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भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को किसने बनाया? जब अशोक चक्र की जगह था चरखा, जानें इसका पूरा इतिहास

Indian National Flag history: आज हम आपको बताने जा रहे हैं उस शख्स के बारे में, जिन्होंने भारत के सबसे बड़े राष्ट्री...

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भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा
भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा

भारत में हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को फहराया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस गौरवशाली तिरंगे को बनाने के पीछे एक लंबा और दिलचस्प इतिहास छिपा हुआ है. इसकी शुरुआत कैसे हुई, किसने इसे बनाया और कैसे इसमें बदलाव होते गए, यह जानना हर भारतीय के लिए बहुत जरूरी है.

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पिंगली वेंकय्या ने बनाए 30 अलग-अलग डिजाइन
पिंगली वेंकय्या ने बनाए 30 अलग-अलग डिजाइन

पिंगली वेंकय्या का जन्म 2 अगस्त, 1876 को आंध्र प्रदेश में हुआ था. वेंकय्या एक भूविज्ञानी, लेखक और एक महान शिक्षाविद् भी थे. उन्होंने अपनी पढ़ाई कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से की थी. उन्होंने 1916 में 'ए नेशनल फ्लैग फॉर इंडिया' नामक एक किताब लिखी थी, जिसमें उन्होंने 30 अलग-अलग तरह के झंडों के डिजाइन पेश किए थे.

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पिंगली वेंकय्या की महात्मा गांधी से मुलाकात
पिंगली वेंकय्या की महात्मा गांधी से मुलाकात

दरअसल, पिंगली वेंकय्या का मानना था कि भारत का अपना एक राष्ट्रीय ध्वज होना चाहिए, जो देश को एक पहचान दे. 1921 में जब महात्मा गांधी विजयवाड़ा में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में थे, तब वेंकय्या ने उनसे मुलाकात की और उन्हें अपना बनाया हुआ एक झंडा दिखाया. यह शुरुआती झंडा लाल और हरे रंग का था, जो देश के दो प्रमुख समुदायों, हिंदू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता था. इस झंडे के बीच में चरखा बना हुआ था, जो महात्मा गांधी के आत्मनिर्भरता के विचार को दर्शाता था.

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गांधी जी का सुझाव और तिरंगे का स्वरूप
गांधी जी का सुझाव और तिरंगे का स्वरूप

वेंकय्या द्वारा बनाए गए झंडे को देखकर महात्मा गांधी बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने वेंकय्या को एक और सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि इस झंडे में एक सफेद पट्टी भी जोड़ी जानी चाहिए, जो देश के बाकी समुदायों के साथ-साथ शांति और सच्चाई का भी प्रतीक होगी. इस तरह, गांधी जी के सुझाव के बाद, लाल, सफेद और हरे रंग के साथ चरखे वाला यह झंडा कांग्रेस पार्टी का आधिकारिक झंडा बन गया.

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तिरंगे में जोड़ा गया केसरिया रंग
तिरंगे में जोड़ा गया केसरिया रंग

हालांकि, बाद में इस झंडे में बदलाव किए गए. लाल रंग को केसरिया रंग से बदल दिया गया, जो साहस और बलिदान का प्रतीक था. हरा रंग, जो पहले मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था, उसे बदलकर समृद्धि और विश्वास का प्रतीक बनाया गया. सफेद पट्टी को शांति और सच्चाई का प्रतीक रखा गया.

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अशोक चक्र और अंतिम रूप
अशोक चक्र और अंतिम रूप

आजादी से कुछ समय पहले, 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज के अंतिम स्वरूप को मंजूरी दी. इस समय, झंडे के बीच से चरखे को हटाकर उसकी जगह पर अशोक चक्र को शामिल किया गया, जिसे धर्म का चक्र भी कहा जाता है. इस चक्र में कुल 24 तीलियां हैं, जो जीवन की गति, विकास और 24 घंटों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इस तरह, पिंगली वेंकय्या द्वारा बनाया गया झंडा, कई बदलावों से गुजरते हुए, हमारे वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अस्तित्व में आया.

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संघर्ष, बलिदान और शांति का प्रतीक
संघर्ष, बलिदान और शांति का प्रतीक

ऐसे में, यह झंडा सिर्फ एक कपड़ा नहीं, बल्कि यह भारत के संघर्ष, बलिदान, शांति और प्रगति का एक जीता-जागता प्रतीक है. यही वजह है कि आजादी से लेकर ओलंपिक के मैदान तक हर जगह तिरंगा शान से लहरा रहा है.





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