Chilgoza: हिमाचल प्रदेश के जनजातीय ज़िले किन्नौर के घने जंगलों में पाया जाने वाला चिलगोज़ा (स्थानीय नाम: न्योजे) आज यहां के लोगों की आर्थिक रीढ़ बन गया है. बाजार में करीब ₹3000 प्रति किलो तक बिकने वाला यह बेहद मूल्यवान सूखा मेवा अब 'काला सोना' कहलाने लगा है.
चिलगोज़ा बेहद दुर्लभ होता है और भारत में मुख्य रूप से केवल किन्नौर के जंगलों में ही पाया जाता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह अफ़ग़ानिस्तान में भी पाया जाता है. इसकी खासियत यह है कि यह पूरी तरह प्राकृतिक रूप से उगता है—न इसे खाद की ज़रूरत होती है, न ही दवाओं की.
मूरंग गांव के निवासी अरुण नेगी और महेश्वर नेगी बताते हैं कि चिलगोज़ा उनके गांव के पास के जंगलों में आसानी से उपलब्ध है, और गांव के लोगों को इस पर पारंपरिक अधिकार भी प्राप्त हैं. सितंबर-अक्टूबर के महीनों में ग्रामीण जंगलों से चिलगोज़ा एकत्र कर बाज़ारों में बेचते हैं, जिससे उन्हें अच्छा खासा मुनाफा होता है.
चिलगोज़ा न केवल कमाई का जरिया है, बल्कि अब यह किन्नौर की संस्कृति और परंपरा का भी हिस्सा बन चुका है. किसी खास अतिथि के स्वागत में न्योजा की माला पहनाकर उनका सम्मान करना यहां की विशिष्ट परंपरा बन चुकी है.
औषधीय गुणों से भरपूर यह मेवा न सिर्फ आर्थिक दृष्टि से, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है.
इस तरह चिलगोज़ा ने किन्नौर के लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के साथ-साथ उनकी सांस्कृतिक पहचान को भी और अधिक समृद्ध किया है.