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इजरायल ने दबाई हिज्बुल्लाह की कमजोर नस, सीजफायर में भी हमले जारी, कुछ नहीं कर पा रहा ईरान का प्रॉक्सी ग्रुप

इजरायल और लेबनान के हथियारबंद समूह हिज़्बुल्लाह के बीच 27 नवंबर को संघर्षविराम हुआ था.  इसे एक महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन इसकी शर्तें तय समयसीमा के अंदर पूरी होने की उम्मीद कम दिखाई दे रही है. जहां इस समझौते के तहत हिज्बुल्लाह को दक्षिणी लेबनान में अपने हथियार तुरंत छोड़ने थे तो वहीं इजरायल को 60 दिनों के भीतर अपनी सेनाओं को वहां से हटाकर नियंत्रण लेबनानी सेना और संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों को सौंपना था.

इजरायल ने दबाई हिज्बुल्लाह की कमजोर नस, सीजफायर में भी हमले जारी, कुछ नहीं कर पा रहा ईरान का प्रॉक्सी ग्रुप
  • सिर्फ दो शहरों से इजरायली सेनाएं हुईं वापस
  • 60 दिनों के भीतर शर्तें पूरी होने की उम्मीद नहीं
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नई दिल्लीः इजरायल और लेबनान के हथियारबंद समूह हिज़्बुल्लाह के बीच 27 नवंबर को संघर्षविराम हुआ था.  इसे एक महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन इसकी शर्तें तय समयसीमा के अंदर पूरी होने की उम्मीद कम दिखाई दे रही है. जहां इस समझौते के तहत हिज्बुल्लाह को दक्षिणी लेबनान में अपने हथियार तुरंत छोड़ने थे तो वहीं इजरायल को 60 दिनों के भीतर अपनी सेनाओं को वहां से हटाकर नियंत्रण लेबनानी सेना और संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों को सौंपना था.

दो शहरों से इजरायली सेनाएं हुईं वापस

न्यूज एजेंसी AP के मुताबिक, इजरायल ने अब तक दक्षिणी लेबनान के कई शहरों में से सिर्फ दो से अपनी सेनाएं वापस ली हैं. साथ ही इजरायल उन ठिकानों पर हमले जारी रखे हुए है, जिन्हें वह हिज्बुल्लाह के ठिकाने मानता है. इसके पीछे इजरायल का तर्क है कि हिज्बुल्लाह रॉकेट लॉन्च करने और हथियारों को स्थानांतरित करने की कोशिश कर रहा है.

हालांकि करीब 14 महीनों के युद्ध में काफी कमजोर हो चुके हिज्बुल्लाह ने धमकी दी है कि अगर इजरायल 60 दिनों की समय सीमा के भीतर पूरी तरह से अपनी सेनाएं नहीं हटाता है तो वह फिर से लड़ाई शुरू कर सकता है.

लेकिन दोनों पक्षों की ओर से संघर्षविराम के सैकड़ों उल्लंघनों के आरोपों के बावजूद विश्लेषकों का मानना है कि सीजफायर जारी रहेगा. यह उन हजारों इजरायली और लेबनानी लोगों के लिए राहत भरी बात है, जिन्हें युद्ध के कारण अपना घर छोड़ना पड़ा था और वे वहां वापस जाने का इंतजार कर रहे हैं.

सीजफायर समझौता काफी अस्पष्ट

वॉशिंगटन स्थित मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो फिरास मकसाद ने AP को बताया, 'संघर्षविराम समझौता काफी अस्पष्ट है और इसकी व्याख्या अलग-अलग तरीकों से की जा सकती है.' उनका मानना है कि यह लचीलापन इसे बदलते हुए हालातों के बावजूद जारी रहने का बेहतर मौका देता है, खासकर ऐसे समय में जब सीरिया में बशर अल असद को सत्ता से बेदखल होना पड़ा है.

असद का तख्तापलट होने के बाद से हिजबुल्लाह ने ईरान से हथियारों की तस्करी का एक महत्वपूर्ण मार्ग खो दिया है. इससे हिज्बुल्लाह और कमजोर पड़ गया है. वहीं इजरायल पहले ही अमेरिका की मध्यस्थता में युद्धविराम पर सहमत हो गया था.

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