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LTTE की बिछाई हुई बारूदी सुरंगों का डर बरकरार, श्रीलंका कर रहा था खत्म, लेकिन अमेरिका ने क्यों रोक दिए कदम?

Sri lanka- America News: श्रीलंका LTTE द्वारा बिछाई गई बारूदी सुरंगों को नष्ट करने की 2028 की समय-सीमा से चूक सकता है. क्या है अमेरिका की वजह से? आइए जानते हैं

LTTE की बिछाई हुई बारूदी सुरंगों का डर बरकरार, श्रीलंका कर रहा था खत्म, लेकिन अमेरिका ने क्यों रोक दिए कदम?

LTTE landmines in sri lanka: थावराथनम पुष्पारानी वो जिन्होंने दशकों से चले आ रहे अलगाववादी युद्ध में श्रीलंकाई सेना के खिलाफ तमिल टाइगर विद्रोहियों के लिए अग्रिम मोर्चे पर लड़ाई लड़ी. हालांकि, तमिल टाइगर को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन पुष्पारानी जिन्होंने खिलाफ लड़ाई लड़ी उन्होंने बाद में उसी युद्ध रेखा पर बारूदी सुरंगों को साफ करने का काम किया.

लेकिन ट्रंप प्रशासन द्वारा सहायता रोके जाने से श्रीलंका के बारूदी सुरंगों को खत्म करने के अभियान को चोट पहुंच सकती है. ऐसे में पुष्पारानी जैसे हजारों लोगों की आजीविका अनिश्चितता में आ गई है.

श्रीलंका के लिए अब जो सबसे अधिक मुश्किल काम है वह ओटावा संधि के तहत 2028 तक द्वीप राष्ट्र को बारूदी सुरंगों से मुक्त करने का उसका दायित्व है. यह 2017 में श्रीलंका ने स्वीकार किया था.

पुष्पारानी का अनुभव
पुष्पारानी को गृहयुद्ध का भयावह भरा अनुभव आज भी याद है. उनके परिवार में, उनके पति, पिता और दो भाई लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के लिए लड़ते हुए मारे गए. बता दें कि विद्रोही समूह को औपचारिक रूप से इसी नाम से जाना जाता था. वहीं, पुष्पारानी के दो अन्य भाई-बहन लापता हैं.

पुष्पारानी का जन्म पूर्वी श्रीलंका में हुआ था और जब वे स्कूल में थीं, तब 1983 में बहुसंख्यक सिंहली भीड़ द्वारा अल्पसंख्यक तमिलों के खिलाफ देशव्यापी जातीय नरसंहार के बाद उनके परिवार को देश के उत्तरी हिस्सों में जाना पड़ा.

इस घटना ने कई तमिल युवाओं में भावनाओं को भड़का दिया और वे तमिलों के लिए एक स्वतंत्र राज्य की लड़ाई के लिए उग्रवादी संगठनों में शामिल हो गए. पुष्पारानी भी स्कूल में किशोरावस्था में ही तमिल टाइगर्स में शामिल हो गईं.

पुष्पारानी ने कहा, 'चूंकि मेरा पूरा परिवार संगठन के साथ था, इसलिए उन्होंने मेरी शादी तय की. मेरी सबसे बड़ी बेटी का जन्म 1990 में हुआ और छोटी बेटी का जन्म 1992 में हुआ. मेरे पति की मृत्यु 1996 में युद्ध में हुई और मेरे बच्चों का पालन-पोषण संगठन द्वारा संचालित 'सेनचोलाई' घर में हुआ.'

2009 में जब लड़ाई समाप्त हुई तो वह अपने बच्चों के साथ फिर से जुड़ गई और जीविका के लिए बारूदी सुरंग हटाने वाले समूहों के साथ काम करना शुरू कर दिया.

अमेरिका का क्या रोल?
श्रीलंका में बारूदी सुरंग हटाने का अभियान युद्ध विराम अवधि के दौरान 2002 में शुरू हुआ था और इस प्रयास का समर्थन करने वाले 11 देशों में अमेरिका सबसे बड़ा दानदाता रहा है, जिसने अब तक परियोजनाओं के लिए प्राप्त 250 मिलियन डॉलर के अनुदान में से लगभग 34% का योगदान दिया है. US द्वारा संचालित नेशनल माइन एक्शन सेंटर के निदेशक एम.एम. नईमुद्दीन के अनुसार, पिछले वर्ष प्राप्त अनुदान में अमेरिका का योगदान 45% था.

यहां सबसे बड़ी बात यह कि कई कारणों से काम कुछ वर्षों तक बाधित रहा, जिस कारण आज भी बारूदी सुरंग हटाने का अभियान आज भी जारी है. देश अब तक 2.5 मिलियन से अधिक एंटी-पर्सनल, एंटी-टैंक, छोटे हथियारों के गोला-बारूद और बिना विस्फोट वाले आयुध को हटाने में सफल रहे हैं.

कितनी बारूदी सुरगें अभी भी बाकी?
मूल रूप से साफ की जाने वाली 254 वर्ग किलोमीटर भूमि में से केवल 23 वर्ग किलोमीटर भूमि ही बची है. 2028 की समय-सीमा तक इसे हासिल किया जा सकता है या नहीं, यह लगातार मिलने वाली मदद पर निर्भर करेगा. नईमुद्दीन ने कहा कि सहायता निलंबन की घोषणा के बाद, श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने अपील की और यू.एस. ने समीक्षा लंबित रहने तक अपने आवंटित धन के उपयोग की अनुमति दी, जिस पर 1 मई को निर्णय होने की उम्मीद है.

कितने लोग सुरगें खत्म करने में लगे?
करीब 3,000 कर्मचारी हैं, जिनमें से ज्यादातर गृह युद्ध से प्रभावित समुदायों से भर्ती किए गए हैं. नईमुद्दीन ने कहा कि अनिश्चितता के कारण, कुछ समूहों ने अपने कर्मचारियों को निकालना शुरू कर दिया है.

श्रीलंका का गृह युद्ध 2009 में समाप्त हुआ जब सरकारी सैनिकों ने तमिल टाइगर विद्रोहियों को कुचल दिया, जिससे उनके चौथाई सदी के अलगाववादी अभियान का अंत हो गया. रूढ़िवादी यू.एन. अनुमानों के अनुसार, संघर्ष में लगभग 100,000 लोग मारे गए थे.

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