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ये है दुनिया का सबसे नया धर्म, महज 5 साल पहले हुआ शुरू; जानें क्या है इसकी मान्यताएं

दुनिया में तमाम धर्म हैं. जिनमें हिंदू, इस्लाम और ईसाई धर्म मानने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है. जिनकी जड़ें हजारों साल पुरानी हैं. ऐसे में साल 2020 में दुनिया का सबसे नया धर्म सामने आया.

ये है दुनिया का सबसे नया धर्म, महज 5 साल पहले हुआ शुरू; जानें क्या है इसकी मान्यताएं
  • दुनिया का सबसे नया धर्म 2020 में बना
  • इस धर्म का कोई भी पवित्र ग्रंथ नहीं है
  • तीन धर्मों को मिलाकर बनाया गया धर्म

Newest religion in the world: धर्म की दुनिया में जब हम हिंदू, इस्लाम, ईसाई या सिख धर्म की बात करते हैं, तो ये हजारों साल पुरानी परंपराओं की कहानियां हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे नया धर्म सिर्फ पांच साल पहले 2020 में अस्तित्व में आया? जिसका सेंटर संयुक्त अरब अमीरात में बनाया गया है. हालांकि, इसका नाम अपनी शुरुआत से ही विवादों में घिरा रहा. आइए दुनिया के सबसे नए धर्म के बारे में और उनकी मान्यताओं के बारे में जानते हैं.

दुनिया का सबसे नया धर्म 'इब्राहिम'
दुनिया का सबसे नया धर्म ‘इब्राहिम धर्म’ है, जिसे अंग्रेजी में Abrahamic Faith या Abrahamic Religion कहते हैं. यह साल 2020 में शुरू हुआ. ये धर्म एकेश्वरवाद पर आधारित है, यानी इसके अनुयायी एक ईश्वर को मानते हैं और इब्राहिम (या अब्राहम) को ईश्वर का दूत (मैसेंजर) मानते हैं. इब्राहिम वही शख्सियत हैं, जिन्हें यहूदी, ईसाई, और इस्लाम में पैगंबर माना जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक, ‘यह धर्म इस्लाम, ईसाई, और यहूदी धर्मों के बीच मतभेदों को मिटाकर एकता लाने के मकसद से बनाया गया.’ लेकिन इसकी शुरुआत से ही इसे राजनैतिक डील और प्रोपेगेंडा कहकर विरोध हुआ.


कैसे शुरू हुआ इब्राहिम धर्म?
इब्राहिम धर्म की शुरुआत अब्राहम समझौते (Abraham Accords) से जुड़ी है, जो सितंबर 2020 में हुआ. इस समझौते में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और बहरीन ने इजरायल के साथ राजनयिक रिश्ते कायम किए. इसकी मध्यस्थता अमेरिका ने की थी, और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के सलाहकार जेरेड ने इसमें अहम भूमिका निभाई. इंडिया टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘यह धर्म अपने आप नहीं बना, बल्कि इजरायल और अरब देशों के बीच दुश्मनी कम करने की एक राजनैतिक डील के तहत शुरू हुआ.’

इस समझौते का मकसद, अरब देशों और इजरायल के बीच शांति और व्यापारिक रिश्ते बढ़ाना था. लेकिन इसके साथ ही इब्राहिम नाम को एक नए धर्म के रूप में पेश किया गया, जो तीनों अब्राहमिक धर्मों (यहूदी, ईसाई, इस्लाम) की समानताओं पर आधारित हो. बता दें, इस धर्म का कोई पवित्र ग्रंथ नहीं है, न ही कोई अनुयायी, और इसका मकसद सिर्फ मतभेद मिटाना है.

अबू धाबी है इब्राहिम धर्म का सेंटर
इस धर्म को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी में एक इब्राहिम सेंटर बनाया गया. इंडिया.कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘भारत के मशहूर इमाम डॉ. उमैर इलियासी ने दावा किया कि यह सेंटर इब्राहिम एक फेथ (Ibrahim One Faith) को बढ़ाने का काम कर रहा है.’ इस सेंटर का मकसद है तीनों धर्मों के लोगों को एक मंच पर लाकर शांति और सहयोग बढ़ाना. लेकिन कई लोग इसे सिर्फ एक धार्मिक प्रोजेक्ट मानते हैं, न कि असली धर्म.

विवादों में क्यों घिरा इब्राहिम धर्म?
इब्राहिम धर्म की शुरुआत से ही इसे भारी विरोध का सामना करना पड़ा. कई इस्लामिक देशों और धर्मगुरुओं का मानना है कि यह धर्म इस्लाम को कमजोर करने और इजरायल के साथ अरब देशों के रिश्ते बेहतर करने की साजिश है. कुछ लोग इसे अमेरिका की चाल कहते हैं, जिसका मकसद फिलिस्तीन मुद्दे को कमजोर करना है. वहीं, कई धर्मगुरु इसे पॉलिटिकल प्रोपेगेंडा भी कहते हैं, जो इस्लाम को खत्म करने की कोशिश है.

विवाद की एक बड़ी वजह ये भी है कि ये धर्म ऑर्गेनिक तरीके से नहीं बना, जैसा कि सनातन, इस्लाम या ईसाई धर्म बने. बता दें, हर धर्म का एक ग्रंथ और अनुयायी होते हैं, लेकिन इब्राहिम का कोई ग्रंथ नहीं है, और इसे राजनैतिक डील के तहत बनाया गया. यही वजह रही कि इसे कई लोग धर्म की बजाय एक राजनैतिक मूवमेंट मानते हैं.

इब्राहिम धर्म की क्या हैं मान्यताएं?
इब्राहिम धर्म एकेश्वरवाद पर विश्वास करता है. जिसका मतलब है यह धर्म एक ईश्वर को मानता है और इब्राहिम उसका मैसेंजर है. इस धर्म की कोई पवित्र किताब या नियम नहीं हैं, जो इसे पारंपरिक धर्मों से अलग करता है. वहीं, इस धर्म का मकसद इस्लाम, ईसाई, और यहूदी धर्मों के बीच शांति और एकता लाना है. साथ ही, यह किसी को धर्म बदलने के लिए नहीं कहता, बल्कि तीनों धर्मों की समानताओं पर जोर देता है.

ऐसे में दुनिया का सबसे नया धर्म उभर कर सामने तो आया, लेकिन आधिकारिक रूप से इसका कोई अनुयायी नहीं बना. हालांकि, कुछ रिपोर्ट बताते हैं कि तीनों धर्मों (इस्लाम, यहूदी और ईसाई) की जड़ एक मानने वालों की संख्या लाखों में है. ऐसे में वे इब्राहिम धर्म को औपचारिक रूप से मान्यता देते हैं.

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