ष्मी से पूछा कि वह कौन हैं, तो लक्ष्मी ने बताया कि वह उन्हें अपना भाई मानती हैं. बलि ने प्रसन्न होकर उन्हें अपनी बहन मान लिया और उन्हें एक उपहार देने को कहा. तभी लक्ष्मी जी ने अपनी असली पहचान बताई और कहा कि वह भगवान विष्णु की पत्नी हैं और उन्हें वापस बैकुंठ ले जाना चाहती हैं. बलि ने खुशी-खुशी भगवान विष्णु को जाने की अनुमति दे दी. इस तरह रक्षाबंधन का यह पहला उदाहरण एक भाई-बहन जैसे रिश्ते पर आधारित था, जिसमें राखी केवल एक धागा नहीं, बल्कि विश्वास और प्रेम का प्रतीक बनी.
रक्षाबंधन का असली मतलब
इस कथा से यह साफ होता है कि रक्षाबंधन सिर्फ खून के रिश्ते तक सीमित नहीं है. यह एक ऐसा बंधन है जो भावनाओं, आस्था और समर्पण से जुड़ा है. कोई भी किसी को राखी बांध सकता है अगर उनके दिल में एक-दूसरे के लिए सच्ची भावना और सुरक्षा का वादा हो.