Bagram Airbase: अपने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की आलोचना करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि चीन ने अब अफगानिस्तान में बगराम एयरबेस पर कब्जा कर लिया है, जिसे 2021 में अमेरिकी सैनिकों ने खाली कर दिया था. बता दें कि तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा करने के बाद अमेरिका को देश में अपना सबसे बड़ा एयरबेस छोड़ना पड़ा.
ट्रंप ने गुरुवार को व्हाइट हाउस में 2025 के राष्ट्रीय प्रार्थना दिवस को संबोधित करते हुए कहा, '...लेकिन हम बगराम को बनाए रखने जा रहे थे, जो कि बड़ा एयर फोर्स बेस है, जो चीन के परमाणु हथियार बनाने के स्थान से एक घंटे की दूरी पर है. मैंने कहा कि आप बगराम को नहीं छोड़ सकते.' 'उन्होंने(बाइडन) बगराम को छोड़ दिया और अभी चीन ने बगराम पर कब्जा कर रखा है. बहुत दुखद, बहुत अजीब. दुनिया के सबसे बड़े एयरबेस में से एक, दुनिया के सबसे मजबूत और सबसे लंबे रनवे में से एक, चीन के परमाणु मिसाइल बनाने के स्थान से एक घंटे की दूरी पर.'
राष्ट्रपति ने अफगानिस्तान की पराजय के लिए बाइडन और उनके प्रशासन को दोषी ठहराया. ट्रंप ने दावा किया, 'आपको अफगानिस्तान में भयावह दृश्य देखने को नहीं मिलता, जो मुझे लगता है कि (रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर) पुतिन को वहां जाने और जो कुछ भी उन्होंने किया, उसे करने का संकल्प लेने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि उन्होंने देखा कि हम कितनी बुरी तरह से बाहर निकले हैं.'
उन्होंने आगे कहा, 'हमने 13 सैनिक खो दिए और 42 घायल हो गए. कोई भी उनके बारे में बात नहीं करता. बुरी तरह से घायल, ऐसा कभी नहीं होता. ऐसा होना भी संभव नहीं था और हम उनके बाहर (अफगानी) निकलने से पहले ही बाहर निकल जाते.'
तालिबान का क्या कहना है?
ट्रंप ने इस साल मार्च में भी इसी तरह की टिप्पणी की थी, जिसके बाद तालिबान ने एक बयान जारी कर चीनी संलिप्तता से इनकार किया था. तालिबान ने कहा था, 'बगराम पर इस्लामिक अमीरात (तालिबान) का नियंत्रण है, चीन का नहीं. चीनी सैनिक यहां मौजूद नहीं हैं, न ही हमारा किसी देश के साथ ऐसा कोई समझौता है.'
बगराम एयर बेस के बारे में जानें
-बगराम एयरफील्ड अफगानिस्तान का सबसे बड़ा एयरबेस है, जो परवान प्रांत में काबुल से लगभग 60 किलोमीटर उत्तर में स्थित है. अतीत में विशेषज्ञों ने इस प्रांत को अत्यंत रणनीतिक कहा था, उनका दावा था कि अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्से को नियंत्रित करने की कुंजी परवान में है.
-दिलचस्प बात यह है कि एयरबेस मूल रूप से सोवियत संघ द्वारा 1950 में बनाया गया था और शीत युद्ध के शुरुआती दिनों में USSR का इस पर नियंत्रण था. 1979-89 के सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान, बगराम एक महत्वपूर्ण सोवियत बेस के रूप में कार्य करता था. बेस को अंततः मजबूत किया गया और USSR के सैन्य कर्मियों को शरण दी जाने लगी.
-अमेरिका ने पहली बार 1959 में एयरफील्ड पर अपनी नजर डाली, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर ने अफगानिस्तान की एक ऐतिहासिक यात्रा की और बगराम में उतरे.
-1990 के दशक में अफगानिस्तान से सोवियत वापसी के बाद, बगराम एयरबेस को छोड़ दिया गया और यह तालिबान (जिसने दक्षिण में काबुल पर कब्जा कर रखा था) और इसके उत्तर में पहाड़ी घाटियों में स्थित उत्तरी गठबंधन के लड़ाकों के बीच खतरनाक युद्ध तक पहुंच गया. संघर्ष के दौरान एयरबेस को भारी नुकसान पहुंचा था.
-2001 में 9/11 के आतंकी हमले के बाद, अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने अफगान एयरफील्ड पर कब्जा कर लिया और अगले दो दशकों तक, उन्होंने अमेरिका के 'आतंकवाद के खिलाफ युद्ध' के नाम पर एयरबेस को नियंत्रित किया. अमेरिकी नियंत्रण में, बेस 77 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा हो गया, जिसमें एक नया रनवे, चिकित्सा सुविधाएं और अमेरिकी कर्मियों के लिए फास्ट फूड जॉइंट शामिल थे.
-ऐसी कई रिपोर्टें आई हैं कि अमेरिकी सैनिकों ने देश में असंतुष्टों के साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार करने के लिए एयरबेस सुविधाओं का भी इस्तेमाल किया.
-2020 में, ट्रंप के पहले प्रशासन ने तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें उन्होंने अफगानिस्तान की धरती से सभी नाटो सैनिकों को वापस बुलाने का आश्वासन दिया. इस सौदे के साथ, तालिबान ने अगले साल अफगानिस्तान पर नियंत्रण हासिल करने के लिए इसका इस्तेमाल किया, जबकि अमेरिका देश से बाहर निकल गया.
-काबुल हवाई अड्डे से अंतिम अमेरिकी विमान ने 30 अगस्त, 2021 को उड़ान भरी. अमेरिकी सेना ने 2 जुलाई को बगराम को खाली कर दिया और 15 अगस्त को यह बेस औपचारिक रूप से तालिबान के हाथों में चला गया.
-आज बेस तालिबान के नियंत्रण में है, लेकिन अमेरिका लंबे समय से इस बात को लेकर चिंता जताता रहा है कि चीन के अफगानिस्तान से बाहर निकलने के बाद वहां घुसपैठ की कोशिशें की जा रही हैं. इस बीच जहां दुनिया भर के अधिकांश देश तालिबान शासन को मान्यता देने में हिचकिचा रहे थे, चीन ने पिछले साल बीजिंग में तालिबान के प्रतिनिधि को राजदूत का दर्जा दिया था.
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