आज भी वैज्ञानिक और पुरातत्वविद इन शहरों की खोज में लगे हुए हैं, और उनकी खोज में मिली चीजें इन कहानियों को सच साबित करती हैं. ये शहर ...
इन शहरों की कहानियां सिर्फ किंवदंतियां नहीं हैं, बल्कि ये हमें भारत के समुद्री इतिहास, व्यापारिक संबंधों और स्थापत्य कला की भी जानकारी देती हैं. ये हमें बताते हैं कि हमारा इतिहास कितना गहरा और व्यापक था.
भारत के सबसे प्रसिद्ध जलमग्न शहर की कहानी, भगवान कृष्ण से जुड़ी है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, द्वारका भगवान कृष्ण की राजधानी थी. जब कृष्ण ने अपनी लीला समाप्त की, तो द्वारका नगरी समंदर में डूब गई थी. आधुनिक विज्ञान ने भी इसकी पुष्टि की है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने 1980 के दशक में समुद्र के अंदर कई खोजें की. इन खोजों में पानी के अंदर दीवारें, पत्थर के लंगर और प्राचीन मिट्टी के बर्तनों के अवशेष मिले हैं, जो यह साबित करते हैं कि वहां कभी एक भव्य शहर मौजूद था.
तमिलनाडु में स्थित पूम्पुहार, जिसे कावेरीपूम्पट्टिनम भी कहते हैं, चोल राजवंश की एक प्राचीन और समृद्ध बंदरगाह नगरी थी. संगम साहित्य में इस शहर का जिक्र मिलता है, जहां इसे व्यापार और संस्कृति का केंद्र बताया गया है. माना जाता है कि यह शहर एक भयानक सुनामी या समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण जलमग्न हो गया था. पुरातत्वविदों ने समुद्री खोजों में इस शहर के बंदरगाह संरचनाएं और पुरानी इमारतों के अवशेषों का पता लगाया है, जिससे यह साबित होता है कि यहां कभी एक विशाल शहर और एक संपन्न बंदरगाह हुआ करता था.
महाबलीपुरम, अपने भव्य तट मंदिरों, जिन्हें शोर टेम्पल के लिए जाना जाता है. लेकिन यहां की कहानियां बताती हैं कि तट पर दिख रहे मंदिर, सात मंदिरों में से सिर्फ एक हिस्सा हैं. कहा जाता है कि बाकी के छह मंदिर भी समंदर में डूब गए थे. 2004 की सुनामी के बाद, जब समंदर का पानी कुछ समय के लिए पीछे हटा, तो तट के पास कुछ बड़े पत्थर और मंदिरों की नींव के हिस्से देखे गए थे. इन अवशेषों ने लोक कथाओं को सच साबित किया और बताया कि महाबलीपुरम एक बहुत बड़ा और विस्तृत शहर था.
ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर, अपनी स्थापत्य कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर के पास एक बड़ा शहर हुआ करता था, जो बाद में समुद्र के बढ़ते स्तर और तूफानों के कारण डूब गया. यह मंदिर अपनी विशालता और ऊंचाई के कारण नाविकों के लिए एक महत्वपूर्ण लैंडमार्क था. कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार भी कभी तट पर हुआ करता था, और समुद्र के कटाव ने शहर के बड़े हिस्से को डुबा दिया.
लोथल, सिंधु घाटी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर था. हालांकि यह पूरी तरह से समंदर में नहीं डूबा, लेकिन यह शहर भी प्राकृतिक आपदाओं और समुद्र के प्रकोप का शिकार हुआ था. पुरातत्वविदों को यहां पर बाढ़ और समुद्र के बढ़ते जलस्तर के सबूत मिले हैं. इतिहास बताता है कि लोथल कई बार बाढ़ से तबाह हुआ था, जिसके बाद इसे छोड़ दिया गया था. यह इस बात का एक स्पष्ट उदाहरण है कि प्राचीन समय में भी समंदर और जलवायु परिवर्तन ने शहरों के अस्तित्व को खत्म करने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी.