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यूक्रेन युद्ध ने बदली जंग की दुनिया, अब पैदल सेना नहीं ये 'गेम चेंजर' हथियार तय कर रहे जीत; जानें भारत की क्या स्थिति

यूक्रेन में चल रहा युद्ध दुनिया के लिए एक अहम सबक बन गया है. इसने न केवल सैन्य रणनीतियों को बदलने पर मजबूर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि भविष्य के युद्ध कैसे लड़े जाएंगे. हालांकि, भारत पहले से ही इस क्षेत्र में कदम बढ़ा चुका है.

यूक्रेन युद्ध ने बदली जंग की दुनिया, अब पैदल सेना नहीं ये 'गेम चेंजर' हथियार तय कर रहे जीत; जानें भारत की क्या स्थिति
  • भारत भविष्य की जंग के लिए हो रहा तैयार
  • रूस-यूक्रेन में अब हवाई हमलों का बोलबाल

एक समय था जब युद्ध का परिणाम सेना के आकार और पारंपरिक हथियारों की ताकत से तय होता था. लेकिन यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष ने इस धारणा को पूरी तरह बदल दिया है. अब युद्ध के मैदान में एक नया गेम चेंजर उभर कर सामने आया है. जंग के तौर-तरीकों को पूरी तरह बदल दिया है. हम बात कर रहे हैं 'मिसाइल वॉरफेयर' की. जहां, यह लड़ाई अब केवल तोप और टैंक से नहीं, बल्कि कम लागत वाली, अत्यधिक प्रभावी मिसाइलों से लड़ी जा रही है, जिसने पारंपरिक युद्ध के युग का अंत कर दिया है.

आखिर यूक्रेन ने ऐसा क्या किया?
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से, बड़े पैमाने पर जमीन पर लड़ी जाने वाली लड़ाई की उम्मीद की जाती थी, जिसमें विशाल सेनाएं और टैंकों की भारी संख्या महत्वपूर्ण होती थी. लेकिन यूक्रेन युद्ध ने इस पुरानी धारणा को तोड़ दिया है. इसने दिखाया है कि कैसे सीमित संसाधनों वाला एक देश भी रूस जैसी विशाल सेना को आधुनिक मिसाइलों और ड्रोन के माध्यम से भारी नुकसान पहुंचा सकता है.

कुछ महीने पहले, इन्हीं सस्ते लेकिन घातक ड्रोनों का इस्तेमाल कर यूक्रेन ने रूस पर जबरदस्त हवाई हमला बोला था. जिसमें रूस को बड़े स्तर पर लड़ाकू विमानों के नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़ा.

ड्रोन और मिसाइलों ने ली पैदल सेना की जगह
यूक्रेन में जारी युद्ध में, ड्रोन और मिसाइलों की ताकत दुनिया ने देखी. जो न केवल सटीक हमला करने में सक्षम हैं, बल्कि सस्ते दामों में उपलब्ध हैं. खासकर, स्विचब्लेड ड्रोन्स जैसे अपेक्षाकृत सस्ते लेकिन सटीक हथियारों का उपयोग किया है.

ये ड्रोन, जो आत्मघाती हमलों को अंजाम देते हैं, रूसी बख्तरबंद वाहनों और तोपखानों के खिलाफ बेहद प्रभावी साबित हुए हैं. इनकी कम लागत और अधिक सटीकता, पारंपरिक बड़े और महंगे टैंकों और तोपों की तुलना में कहीं अधिक 'कॉस्ट-इफेक्टिव' साबित हुई है.

सीमाओं से परे किए जा रहे हमले
इससे पहले, पारंपरिक युद्ध में अग्रिम पंक्ति और स्पष्ट सीमाएं होती थीं. लेकिन मिसाइलों और ड्रोन के आगमन के साथ, युद्ध अब 'नॉन-लीनियर' हो गया है. यानी दुश्मन की आपूर्ति लाइनों, कमांड सेंटरों और बुनियादी ढांचे को अब लंबी दूरी से निशाना बनाया जा सकता है, जिससे दुश्मन की परिचालन क्षमताएं पूरी तरह पंगु हो सकती हैं.

क्या है भारत की स्थिति?
भारत बहुत वक्त पहले से ही इन चीजों से खुद को वाकिफ रखा हुआ था. यही वजह है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, भारत ने न केवल आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए. बल्कि दुश्मन मूल्क की ओर से किए गए नापाक ड्रोन व मिसाइलों को हवा में ही नेस्तनाबूद कर दिया.

भारत के हवाई हमले में स्कैल्प व ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों ने दमखम दिखाया, तो वहीं आकाशतीर जैसे एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम ने दुश्मन के हर हमले को हवा में ही नाकाम कर दिया.

साथ ही, भारत वर्तमान में लो रेंज से लेकर कई हजार किलोमीटर तक मारक क्षमता रखने वाले ड्रोन्स को डेवलप कर रहा है. कुछ ड्रोन तो ऐसे भी तैयार हो रहे हैं, जो राइफल जैसे घातक बंदूकों को ऑटोमैटिक चलाने में सक्षम हैं.

इसके इतर, भारत सैनिकों को बिना किसी मुश्किल में डाले, लंबी दूरी वाले UAVs यानी लॉन्ग रेंज वाले ड्रोन डेवलप कर रहा है. जो न केवल भारी मात्रा में पेलोड ले जाने में सक्षम हैं, जबकि साथ ही निगरानी व टोही ऑपरेशन में भारत की मारक क्षमता को कई गुना बढ़ा रहे हैं.

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