China DF-21D and DF-26 Missiles: हिंद और प्रशांत महासागर में तेजी से गेम पलट रहा है. एक तरफ तो दुनिया के कई देश चीन को घेरने के लिए बिसात बिछा रही है. दूसरी तरफ, चीन को को मजबूत करने में लगा हुआ है. अब चीन एक बार फिर अपनी नई ताकत के साथ समुद्र में उतरा है. इससे सबसे अधिक खतरा अमेरिका के एयरक्राफ्ट कैरियर पर है. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सैन्य संतुलन को बदलने से अमेरिका और उसके सहयोगियों को दिक्कत हो गई है.
चीन की इन दो मिसाइलों ने पलटी बाजी
दरअसल, चीन ने अपनी DF-21D और DF-26 मिसाइलों को तैनात करके बाजी पलट दी है. इन मिसाइलों को 'कैरियर किलर' कहा जाता है, क्योंकि ये अमेरिकी एयरक्राफ्ट के लिए बड़ा खतरा हैं. इनके कारण अमेरिकी नौसेना की दशकों पुरानी समुद्री ताकत कमजोर पड़ रही है. यह स्थिति अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को अपनी रक्षा रणनीति पर फिर विचार करने के लिए मजबूर कर रही है.
चीनी मिसाइलें कितनी खतरनाक?
DF-21D और DF-26 मिसाइलें बेहद खतरनाक हैं. DF-21D मिसाइल की रेंज 1500 किलोमीटर तक है. इसकी सैटेलाइट नेविगेशन और टर्मिनल गाइडेंस सिस्टम इसे और घातक बनाते हैं. जबकि DF-26 की मारक क्षमता 4000 किलोमीटर तक है, जो न केवल समुद्री लक्ष्यों, बल्कि गुआम जैसे अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर भी हमला बोल सकती है. ये मिसाइलें पारंपरिक और परमाणु, दोनों तरह के हथियार ले जा सकती हैं.
अमेरिका ने बदली रणनीति
पहले अमेरिकी नौसेना बिना किसी चुनौती के समुद्र में कहीं भी जा सकती थी. लेकिन अब चीन की मिसाइलों ने पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र को जोखिम भरा बना दिया है. इन मिसाइलों के कारण अमेरिकी एयरक्राफ्ट को हमेशा हमले का डर रहता है. इससे अमेरिकी नौसेना को अपनी रणनीति बदलनी पड़ रही है. अब छोटे और तेज जहाजों पर ध्यान दिया जा रहा है, जो युद्ध क्षेत्र में अधिक सुरक्षित हों.
चीन की क्या स्ट्रेटेजी है?
चीन की मिसाइलें 'एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल' यानी A2/AD रणनीति का हिस्सा हैं. इस स्ट्रेटेजी का मकसद अमेरिकी सेना की गतिविधियों को प्रशांत महासागर में सीमित करना है. इसके लिए चीन निगरानी और खुफिया तंत्र का इस्तेमाल करता है, जिससे वह अमेरिकी नौसेना की हर गतिविधि पर नजर रखता है.
भारत समेत इन देशों की लेनी पड़ेगी मदद
अमेरिका को इस चुनौती से निपटने के लिए सैन्य और कूटनीतिक, दोनों स्तरों पर काम करना होगा. नई मिसाइल रक्षा प्रणालियां, साइबर क्षमताएं और मानवरहित सिस्टम विकसित करने की जरूरत है. अमेरिका को जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया से मदद लेनी होगी, तभी वह चीन का मुकाबला कर पाएगा.