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ईरान में 'ग्लोबमास्टर' से होने वाला है बड़ा खेला? अमेरिका को 4 साल बाद तालिबान ने दी पनाह!

US-Iran Conflict: अफगान तालिबान ने बगराम एयर बेस अमेरिका को सौंप दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी C-17 ग्लोबमास्टर एयर बेस पर उतरा है. जिसके साथ सैन्य हथियार, उपकरण और CIA के डिप्टी चीफ के भी उतरने की सूचना है. इस कदम को ईरान पर न्यूक्लियर डील के लिए दबाव के तहत देखा जा रहा है.

ईरान में 'ग्लोबमास्टर' से होने वाला है बड़ा खेला? अमेरिका को 4 साल बाद तालिबान ने दी पनाह!
  • तालिबान ने बगराम एयर बेस अमेरिका को सौंपा
  • C-17 विमान से CIA टीम पहुंची अफगानिस्तान

US-Iran Conflict: साल 2021 में जिस अफगानिस्तान से अमेरिका ने अपनी सेना वापस बुलाई थी, उसी अफगानिस्तान के बगराम एयर बेस को तालिबान ने फिर से अमेरिका को सौंप दिया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिकी C-17 ग्लोबमास्टर विमान बगराम बेस पर लैंड किया है. जिसके साथ सैन्य उपकरण और वरिष्ठ खुफिया अधिकारी भी पहुंचे हैं. बताया जा रहा है कि इन अधिकारियों में CIA के डिप्टी चीफ भी शामिल हैं. अमेरिका की इस वापसी के पीछे ईरान पर दबाव बनाने की रणनीति देखी जा रही है. चूंकि अफगानिस्तान, ईरान की सीमा से सटा हुआ है. जिससे किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई की जा सकती है.

बगराम एयर बेस अमेरिका को सौंपा
खामा प्रेस न्यूज एजेंसी के मुताबिक, अफगान तालिबान ने एक चौंकाने वाला कदम उठाया है. तालिबान ने बगराम एयर बेस को फिर से अमेरिका को सौंप दिया है. सूत्रों के हवाले से खामा प्रेस ने बताया कि अमेरिकी वायुसेना का C-17 ग्लोबमास्टर विमान हाल ही में बेस पर उतरा है. विमान में सैन्य वाहन, आधुनिक हथियार और खुफिया अधिकारी शामिल थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA के डिप्टी चीफ भी इस विमान से आए हैं, जो इस ऑपरेशन की रणनीतिक अहमियत को दर्शाता है.

बगराम एयर बेस वही जगह है जहां अमेरिका ने 20 साल तक सैन्य ऑपरेशन चलाया था और जिसे 2021 में वापसी के वक्त पूरी तरह खाली कर दिया गया था.

4 साल पहले लौटे थे अमेरिकी सैनिक
अगस्त 2021 में अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने आखिरी सैनिकों को वापस बुलाया था. तब तालिबान ने पूरे देश पर कब्जा कर लिया था और बगराम बेस को अपने कंट्रोल में ले लिया. इस फैसले को अमेरिका की हार और हड़बड़ी में वापसी के रूप में देखा गया था.

लेकिन अब उसी तालिबान ने अमेरिका को दोबारा वह बेस सौंप दिया है, जिसे वह अपनी जीत का प्रतीक मानता था. इससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या तालिबान और अमेरिका के बीच गुप्त बातचीत हुई है? क्या यह एक रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत है? या ईरान पर नए सिरे से दबाव बनाने की कोशिश है.

अफगानिस्तान से लगता है ईरान का बॉर्डर
अमेरिका-तालिबान की इस जुगलबंदी के पीछे सबसे बड़ा कारण ईरान माना जा रहा है. बता दें अफगानिस्तान ईरान से सीधा सीमा साझा करता है. अगर अमेरिका यहां से अपनी सैन्य और खुफिया गतिविधियां संचालित करता है, तो ईरान पर कड़ा दबाव बन सकता है. वहीं बगराम एयरबेस से ईरान बॉर्डर की दूरी मात्र 1,000 किमी है. ऐसे में ईरान अब अमेरिका की मिसाइलों के जद में है.

वहीं विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका यहां से ईरान की गतिविधियों पर नजर रख सकता है, और ज़रूरत पड़ने पर रणनीतिक कार्रवाई भी कर सकता है. दूसरी ओर रूस, चीन और पाकिस्तान जैसे देश इस कदम को लेकर सतर्क हैं. यह वे देश हैं जिन्होंने हाल ही में ईरान से अपने संपर्क मजबूत किए हैं.

न्यूक्लियर डील के लिए बना रहा दबाव?
वर्तमान में अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील को लेकर तनाव चल रहा है. अमेरिका ने ईरान को मई तक का अल्टीमेटम दिया है कि वह डील पर सहमत हो, वरना परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे.

इस स्थिति में अफगानिस्तान में अमेरिका की वापसी को ईरान पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. कुछ जानकार मानते हैं कि तालिबान ने यह कदम अंतरराष्ट्रीय मान्यता और आर्थिक लाभ के उद्देश्य से उठाया है. वहीं दूसरी ओर, अमेरिका इससे दोहरा फायदा उठा सकता है. एक तरफ ईरान पर दबाव और दूसरी तरफ अफगान क्षेत्र में फिर से खुफिया उपस्थिति बढ़ाना.

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