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भारत के अंतिम गवर्नर जनरल कौन थे? एक साल पहले देश की आजादी पर लगाई मुहर, बन गई बंटवारे की वजह!

भारत की आजादी जून 1948 तय हुई थी. हालांकि, भारत के आखिरी गवर्नर जनरल ने 15 अगस्त 1947 को आजादी पर मुहर लगाई. जो दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी का कारण बनी. वहीं भारत की तस्वीर भी पूरी तरह बदल गई. आइए आखिरी वायसराय की भूमिका के बारे में जानते हैं.

भारत के अंतिम गवर्नर जनरल कौन थे? एक साल पहले देश की आजादी पर लगाई मुहर, बन गई बंटवारे की वजह!
  • जून 1948 तय हुई थी भारत की आजादी की तारीख
  • बंटवारे के वक्त 10 लाख से ज्यादा लोगों की हुई मौत

last Governor General of India: भारत की आजादी की कहानी वीरों, बलिदानों और सियासत की जटिल गलियों से बुनी गई है. इस कहानी में एक किरदार ऐसा भी है, जिसने आजादी के आखिरी पन्नों को लिखने में अहम रोल अदा किया. भारत के अंतिम गवर्नर जनरल. जिसने न देश की तस्वीर बदली. बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी का कारण भी बना. हालांकि इसकी रूपरेखा बहुत पहले तय की जा चुकी थी, लेकिन जिम्मेदारियों का ठीकरा इन्हीं के सिर पर मढ़ा गया. जिन्होंने भारत की आजादी पर आखिरी मुहर लगाई. आइए भारत के आखिरी गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और भारत के पहले और आखिरी गवर्नर जनरल के बारे में जानते हैं, आखिरी इनकी भारत की आजादी में क्या भूमिका थी. 

लॉर्ड माउंटबेटन आजादी के आखिरी गवर्नर जनलर
लॉर्ड लुई माउंटबेटन को 21 फरवरी 1947 को भारत का अंतिम वायसराय और गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया. उनकी जिम्मेदारी थी ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी दिलाने का रास्ता तैयार करना. माउंटबेटन ब्रिटिश नौसेना के बड़े अधिकारी थे, और उनकी नियुक्ति तब हुई, जब भारत में आजादी की मांग चरम पर थी. 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ, और माउंटबेटन 21 जून 1948 तक भारत के पहले गवर्नर जनरल रहे. उनका काम अब सिर्फ औपचारिक था, क्योंकि असली सत्ता भारतीय कैबिनेट के पास थी.

भारत के बंटवारे का फैसला
माउंटबेटन का सबसे बड़ा और विवादास्पद रोल था भारत-पाकिस्तान बंटवारा. जब वो भारत आए, तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच तनाव चरम पर था. मुस्लिम लीग, मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में अलग पाकिस्तान की मांग कर रही थी. यही वजह रही कि माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को माउंटबेटन प्लान पेश किया. जिसमें दो देश भारत और पाकिस्तान बनाने का प्रस्ताव था.

इस प्लान में रेडक्लिफ लाइन के जरिए सीमाएं खींची गईं, जिसे सिरिल रेडक्लिफ ने तैयार किया. लेकिन जल्दबाजी में बंटवारे से लाखों लोग बेघर हो गए, और देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़के. यह दंगे इतने भयावह थे कि इनमें करीब 10 लाख लोग मारे गए. माउंटबेटन पर आरोप लगा कि उन्होंने बंटवारे को जल्दी और बिना पूरी तैयारी के लागू किया.

आजादी की तारीख तय करना
माउंटबेटन ने आजादी की तारीख को भी तेजी से तय किया. ब्रिटिश सरकार ने पहले जून 1948 तक सत्ता हस्तांतरण की बात कही थी, लेकिन माउंटबेटन ने इसे 15 अगस्त 1947 कर दिया. वो चाहते थे कि ब्रिटिश जल्दी से भारत छोड़ें, क्योंकि सांप्रदायिक तनाव और आजादी की मांग को और टाला नहीं जा सकता था. 15 अगस्त को जवाहरलाल नेहरू ने ट्रिस्ट विद डेस्टिनी भाषण दिया, और माउंटबेटन ने औपचारिक रूप से सत्ता उनके हाथों में सौंपी. उनकी इस जल्दबाजी को कुछ लोग समझदारी मानते हैं, तो कुछ इसे बंटवारे की त्रासदी का कारण भी कहते हैं.

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सैन्य बदलाव में माउंटबेटन का रोल
माउंटबेटन ने आजादी के बाद भारत की सेना और सांस्कृतिक पहचान को नए सिरे से गढ़ने में भी मदद की. उन्होंने भारतीय वायुसेना का हल्का नीला झंडा राष्ट्रीय तिरंगे से बदलने जैसे कई अहम सुझाव दिए. जिसके बाद सेना, नौसेना और वायुसेना से ‘रॉयल’ शब्द हटाया गया, और अशोक के तीन शेरों को राष्ट्रीय चिह्न बनाया गया. वहीं, नौसेना के झंडे पर यूनियन जैक की जगह तिरंगा लहराया. ये बदलाव भारत की नई पहचान के प्रतीक बने.

भारत के पहले और आखिरी भारतीय गवर्नर जनरल
लॉर्ड माउंटबेटन के जाने के बाद 21 जून 1948 को सी. राजगोपालाचारी भारत के गवर्नर जनरल बने. जिन्हें राजाजी भी कहकर पुकारा जाता था. वे पहले और आखिरी भारतीय थे, जिन्होंने गवर्नर जनरल का पद संभाला. वे भारत के गणतंत्र बनने और संविधान लिखे जाने तक 26 जनवरी 1950 तक इस पद पर बने रहे. राजाजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बड़े नेता थे और महात्मा गांधी के बेहद करीबी रहे. वे गांधी जी के यंग इंडिया अखबार के संपादक भी रहे और असहयोग आंदोलन (1920), दांडी मार्च, और वैकोम सत्याग्रह में शामिल हुए.

आजादी के बाद सी. राजगोपालाचारी की भूमिका?
राजाजी का गवर्नर जनरल के तौर पर रोल ज्यादातर औपचारिक था. 1948 में, जब वो इस पद पर आए, भारत पहले ही आजाद हो चुका था, और सत्ता नेहरू की कैबिनेट के पास थी. राजाजी का काम था ब्रिटिश राज से गणतंत्र भारत तक के बदलाव को आसान करना. उन्होंने संविधान सभा के काम को पूरा करने में मदद की, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ. राजाजी ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत का पहला राष्ट्रपति बनने का रास्ता सौंपा. उनकी शांत और समझदारी भरी लीडरशिप ने इस बदलाव को बिना किसी रुकावट के पूरा किया.

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