Rabindranath Tagore Death Anniversary: रबींद्रनाथ टैगोर का निधन 80 साल की उम्र में हुआ था. जिन्हें 'गुरुदेव' और 'बं...
गुरुदेव टैगोर का बचपन से ही औपचारिक शिक्षा से मोहभंग हो गया था. वह एक आजाद आत्मा थे, जिन्हें स्कूल की चारदीवारी पसंद नहीं थी. उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उन्होंने ज्ञान से दूरी बना ली थी. वह घर पर ही एक विशाल पुस्तकालय में पढ़ते थे, जहां उन्होंने कई भाषाओं और विषयों का ज्ञान हासिल किया.
दुनिया में बहुत कम ऐसे लोग हुए हैं, जिनकी रचनाओं को एक से अधिक देश अपना राष्ट्रीय गान मानते हों. रबींद्रनाथ टैगोर ने यह अविश्वसनीय उपलब्धि हासिल की थी. उन्होंने भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' और बांग्लादेश का राष्ट्रगान 'आमार सोनार बांग्ला' लिखा था. कहा जाता है कि श्रीलंका के राष्ट्रीय गान 'श्रीलंका माता' के लिए भी टैगोर ने ही प्रेरणा दी थी.
देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को 'महात्मा' की उपाधि 'रबींद्रनाथ टैगोर ने ही दी थी. टैगोर गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने ही उन्हें यह सम्मानजनक नाम दिया था. जिसके बाद पूरी दुनिया गांधी जी को महात्मा गांधी के नाम से पुकारने लगी.
साल 1913 में, उन्हें उनके प्रसिद्ध काव्य संग्रह 'गीतांजलि' के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था. वह यह सम्मान पाने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे. लेकिन 2004 में उनका नोबेल मेडल चोरी हो गया, जिसे आज तक नहीं खोजा जा सका है.
टैगोर ने अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में पेंटिंग शुरू की थी. उनकी पेंटिंग में एक अनोखा और अमूर्त अंदाज दिखता है. उनकी कलाकृतियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत प्रसिद्धि हासिल की थी. कोलकाता के ठाकुरबाड़ी में आज भी उनकी कई पेंटिंग को सहेज कर रखा गया है. जहां दुनिया भर से उनके प्रशंसक देखने आते हैं.
आज उनकी पुण्यतिथि है. रबींद्रनाथ टैगोर अपने जीवन के आखिरी मुहाने पर बेहद बीमार थे. तमाम इलाज के बावजूद जब वे उबर नहीं पाएं, तो अपने आवास जोरासांको ठाकुरबाड़ी में ही रहने का फैसला लिया. यहीं पर उन्होंने अपने जीवन की आखिरी सांस ली. आज पूरा देश गुरुदेव की उस विरासत को याद कर रहा है, जिसने भारत को न केवल विश्व पटल पर एक नई पहचान दी, बल्कि कला, साहित्य और राजनीति के हर क्षेत्र में अपनी एक अमिट छाप भी छोड़ी.