Raksha Bandhan Rani Karnavati Humayun story: रक्षा बंधन का पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम और कर्तव्य का प्रतीक है. यह सिर्फ एक धागे का बंधन नहीं, बल्कि यह एक वादा है, एक सुरक्षा का वचन है. इस पर्व के पीछे कई कहानियां और परंपराएं जुड़ी हैं, लेकिन एक कहानी ऐसी भी है, जिसने इतिहास में भाई-बहन के रिश्ते की एक अद्भुत मिसाल पेश की. यह कहानी है चित्तौड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूं की, जिन्होंने एक राखी के माध्यम से धर्म और राजनीतिक शत्रुता की सीमाओं को पार कर दिया. यह कहानी आज भी रक्षा बंधन के महत्व को एक नया आयाम देती है.
जब चित्तौड़ पर मंडराया संकट
यह बात 16वीं सदी की है. चित्तौड़ पर गुजरात के शक्तिशाली सुल्तान बहादुर शाह ने हमला कर दिया था. उस समय चित्तौड़ की बागडोर रानी कर्णावती के हाथों में थी, जो महाराणा सांगा की विधवा थीं और अपने बेटे विक्रमादित्य की संरक्षिका थीं. रानी जानती थीं कि बहादुर शाह की विशाल सेना का सामना करना उनकी सेना के लिए बहुत मुश्किल था. जब चित्तौड़ के किले पर खतरा बढ़ गया, तो रानी ने सभी उम्मीदें खो दी थीं. ऐसे में, उन्होंने एक साहसी और अनूठा फैसला लिया.
एक धागे ने बदल दिया इतिहास
रानी कर्णावती ने अपनी आखिरी उम्मीद के रूप में, मुगल बादशाह हुमायूं को एक राखी भेजी. यह एक ऐसा प्रतीकात्मक कदम था, जिसके पीछे सिर्फ मदद की गुहार नहीं, बल्कि एक बहन का अपने भाई से किया गया अनुरोध था. रानी ने हुमायूं को अपना भाई मानकर, उनसे चित्तौड़ की रक्षा करने का वचन मांगा. इतिहास में ऐसी मिसाल मिलना बहुत मुश्किल था, क्योंकि मुगल और राजपूत शासकों के बीच अक्सर राजनीतिक और सैन्य टकराव होते रहते थे.
हुमायूं का जवाब और राखी का मान
जब हुमायूं को यह राखी मिली, तो वे इस भावनात्मक संदेश से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने तुरंत ही रानी कर्णावती की राखी को स्वीकार किया और उनकी मदद के लिए अपनी सेना लेकर चित्तौड़ की तरफ निकल पड़े. हालांकि, ऐतिहासिक दस्तावेजों में इस बात पर बहस होती है कि हुमायूं समय पर चित्तौड़ पहुंच पाए थे या नहीं. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि हुमायूं के पहुंचने से पहले ही रानी कर्णावती ने अपनी मान-मर्यादा की रक्षा के लिए जौहर कर लिया था.
लेकिन, इस बात में कोई संदेह नहीं है कि हुमायूं ने राखी के इस पवित्र रिश्ते का मान रखा. उन्होंने बाद में बहादुर शाह को हराया और रानी के बेटे को उनका खोया हुआ राज्य वापस दिलाया. आज भले ही इस कहानी के कुछ हिस्सों पर इतिहासकारों में मतभेद हो, लेकिन यह कहानी सदियों से रक्षा बंधन के पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है.
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