Donald Trump On Russia Ukraine War: नेता अपने स्टैंड बदलते रहते हैं, इसमें नया तो कुछ भी नहीं है. ये बात भारत के नेताओं पर ही नहीं, बल्कि दुनिया में खुद को 'ग्लोबल लीडर' कहने वाले नेताओं पर भी लागू होती है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी स्टैंड बदलने वाली 'वायरल बीमारी' से अछूते नहीं रहे. ट्रंप ने पुतिन के लिए कहा, 'वे सुबह दूसरी भाषा बोलते हैं और शाम को ही बमबारी शुरू कर देते हैं.' दूसरे पर एक उंगली उठाते टाइम चार उंगलियां खुद की तरफ भी होती हैं. अब ट्रंप को अपने गिरेबान में भी झांक लेना चाहिए. रूस- यूक्रेन युद्ध को रोकने की कसम खाने वाले ट्रंप, अब यूक्रेन को हथियार मुहैया करने की बात कर रहे हैं, ताकि वह रूस से लड़ाई लड़ता रहे.
मार्च 2023, अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चले 721 दिन तक के प्रचार अभियान में से एक दिन. टेक्सास के वाको में रैली थी, भीड़ 'ट्रंप-ट्रंप' के नारों से गूंज रही थी. मंच पर रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप थे, जो जोशीले अंदाज में अपना स्पीच दे रहे थे. भीड़ का उत्साह देखकर ट्रंप साब भी 'अतिउत्साहित' हो उठे, बोले- 'राष्ट्रपति चुनाव जीतने के तुरंत बाद, ओवल ऑफिस पहुंचने से पहले ही, मैं रूस और यूक्रेन के बीच विनाशकारी युद्ध का निपटारा कर दूंगा. मैं दोनों देशों के बीच मात्र 24 घंटों के भीतर समझौता करवा दूंगा.' 5 महीने बाद ही ट्रंप ने फिर दावा कर दिया कि राष्ट्रपति पद ग्रहण करने से पहले ही मैं युद्ध रुकवा दूंगा. अगस्त में पूर्व नेवी सील शॉन रयान के पॉडकास्ट पर ट्रंप ने कहा, 'मैं निर्वाचित राष्ट्रपति बनने पर, यानी 20 जनवरी को पदभार ग्रहण करने से पहले इस युद्ध को रुकवा दूंगा.'
19 फरवरी, 2025 को ट्रंप ने ट्रुथ पर एक पोस्ट किया, तब तक उन्हें राष्ट्रपति बने हुए एक महीना हो चुका था. पोस्ट का लब्बोलुआब कुछ यूं था- 'यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की बिना चुनाव के तानाशाह हैं. वह एक समझदार नेता होने की बजाय एक मामूली सफल कॉमेडियन हैं.' ठीक समझे, ये 'जेलेंस्की-ट्रंप की चर्चित भिड़ंत' के बाद का वाकया है. ट्रंप की भाषा को देखकर लगा कि वह ताराजू से यूक्रेन को सपोर्ट करने वाला बाट उठा लेंगे. नतीजतन, जेलेंस्की कमजोर पड़ेंगे और युद्ध खुद-ब-खुद ही रुक जाएगा. लेकिन 5 महीने बाद जुलाई में ट्रंप कह रहे हैं कि यूक्रेन को अमेरिकी हथियारों की जरूरत है. सोते-उठते, खाते-पीते, सुबह-शाम पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन को कोसने वाले ट्रंप की ये नीति पहले से जरा भी अलग नहीं. साफ है कि ट्रंप युद्ध समर्थक ताकतों के दबाव में आ चुके हैं.
ट्रंप ने हरेक रास्ता अख्तियार कर लिया है. कभी पुतिन को धमकाया, कभी जेलेंस्की को. कभी पुतिन को पुचकारा, अपना दोस्त बताया, समझदार लीडर करार दिया. लेकिन नतीजा क्या रहा, शून्य. ट्रंप ने पलटी मारते-मारते 'नीतीश कुमार' का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया. यही कारण है कि ट्रंप उसी रास्ते पर चलने पर मजबूर हुए, जिस पर दो साल तक जो बाइडन चले. हां, वही रास्ता जो यूक्रेन को हथियार देते हुए खत्म हो जाता है, दूर तलक सड़क नजर नहीं आती, बस बियाबान जंगल है. आगे का रास्ता ना बाइडन बना पाए थे, ना ही ट्रंप बना पा रहे.
बीते महीने ही ट्रंप ने कहा- 'रूस-यूक्रेन और इजरायल-ईरान के मामलों में भी मुझे नोबेल पुरस्कार नहीं मिलेगा. चाहे कुछ भी हो, मगर मुझे प्राइज नहीं मिलेगा.' मिस्टर प्रेसिडेंट, नोबेल पीस प्राइज उन्हें मिलता है जो शांति स्थापित करते हैं, रूस-यूक्रेन के मामले में आप फेल रहे. जबकि ईरान-इजरायल के युद्ध को रुकवाने की कहानी दुनिया जानती है. आपने ये जंग ठीक वैसे ही रुकवाई जैसे दो बच्चों की लड़ाई में बड़ा कूदता है, एक को चांटा लगाता है और 'चुपचाप' बैठने को कहता है.
ट्रंप का यूक्रेन के प्रति नया रुख उनकी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के खिलाफ भी है. ट्रंप की नई चाल न केवल अमेरिका को एक खतरनाक युद्ध में उलझा सकती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर अमेरिका के हितों को भी नुकसान पहुंचा सकती है. बहरहाल, इतना तो जरूर है कि ट्रंप को भले नोबेल पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन रुख बदलते-बदलते वह 'नीतीश कुमार' का तमगा तो हासिल कर ही चुके हैं और भारत के लोग तो ये जानते ही हैं कि 'नीतीश कुमार' स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स कितनी सक्सेसफुल है.
नोट: लेख में कही हुई बात लेखक के निजी विचार हैं.