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कैसे एक गृहिणी बनीं दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री? इंदिरा गांधी से थी पक्की दोस्ती, बदल दी सियासत की तस्वीर

World's first woman Prime Minister: दुनिया में आज भले ही कई देशों में महिला नेताएं सर्वोच्च पदों पर हैं, लेकिन एक समय था जब यह सोचना भी मुश्किल था. इस इतिहास को सबसे पहले जिसने बदला, वह थीं दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री, जिनका भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से गहरा जुड़ाव था.

कैसे एक गृहिणी बनीं दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री? इंदिरा गांधी से थी पक्की दोस्ती, बदल दी सियासत की तस्वीर
  • 1960 में बनीं दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री
  • सिरिमावो भंडारनायके व इंदिरा गांधी में थी दोस्ती

Sirimavo Bandaranaike first woman Prime Minister: दुनिया के राजनीतिक इतिहास में 21 जुलाई 1960 का दिन सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. इसी दिन श्रीलंका में एक ऐसी घटना हुई, जिसने दुनिया भर की महिलाओं के लिए एक नए अध्याय के कई सुनहरे दरवाजे खोल दिए. श्रीलंका की सिरिमावो भंडारनायके दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. उनकी यह उपलब्धि सिर्फ श्रीलंका के लिए नहीं, बल्कि पूरे एशिया और विकासशील देशों के लिए एक प्रेरणा बन गई. आइए उनके इस ऐतिहासिक सफर और भारत से गहरे जुड़ाव पर एक नजर डालते हैं. 

एक गृहणी से पहली महिला PM तक का सफर
सिरिमावो रत्वाटे डायस भंडारनायके का जन्म 17 अप्रैल 1916 को एक संपन्न और प्रभावशाली परिवार में हुआ था. उनकी शादी श्रीलंका के बेहद लोकप्रिय प्रधानमंत्री एस.डब्ल्यू.आर.डी. भंडारनायके से हुई थी. वे एक गृहिणी थीं और राजनीति से सीधे तौर पर दूर रहती थीं. लेकिन, 1959 में जब उनके पति एस.डब्ल्यू.आर.डी. भंडारनायके की हत्या कर दी गई, तो श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (SLFP) गहरे संकट में आ गई. पार्टी के नेताओं ने सिरिमावो को नेतृत्व संभालने के लिए प्रेरित किया, ताकि उनके पति की विरासत को आगे बढ़ाया जा सके.

शुरुआत में हिचकिचाने के बावजूद, सिरिमावो ने यह चुनौती स्वीकार की. उन्होंने अपने भाषणों से जनता को अपनी ओर आकर्षित किया और अपने पति के अधूरे सपनों को पूरा करने का वादा किया. 21 जुलाई 1960 को उनकी पार्टी ने आम चुनाव जीते और सिरिमावो भंडारनायके ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली, जिससे वे इतिहास में दुनिया की पहली निर्वाचित महिला राष्ट्राध्यक्ष बन गईं.

इंदिरा गांधी से थी गहरी दोस्ती
सिरिमावो भंडारनायके का भारत के साथ बहुत गहरा और दोस्ताना रिश्ता रहा. वे तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अच्छी दोस्त थीं. दोनों नेताओं ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

बता दें, गुटनिरपेक्ष आंदोलन उन देशों का मंच था जो शीत युद्ध के दौरान न तो अमेरिका के खेमे में थे और न ही सोवियत संघ के. सिरिमावो, इंदिरा गांधी और यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो जैसे नेताओं ने मिलकर इस आंदोलन को मजबूत किया. जिससे विकासशील देशों को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखने में काफी मदद मिली.

दोनों महिला नेताओं के बीच सिर्फ राजनीतिक संबंध नहीं थे, बल्कि व्यक्तिगत दोस्ती भी थी. वे कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक साथ दिखीं और क्षेत्रीय शांति व विकास के मुद्दों पर मिलकर काम किया. उन्होंने साझा चुनौतियों, जैसे गरीबी और उपनिवेशवाद से मुक्ति, पर भी विचार-विमर्श किया.

सिरिमावो भंडारनायके की उपलब्धियां क्या थीं?
सिरिमावो भंडारनायके ने तीन बार प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया. 1960-1965, 1970-1977 और 1994-2000. उनके कार्यकाल में श्रीलंका में कई महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक सुधार हुए. उन्होंने राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया, सिंहली को एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाया और कई ब्रिटिश-स्वामित्व वाली कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया.

इतना ही नहीं, 1972 में उनके नेतृत्व में सीलोन एक गणराज्य बन गया और इसका नाम बदलकर श्रीलंका कर दिया गया. उन्हें 1971 के जेड-वी.पी. विद्रोह और 1970 के दशक के तेल संकट जैसी बड़ी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा. इसके बावजूद, उन्होंने श्रीलंका को स्थिर रखने का प्रयास किया और अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश की पहचान बनाई.

वहीं, सिरिमावो भंडारनायके का निधन 10 अक्टूबर 2000 को हुआ. उनकी विरासत आज भी जीवित है. उन्होंने न केवल महिलाओं के लिए राजनीतिक नेतृत्व के दरवाजे खोले, बल्कि यह भी दिखाया कि एक महिला कैसे सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी एक देश का नेतृत्व कर सकती है.

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