Jaguar fighter jet crash reason: इंडियन एयरफोर्स के पास एक ऐसा मौका था जब उनके जगुआर फाइटर जेट्स (Jaguar Fighter Jets) को एक देसी इंजन मिल सकता था, जिससे वे और भी धाकड़ लड़ाकू विमान बन जाते. यहां तक कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने इन विमानों में स्वदेशी HTFE-40 इंजन लगाने का प्रस्ताव दिया था. आइए जानते हैं, क्या है ये पूरा मामला और जगुआर को देसी इंजन क्यों नहीं मिल पाया.
जगुआर के लिए क्यों था HTFE-40 इंजन खास?
HTFE-40 को HTFE-25 के एक आफ्टरबर्निंग वेरिएंट के रूप में देखा गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, HTFE-40 को खास तौर पर आफ्टरबर्नर के साथ लगभग 40 kN थ्रस्ट देने के लिए बनाया गया था, जो ट्विन-इंजन जगुआर स्ट्राइक एयरक्राफ्ट के इंजन बदलने के प्रोग्राम के लिए एकदम सही था.
कुछ समय पहले ही, HAL ने HTFE-40 इंजन को जगुआर बेड़े को शक्ति देने वाले मौजूदा रोल्स-रॉयस/टर्बोमेका एडोर इंजनों के संभावित स्वदेशी विकल्प के रूप में पेश किया था. एडोर इंजनों को लगातार सप्लाई चेन की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि रोल्स-रॉयस ने धीरे-धीरे पुराने इंजन सीरीज के लिए उत्पादन बंद कर दिया था.
IAF ने क्यों नहीं दिखाया उत्साह?
हालांकि, इस चुनौती को उठाने के लिए HAL की इच्छा के बावजूद, इंडियन एयरफोर्स ने इस प्रोजेक्ट के लिए ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया. दरअसल, जगुआर बेड़े को 2035 तक रिटायर करने की योजना के साथ IAF ने आकलन किया कि एक नए इंजन विकास कार्यक्रम में निवेश करने से समय पर रिटर्न नहीं मिलेगा.
एक री-इंजनिंग पहल को पूरा होने में 4-5 साल लग सकते हैं. ऐसे अपग्रेडेड एयरक्राफ्ट 2030 के आसपास ही सेवा में आ पाते. तब तक, बेड़ा अपने लाइफ साइकल के अंत के करीब पहुंच रहा होता, जिससे ये फैसला किसी भी तरह लाभकारी नहीं होता.
जगुआर की मजबूती, इंजन की कमजोरी
जगुआर का मजबूत एयरफ्रेम और लो-लेवल स्ट्राइक क्षमता IAF की लिस्ट में एक घाकत लड़ाकू विमान रहा है. फिर भी, इसके पुराने होते इंजन एक महत्वपूर्ण कमजोरी बने हुए हैं.
सीमित स्पेयर, कम OEM सपोर्ट यानी जिस कंपनी द्वारा खरीदा गया, उससे द्वारा सपोर्ट न मिलना, और साथ ही बढ़ती रखरखाव की मुश्किलों के कारण लगातार संचालन से जुड़े जोखिम बढ़ रहे हैं. बता दें, पहली बार 1970 के दशक के अंत में जगुआर IAF सेवा में आया था.
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