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तालिबान ने रूस में जंग जीतने जैसा काम किया, इस फैसले के आगे पुतिन भी कुछ नहीं कर पाए

Taliban removed from terrorist list: रूसी अदालत के एक फैसले से तालिबान की बड़ी कूटनीतिक जीत हुई है. पहले जहां तालिबान के साथ कोई भी संपर्क रूसी कानून के तहत दंडनीय था, वो अब दौर चला गया.

तालिबान ने रूस में जंग जीतने जैसा काम किया, इस फैसले के आगे पुतिन भी कुछ नहीं कर पाए

Talibans victory in Russia: रूस ने दो दशक से अधिक समय के बाद तालिबान पर से प्रतिबंध हटा लिया है. ऐसा एक अदालती फैसले के बाद हुआ. जिसमें अफगानिस्तान में राज कर रहे तालिबान को बड़ी जीत हासिल हुई. बता दें कि रूस ने समूह को अपनी आतंकवादी सूची से भी हटा दिया है.

दरअसल, रूसी सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अभियोजक जनरल के कार्यालय के अनुरोध के आधार पर यह फैसला सुनाया. यह फैसला पिछले साल एक कानून को अपना जाने के बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि आतंकवादी संगठन के रूप में आधिकारिक पदनाम को अदालत द्वारा निलंबित किया जा सकता है.

तालिबान ने 2021 में अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया था. ठीक उसी समय जब अमेरिका और नाटो सैनिक दो दशकों के युद्ध के बाद देश से हटने वाले थे. तब से तालिबान ने कई ऐसे फरमान पारित किए हैं जिन्हें सत्तावादी और विशेष रूप से महिलाओं के लिए दमनकारी करार दिया गया है.

मास्को ने प्रतिबंध क्यों हटाया?
बताया गया कि प्रतिबंध के कारण व्यापार नहीं हो पा रहा था. क्राइसिस ग्रुप के एशिया प्रोग्राम के वरिष्ठ विश्लेषक इब्राहीम बहिस ने कहा, 'तालिबान को आतंकवादी समूह के रूप में सूचीबद्ध करना काबुल के साथ व्यापार और राजनीतिक संबंधों के लिए एक कानूनी बाधा है और इसका हटाया जाना मास्को की संबंधों को बेहतर बनाने की इच्छा को दर्शाता है.'

'हालांकि, व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए अफगानिस्तान के साथ जुड़ना आसान बनाने के अलावा, मुझे यकीन नहीं है कि इससे कोई और बड़ा लाभ होगा.' यानी विश्लेषक कहते हैं कि रूस का तालिबान से बैन हटाना किसी और बड़े कारण का हिस्सा हो सकता है. अब वो क्या? ये तो समय ही बताएगा.

रूस और तालिबान संबंध
रूसी अदालत का यह कदम तालिबान के लिए एक कूटनीतिक जीत है. उसे 2003 में मास्को ने आतंकवादी संगठनों की सूची में डाल दिया था. ऐसे में तालिबान के साथ कोई भी संपर्क रूसी कानून के तहत दंडनीय हो गया था.

हालांकि, तालिबान के प्रतिनिधिमंडल रूस द्वारा आयोजित विभिन्न मंचों में शामिल हुए हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि मास्को ने खुद को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है, जो अन्य देशों के बीच संबंध भी सुधरवा सकता है.

पूर्व सोवियत संघ का अफगानिस्तान के साथ एक लंबा व बुरा इतिहास रहा है. रूस,  अफगानिस्तान में तालिबान के साथ 10 वर्षों तक युद्ध में लगा रहा था, जो अंततः 1989 में खत्म हुआ, जब मास्को द्वारा अपने सैनिकों को वापस बुला लिया गया.

रूसी अधिकारी हाल ही में अफगानिस्तान को स्थिर करने में मदद के लिए तालिबान के साथ जुड़ने की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं.

वहीं, रूस के अलावा हाल के वर्षों में मध्य एशियाई देशों कजाकिस्तान और किर्गिस्तान ने तालिबान को आतंकवादी समूहों की अपनी सूची से हटा दिया है.

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